श्री यशोवर्धन पाठक
☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – धारदार व्यंग्य शिल्पी – जयप्रकाश जी पांडेय ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
संस्कारधानी में व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर श्री जयप्रकाश पांडे के अकस्मात् निधन ने साहित्य जगत को शोक विह्वल कर दिया है। यूं तो विगत कुछ माहों से उन्हें असाध्य बीमारी ने जकड़ रखा था परन्तु किसी ने यह नहीं सोचा था कि वे अपने असंख्य चाहने वालों को इतनी जल्दी अलविदा कह कर अनंत यात्रा पर चले जाएंगे। उनकी अभी जाने की आयु नहीं थी। हिंदी साहित्य जगत ने उनसे बहुत उम्मीदें लगा रखी थीं लेकिन विधाता को शायद यही मंजूर था और हम विधि के विधान को स्वीकार करने के लिए विवश हैं।
श्री जयप्रकाश पांडे ने अपने नाम को पूरी तरह सार्थक किया था। साहित्य जगत में उन्होंने प्रकाश पुंज के रूप पहचान बनाई और अपने उल्लेखनीय योगदान से जय के अधिकारी बने। श्री पांडेय को व्यंग्य लेखन में महारत हासिल थी। सुप्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में उनके व्यंग्य लेख प्रमुखता से प्रकाशित किए जाते थे। मुझे अच्छी याद है कि साहित्य में उनकी गहरी अभिरुचि के दर्शन किशोरावस्था में ही होने लगे थे और शालेय जीवन में होनहार बिरवान के होत चीकने पात की कहावत को चरितार्थ कर दिया था।
हास्य विनोद और व्यंग्य में पांडेय जी की रुचि बचपन से ही थी जब हम साथ में जबलपुर में पी. एस . एम . कालेज के पीछे वरिष्ठ बुनियादी स्कूल में पढ़ते थे। पांडेय जी मुझसे एक वर्ष सीनियर थे। बुनियादी स्कूल उस समय मिडिल स्कूल के रुप में जबलपुर में प्रसिद्ध था। स्कूल में प्रधानाध्यापक श्री शीतल प्रसाद नेमा जी के मार्गदर्शन में छात्रों के मानसिक, शैक्षणिक और बौद्धिक विकास के लिए उस समय विभिन्न प्रकार की गतिविधियां संयोजित की जाती थी। मेरी और पांडेय जी की साहित्यिक क्षेत्र में विशेष रुचि होने के कारण हम दोनों भाषण, वाद विवाद और निबंध प्रतियोगिताओं में काफी भाग लेते थे। उस समय छात्रों के लेखन क्षमता के विकास के लिए प्रार्थना स्थल पर एक ब्लैक बोर्ड पर प्रतिदिन छात्रों के द्वारा सृजित रचनाएं लिखी जाती थीं। मैं और जयप्रकाश जी भी ब्लैक बोर्ड पर हास्य विनोद की प्रायः रचनाएं लिखकर छात्रों के पढ़ने के लिए प्रस्तुत करते। पांडेय जी कभी कभी विनोद पूर्ण व्यंग्य भी लिखकर प्रस्तुत करते और मैं उनकी व्यंग्य रचना की श्रेष्ठता और पठनीयता को देखते हुए उन्हें उस समय कभी कभी हरिशंकर परसाई कहकर भी संबोधित करता। उस समय परसाई जी की जबलपुर के साहित्यिक क्षेत्र में काफी चर्चा थी और हमारे स्कूल में एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने काफी रोचक और प्रभावी भाषण दिया था। बुनियादी स्कूल के बाद हमने माडल हाई स्कूल में एडमीशन लिया और पांडेय जी ने वहां भी साहित्यिक लेखन और आयोजनों में भाग लिया और ख्याति प्राप्त की।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सर्विस ज्वाइन करने के बाद भी पांडेय जी का व्यंग्य लेखन निरंतर चलता रहा और साथ ही व्यंग्य रचना पाठ की गोष्ठियं भी। सेवानिवृत्ति के बाद तो उन्होंने पूरे समर्पित भाव से सक्रियता के साथ व्यंग्य लेखन को समय दिया और अपने निवास पर व्यंग्यम की नियमित रुप से गोष्ठियों का आयोजन किया। पांडेय जी ने व्यंग्य लेखन के लिए अनेक उच्च स्तरीय सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए। उनकी अनेक व्यंग्य कृतियों प्रकाशित और पुरस्कृत भी हुई।
श्री जयप्रकाश पांडेय के व्यक्तित्व की अनूठी विशेषताओं को थोडे से शब्दों में व्यक्त करने के लिए मेरी ये पंक्तियां गागर में सागर का उदाहरण बन सकती हैं –
व्यंग्य विधा के पैरोकार थे,
व्यंग्य तुम्हारे धारदार थे,
पैनापन तीखे प्रहार थे
कलमकार तुम शानदार थे।
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श्री यशोवर्धन पाठक
मो – ९४०७०५९७५२
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈