☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – अविस्मरणीय संस्मरण ☆ साभार – स्मृतिशेष जयप्रकाश जी के स्वजन-मित्रगण ☆

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☆  एक अच्छे व्यंग्यकार ही नहीं थे वरन बेहतर मनुष्य  भी थे ☆ श्री गिरीश पंकज ☆

जयप्रकाश पांडेय जी के रूप में एक बेहतर मनुष्य हमारे बीच से चले गए. ये सिर्फ एक एक अच्छे व्यंग्यकार ही नहीं थे वरन बेहतर मनुष्य  भी थे.  पिछले साल जब मैं  पाँच हजार रुपये राशि वाले एक सम्मान के लिए जबलपुर गया था, तो कार्यक्रम के समय से लगातार मेरे साथ रहे. रात को एक जगह ले जाकर मुझे डिनर भी कराया.  एक घटना बताने में  मुझे कोई संकोच नहीं कि जिस सम्मान के लिए मैं गया, उसके पहले एक  ने मुझसे दो-तीन पुस्तकें बुलवाई कि पढ़ना चाहता हूँ. मैंने भेज दी. फिर किसी का फोन आया कि आपको हम एक सम्मान देंगे. लेकिन आपको ₹200 शुल्क देना होगा. मैंने साफ -साफ इनकार कर दिया कि मैं कोई शुल्क नहीं दूंगा. तो पांडेय जी का फोन आया. उन्होंने कहा कि आपको कोई शुल्क नहीं देना है. आयोजकों ने ऐसा नियम ही बना रखा है कि क्या करें. लेकिन आपको आना है. आपका शुल्क मैंने पटा दिया है. आप आ जाएं  इसी बहाने आपके साथ कुछ घंटे बिताने का अवसर मिलेगा. उनके स्नेहभरे आग्रह के कारण मैं जबलपुर गया और लंबे समय तक पांडेय जी के साथ समय बिताया.  जब वे अट्टहास पत्रिका का  अतिथि संपादन कर रहे थे, तब भी उनसे दो बार बात हुई. और उनके सम्पादन में अट्टहास का सबसे खूबसूरत विशेषांक निकला.  उसका कलेवर अभूतपूर्व था. उनका जाना व्यंग्य साहित्य की बड़ी क्षति है. उनको शत-शत नमन!

श्री गिरीश पंकज

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☆  जयप्रकाश पांडेय जी हमेशा जेहन में बने रहेंगे ☆ श्री सुदर्शन कुमार सोनी 

जयप्रकाश जी का अचानक चले जाना अंत्यंद दुखद है। उनके साथ का एक प्रसंग याद आ रहा है। वो व मैं मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में पदस्थ थे। बात होगी 2011-12 की मुझे तब पता नही था कि वो व्यंग्य भी लिखते हैं। मैं वहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत के तौर पर पदस्थ था और वे बैंक में। सेन्टल बैंक आफ इंडिया उमरिया का लीड बैंक था अतः वे आरसेटी रूरल सेल्फ एम्पलायमेंट टेनिंग इस्टटीटयूट का भी कुछ कार्य देखा करते थे। जंहा मैंने कई बैचेस में युवक युवतियों की रोजगारमूलक प्रशिक्षण कार्यक्रम करवाए थे। वहां पर मेरे बंगले में एक नाई गंगू मालिश के लिए आया करता था। वह बहुत बातूनी था लेकिन बडी़ अच्छी अच्छी बातें किया करता था। मैंने उस पर गंगू के नाम से एक कहानी भी लिखी थी। उसका किरदार मुझे बडा़ रोचक लगा तो मैंने अपने व्यंग्य का उसे किरदार बना लिया पुराने कई दर्जन व्यंग्यों में उसका नाम आता है। गंगू जयप्रकाश जी के भी सम्पर्क में था यह मुझे ज्ञात नही था। वहां से आने के बाद संभवतया मुझे पता चला कि उन्होने भी गंगू को अपनी रचनाओं में एक किरदार के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया है। मैं यह जान बडे़ पशोपेश में पड़ गया। मैं उनसे कैसे कह सकता था कि आप यह प्रयोग करना बंद कर दो या वो मुझसे कहते कि आप यह प्रयोग बंद कर दो। काफी बाद में मेरे एक मित्र ने मेरे कुछ व्यंग्य पढ़ते हुए कहा कि आप यह किरदार बदल कर अच्छा सा नाम रखों। मुझे उसकी बात जांच गई और अब गंगू मेरी रचनाओं में गंगाधर है। एक बार मैं उनकी वैगन आर में जबलपुर से उमरिया व्हाया सड़क मार्ग आया भी था। जयप्रकाश जी को बहुत बहुत श्रद्वासुमन वे हमेशा जेहन में बने रहेंगे। जंहा तक मुझे याद है वे हमारी संस्था भोजपाल साहित्य संस्थान के आजीवन सदस्य भी हैं।

श्री सुदर्शन कुमार सोनी

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☆  मन बहुत व्यथित हुआ ☆ श्री सुनील जैन राही

यात्रा के 

अधबीच में जब यह समाचार मिला कि आज जय प्रकाश जी का देवलोक गमन हो गया, मैं मौन रह गया। आत्मीयता से सराबोर व्यक्ति/घनघनाती आवाज/फोन उठाते ही ऐसा प्रतीत होता दिन सफल हो गया। कई बार उनकी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृया देने हेतु मैंने कई बार उन्हें फोन किया। कभी निराशा मुझे हाथ नहीं लगी। जब उनकी रचना “अस्थि विसर्जन का लफड़ा” पढ़ी तो मुझे याद है लगभग सवा घंटे बात हुई। ठहाकों से शुरू और ठाकों पर समाप्त ऐसी बातचीत किसी साहित्यिक मित्र से शायद ही कभी किसी से हुई हो। आलोचना और प्रशंसा के मामले में कबीर थे। 40, 000/- का चेक/डांस इंडिया डांस ने आँखें सजल की थीं और अस्थि विसर्जन पर खाकी पर परिश्रमिक शब्द गूंज उठे।

मन बहुत व्यथित हुआ।

व्यंग्य का उद्दंड विद्यार्थी

श्री सुनील जैन राही

नई दिल्ली / 28/12/2024

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☆  व्यंग्य लेखन में परसाई की परंपरा को आगे बढ़ाया  ☆ श्री राजशेखर चौबे ☆

पूरे देश में शायद एक भी ऐसा व्यंग्यकार नहीं होगा जिससे जयप्रकाश पांडे जी की बात नहीं हुई हो। वे लगभग सभी से बात करते थे। आपके अच्छे व्यंग्य पर वे जरूर दाद देते थे, मैसेज करते थे जब उन्हें लगता तो फोन भी जरूर करते थे। मुझे भी उनका सानिध्य मिला। मेरी उनसे पहली मुलाकात 2016 में जबलपुर में अट्टहास के कार्यक्रम में हुई थी। इसके बाद उनसे तीन-चार बार मुलाकात हुई और सभी मुलाकातें यादगार बन गई। व्यंग्य के एक कार्यक्रम में वे रायपुर भी आए थे। जून 2024 में जबलपुर जाना हुआ पर उनसे मुलाकात नहीं हो सकी थी। फोन पर जरूर बात हुई थी। तभी उन्होंने अपनी तबियत के बारे में बताया था। उस समय भी वे काफी पॉजिटिव थे और ऐसा नहीं लग रहा था कि वे इतनी जल्दी हम सब को छोड़कर चले जाएंगे। वे जबलइपुर के थे और उनकी आवाज में जबलपुरिया टोन था। उनकी आवाज में एक अलग तरह की मिठास थी। लगभग डेढ़ महीने पहले फोन आया कि उनके मित्र मेरे छत्तीसगढ़ी व्यंग्य को अपनी पुस्तक में लेना चाह रहे हैं। उस समय भी लंबी बात हुई थी। उन्होंने व्यंग्य लेखन में परसाई की परंपरा को आगे बढ़ाया। उनके कई व्यंग्य और व्यंग्य संग्रह डांस इंडिया डांस को हमेशा याद किया जाएगा। उनके व्यंग्य “अस्थि विसर्जन का लफड़ा ” काफी चर्चित हुआ था जिसे व्यंग्य यात्रा पत्रिका ने पुरस्कृत किया था। जयप्रकाश जी हम सब को छोड़कर चले गए हैं परंतु वे हमेशा याद किए जाएंगे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिवार वालों, मित्रों व शुभचिंतकों को यह दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

राजशेखर चौबे

रायपुर

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☆  प्रिय जय प्रकाश तुम बहुत याद आओगे ☆ श्री जयंत भारद्वाज ☆

साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति तो है ही साथ ही हमारा एक जिंदादिल,हंसमुख,मिलनसार दोस्त चिरनिंद्रा में चला गया।

भाई जयप्रकाश के साथ जबलपुर में तुलाराम चौक शाखा में पदस्थी के दौरान अविस्मरणीय यादें हैं।

प्रसिद्ध व्यंग्यकार स्वर्गीय हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य साहित्य पर आधारित  मेरे द्वारा बनाए गए व्यंग्य चित्रों की  तीन दिवसीय प्रथम प्रदर्शनी दुर्गावती संग्रहालय  में उनके ही संयोजन में  लगाई गई ।

प्रिय जय प्रकाश तुम बहुत याद आओगे हम तुम्हे कभी भूल नहीं पाएंगे।

विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🏽

श्री जयंत भारद्वाज

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☆  व्यंग्य लेखन में परसाई की परंपरा को आगे बढ़ाया  ☆ डॉ ए के तिवारी ☆

चाहे  कहीं रहे जय प्रकाश पांडे मगर मुझसे फोन /मोबाइल  पर बात कर लेते थे. अब कौन मुझे मोबाइल फ़ोन पर कॉल करेगा–?? व्यक्तिगत विषय हों या पारिवारिक साहित्य हों या बैंक का, श्री सुरेश तिवारी जी हों या डॉ अशोक कुमार  शुक्ल सब पर खूब चर्चा करता था J P .अब याद कर रहे बस. मेरे से कई बार कहा कि अपना व्यंग्य संकलन प्रकाशित कराओ . लघुकथा संग्रह भी कब छपेगा.अपनी स्वास्थ्य पर भी अनेक बार बताया तो मैंने कहा था पुणे और मुम्बई जाओ फॅमिली मेंबर्स के साथ. लेकिन विधाता क्या करेगा मालूम ना था l ओम शान्ति शान्ति I 🙏

डॉ ए के तिवारी

पोद्दार कॉलोनी सागर

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☆ जयप्रकाश जो कभी हारा ही नहीं ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

जिस व्यक्ति से कभी आमने सामने मिला नहीं,लेकिन मिलने की आस अंतिम समय तक कायम रही, आत्मीय इतने कि आज से सात वर्ष पूर्व, जब मैं उपचार हेतु अस्पताल में भर्ती था, तो फेसबुक के साधारण परिचय के बावजूद, इनके एकमात्र फोन ने मुझे चौंका दिया । बस तब से परिचय की यह कड़ी एक मजबूत गांठ बन चुकी थी, लेकिन किसे पता था, प्रदीप और जयप्रकाश के नसीब में एक होना लिखा ही नहीं था । जयप्रकाश जो कभी हारा ही नहीं, आज भी उसकी याद का दीपक हमारे दिलों में प्रदीप्त है,और सदा रहेगा । सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में सदा व्यस्त रहने के कारण कुछ समय से स्वास्थ्य के बारे में चिंतित थे, एक दो बार बात हुई, लेकिन हंसकर टाल गए और फिर हंसते हंसते ही अचानक हम सबको छोड़कर चले भी गए । जबलपुर से मेरा परिचय अब सिर्फ परसाई और जयप्रकाश तक का ही रह गया है, अफ़सोस दोनों मुझसे दूर चले गए ।। ॐ शान्ति..!!

श्री प्रदीप शर्मा 

इंदौर 

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☆  अंत समय तक रचनाधर्मिता में लगे रहे ☆ श्री मुकेश गर्ग असीमित ☆

अत्यंत दुखद समाचार। भगवान उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें ।  🙏अंत समय तक रचनाधर्मिता में लगे रहे हैं ।अट्टहास पत्रिका के दिसंबर अंक के लिए उनके द्वारा आतिथ्य संपादन करना था। मुझ से भी एक रचना माँगी गई तो जो मैंने उन्हें सहर्ष आभार के साथ प्रदान की थी ,कभी मिला तो नहीं उनसे लेकिन चंद महीनों में ही एक मौन सा संवाद और उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रहता था। 

श्री मुकेश गर्ग असीमित

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☆  समर्पित व्यंग्यकार पाण्डेय जी ☆ श्री  सुरेश मिश्रा “विचित्र” व्यंग्यकार 

जयप्रकाश पांडे जी भले ही हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उन्होंने शहर के व्यंग्यकारो को एकत्र करते हुए व्यंगम संस्था का अच्छा खासा संचालन किया। और प्रत्येक माह होने वाली व्यंग्य गोष्ठी को अपने ही निवास पर आयोजित करते रहे, यह एक बड़ी उपलब्धि रही है।जिसने व्यंग्य लेखन में शहर को आगे रखा है। आपका व्यंग्य लेखन और व्यंग्य की बारीकियों को, विसंगतियों को,उजागर कर अपने लेखन मे पैनापन बनायें रखा। व्यंग्य लेखन के लिए उनके द्वारा किया गया यह समर्पित भाव एवं कार्य हमेशा याद रखा जाएगा।

सादर श्रृद्धासुमन अर्पित है 🙏🌹🙏

श्री  सुरेश मिश्रा “विचित्र” व्यंग्यकार

जबलपुर ( मध्य प्रदेश)

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☆  विनम्र श्रद्धांजलि ☆ श्री ओ.पी.सैनी ☆

मेरी पहली मुलाकात श्री पांडेय जी से 6 वर्ष पूर्व व्यंगम की गोष्ठी के अवसर पर हुई थी । पहली ही मुलाकात मैं वे सबसे अलग अनुभूत हुए । नया सदस्य होने के बाद भी उन्होंने मुझे  आत्मीय सम्मान दिया । जब-तक उनसे मुलाकात होती रही वे बहुत ही मिलनसार और सहयोग देने मैं तद्पर रहे । किसी कारण वश 2 माह से मेरी पेंशन रुकी हुई थी जब उनको इस बारे मैं पता चला तो उन्होंने भोपाल स्थित पेंशन विभाग मैं बात की जिससे 1-2 दिन मैं ही मेरी पेंशन मुझे मिल गयी । इतने सहयोगी थे पांडेय जी । उनकी आत्मा के श्री चरणों में मेरी विनम्र श्रद्धांजलि ।

श्री ओ.पी.सैनी

जबलपुर (म.प्र )

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☆ संस्मरण (35-40 वर्ष) पूर्व का…  ☆ श्री के. पी. पाण्डेय ‘वृहद‘ ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी से मेरी पहली मुलाक़ात मेरे निवास  एम -193 शिव नगर के सामने हाउसिंग बोर्ड का एम आई जी 20 ख़रीदा ओर उसे किराए  से देना चाहा था दो किरायेदार रखने थे पाण्डेयजी ने किसी बैंक कर्मचारी को बेच दिया था।  उन दिनों में लिखता तो था किन्तु अधिकतर कविताएं लिखता था पर मुझे तब नहीं मालूम था कि  ये व्यंग विधा के अच्छे लेखक है। व्यक्तिगत मुलाक़ात के अतिरिक्त मैं पाण्डेयजी को इस से पूर्व इसलिए भी जानता था कि  मेरे मित्र प्रकाश चंद दुबे जो मेरे सहकर्मी ओर परसाई जी के भांजे है और अक्सर उनके निवास पर मेरा व जय प्रकाशजी का आना होता था। 

कालांतर में पाण्डेयजी बैंक की नौकरी में इधर उधर रहे वा मैं भी ट्रांसफर होता रहा। सेवा निवृत्ती के काफ़ी दिनों बाद जय प्रकाश जी से मुलाक़ात एक साहित्यिक  समारोह में हुई तब मैं उनके व्यंग्य विधा को गहराई से जान सका था इधर करीब 5-6 वर्षों  से व्यंग पढता तो उन्हें बधाई अवश्य देता। 

आत्मीयता का दायरा उस समय से ओर अधिक बढ़ा जब से मुझे उनके निवास पर व्यंगम की  मासिक गोष्ठी में शरीक होने का मौका मिला श्री पाण्डेयजी के माध्यम से ई -अभिव्यक्ति पत्रिका एवम अट्टहास मे मेरी व्यंग रचना (यदि  परसाईजी ना होते तो क्या होता?) प्रकाशित हुई।  पाण्डेयजी के इस आत्मीय सहयोग एवम परमार्थ का में ऋणी हूँ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि साथ ही ईश्वर से प्रार्थना  है कि परिवारजनों को असमय आए इस असीम कष्ट को सहने की शक्ति प्रदान करें पुनः विनम्र श्रद्धांजलि

श्री के. पी. पाण्डेय ‘वृहद‘

मो. 9424746534

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 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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