श्री श्याम खापर्डे
☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – मार्गदर्शक स्वर्गीय जयप्रकाश पांडे जी ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆
स्वर्गीय जय प्रकाश पांडे जी से मेरी पहचान फेसबुक पर हुई थी। मैं उनके व्यंग्य का प्रशंसक था. हम दोनों भारतीय स्टेट बैंक में अधिकारी थे। परंतु हम दोनों का परिचय नहीं था, मैंने उनका नाम जरुर सुना था और वह बहुत ही शानदार व्यंग लिखते थे। मैं भी उनके व्यंग्य को पसंद करता था और अपनी टिप्पणी उन्हें भेजता था वह भी मेरी कविताओं के प्रशंसक थे और मेरी कई बार प्रशंसा करते थे। उन्होंने मुझे एक बार कहा कि आपकी दो-तीन कविताएं मुझे भेजिए मैं अभिव्यक्ति में प्रयास करता हूं मैंने अपनी तीन कविताएं भेजी उनका फोन आया कि कविताएं अच्छी है, मैं श्री हेमंत बावनकर जी को भेजता हूं वह संपादक है वह आपसे संपर्क करेंगे। आप उन्हें संक्षिप्त में अपना परिचय दे देना। कुछ देर के बाद श्री हेमंत बावनकर जी का फोन आया और उनसे पहली बार बातचीत हुई उन्होंने मेरी कविताएं स्वीकृत की और मेरा स्तंभ ” क्या बात है श्याम जी ” की शुरुआत ई-अभिव्यक्ति पर हुई।
स्वर्गीय जयप्रकाश पांडे जी से मेरी पहली मुलाकात भोपाल में भारतीय स्टेट बैंक के कविता के लिए साहित्य के सम्मान के लिए आयोजित कार्यक्रम में हुई जहां मुझे भी आमंत्रित किया गया था।
सम्मान के बाद मैंने अपनी कविता का पाठ किया जिसे सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने मेरी प्रशंसा की और कविता के लिए बधाई दी। उसके बाद हम दोनों अच्छे मित्र बन गए।
दूसरी बार जब वह अट्टहास के ” परसाई “अंक के अतिथि संपादक थे तब मैंने उनसे उस अंक की एक प्रति मंगवाई, उन्होंने भेजी और मुझसे कहा इसको पढ़ कर आप इस अंक की समीक्षा लिखिए . मैंने उनसे कहा कि मुझे समीक्षा लिखना नहीं आता वह बोले की प्रयास करो और लिखो। मैंने उस अंक कों पढ़कर अपनी तरफ से प्रयास किया और समीक्षा लिखकर उनको भेजा।
मेरी समीक्षा को पढ़कर उन्होंने मुझे फोन किया और कहां कि आपने बहुत मेहनत की है और यह समीक्षा लिखी है जो बहुत ही सुंदर है और मेरी उम्मीद और अपेक्षाओं से भी बढ़कर है मैंने यह समीक्षा कई ग्रुप में भेजी हैं और पेपर में भी भेजी है, वह अभिव्यक्ति में भी प्रकाशित हुई थी।
उनका हमेशा मार्गदर्शन मुझे मिलता रहा. वह मेरे लिए मित्र से भी बढ़कर थे, मैं अपनी बेटी के यहां कटनी आया हुआ हूं और उनसे मिलने अगले सप्ताह जबलपुर जाने वाला था, अचानक उनके स्वर्गवास का समाचार फेसबुक में पढ़कर बहुत ही दुख हुआ .मेरा मन उसे दिन से व्याकुल है और अंतकरण दुख से भर गया है।
मैंने एक अच्छा मित्र, मार्गदर्शक, जान से भी प्यारा साथी खो दिया है इसका दुख मुझे जीवन पर्यंत रहेगा।
ईश्वर मृत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें एवं उनके परिवार को यह दुख सहने की क्षमता दे यही प्रार्थना है।
ओम शांति। विनम्र श्रद्धांजलि।
उनको समर्पित एक कविता आपसे साझा करना चाहूँगा —
☆ जयप्रकाश पांडे ☆
तुम मंझधार में हमको
छोड़ कर चले गए
स्नेह के धागों को
तोड़ कर चले गए
तुम आज के युग के
निर्भीक कलमकार थे
शब्दों में जिसके चुभन हो
वो व्यंग्यकार थे
विसंगतियों को चित्रित करते
चित्रकार थे
” परसाई “के व्यंग्यों के
सच्चे पैरोकार थे
क्या खता हुई
जो मुंह मोड़ कर चले गए ?
स्नेह के धागों को
तोड़ कर चले गए
तुमने मुझे लिखने की
कला सिखाईं थी
प्रोत्साहित किया
मेरी हिम्मत बंधाई थी
शब्दों के अर्थ समझाए
सही राह दिखाई थी
मेरी कविता सुप्त थी
तुमने जीवंत बनाई थी
क्या सजा दी है
मेरे सर गम का घड़ा
फोड़कर चले गए
स्नेह के धागों को
तोड़ कर चले गए ?
तुम्हारे शोक में
हर इंसान रो रहा है
जमीं रो रही है
आसमान रो रहा है
कलम रो रही है
व्यंग्य का
हर दृष्टिकोण रो रहा है
व्यंगम के वह तीर और
उच्चारण रो रहा हैं
क्या मिला
चाहने वालों को
अश्रुओं से जोड़कर चले गए ?
स्नेह के धागों को
तोड़ कर चले गए
तुमको भूलना भी हमको
कितना मुश्किल है
कैसे द्रवित ना हो
हमारे सीने में भी दिल है
सब उदास है
सूनी सूनी महफिल है
तुम्हें छीन ले गया
विधाता कितना संगदिल है
क्या हुआ जो
तुम झंझोड़ कर चले गए ?
स्नेह के धागों को
तोड़ कर चले गए
शोकाकुल परिवार और मित्र है
नियति का भी खेल विचित्र है
तुम सहज सरल स्पष्टवादी हो
हर कार्य साफ सुथरा और चरित्र है
क्यों आइना दिखा कर
कचोट कर चले गए ?
तुम मंझधार में हमको
छोड़कर चले गए
स्नेह के धागों को
तोड़ कर चले गए /
☆
श्री श्याम खापर्डे
भिलाई जिला दुर्ग छत्तीसगढ़
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈