श्री रमाकांत ताम्रकार

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – साहित्य के सूर्य – जय प्रकाश पांडे जी ☆ श्री रमाकांत ताम्रकार 

श्री जय प्रकाश पांडे जी जैसा व्यक्ति अब मिलना असम्भव है क्योंकि जिनका कोई नहीं होता उनके श्री पांडे जी होते थे. हरएक व्यक्ति के साथ श्री पांडे जी खड़े थे जिससे उनके साथ जो भी व्यक्ति होता वह अपने को सबल मानता था. अब इस समय बहुत-बहुत ही बड़ी रिक्तता आ गई है. जिसकी पूर्ति असंभव है. श्री पांडे जी अद्भुत जिजीविषा एवं दृढ़ संकल्प के धनी थे. उनका दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट था. इतनी बड़ी पोस्ट पर होने के बाद भी सहज और सरल हृदय थे.

हमने कई साहित्यिक यात्राएँ की जिसमें मुझे उनका साथ कृष्ण और सुदामा सरीखा मिलता था. साहित्यिक कार्यक्रमों में आप मुझे हमेशा आगे रखते थे. 9वे दशक से हमारा साथ था. उन्होने साहित्य जगत को अमृतमय योगदान दिया. श्री परसाई जी के जन्मदिन के अवसर पर उनके विरोध के बावजूद बहुत ही उत्कृष्ट कार्यक्रम किया था जिसकी पूरे देश में प्रशंसा हुई. इसी प्रकार श्री परसाई जी का उत्कृष्ट प्रथम साक्षात्कार भी आपने लेकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था. एसे ही उन्होंने अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया. जिनकी चर्चा आज भी होती है. अनेकों शीर्षस्थ सम्मान उत्कृष्ट लेखन हेतु उन्हें मिले. जब कोई उन्हें सम्मानित करने की बात कहता तो वे किसी दूसरे अच्छे लेखक का नाम सुझाते. पुरूस्कार समितियों में वे बिल्कुल पारदर्शिता और निष्पक्षता से अडिग होकर अपना पक्ष रखते.

आप ई-अभिव्यक्ति पत्रिका के सम्पादक, व्यंग्य की महत्वपूर्ण पत्रिका अट्टहास के अतिथि सम्पादक के साथ-साथ अनेकों पत्रिकाओं का संपादन करते रहते थे. वर्तमान में आप व्यंग्य के लिए कटिबद्ध थे. इसलिए व्यंग्य के उन्नयन के लिए आपने जबलपुर नगर के व्यंग्यकार का एक समूह व्यंग्यम बनाया. जिसमें पिछले साढ़े आठ साल से (लगभग) लगातार व्यंग्य गोष्ठियों का आयोजन अपने घर के लॉन में आयोजित कर रहे थे. य़ह कार्यक्रम इतनी सादगी और गंभीर विमर्श का होता है जिसकी चर्चा संपूर्ण देश में हो रही है. व्यंग्य के प्रति उनका स्पष्ट और सटीक नजरिया था.

आप को जब पता चला कि कैंसर हो गया है तब उनकी य़ह दृढ़ता थी कि मैं कैंसर को हरा दूँगा. वे कभी भी कैंसर से डरे नहीं. उन्होंने समान्य रूप से 11 कीमोथेरेपी कराई. हँस मुख और सहयोगी भावना से अंतिम समय तक लगे रहे. उनका जुझारूपन हमारी प्रेरणा है. वे अक्सर मुझसे और अपने साथियों से कहते कि जब तक मैं जिंदा हूँ तब तक व्यंग्यम की गोष्ठी मेरे ही घर में होगी और य़ह वचन उन्होंने निभाया भी. वे अक्सर मुझसे कहते थे कि अब व्यंग्यम तुम लोगों को चलाना है, इस व्यंग्य की मशाल को कभी बुझने नहीं देना कुछ स्वार्थी लोग इस पर आधिपत्य जमाने की कोशिश करेंगे पर डटे रहना. मैं उनसे कहता आप कहाँ जा रहे है अपन सब मिलकर ही व्यंग्य विधा का काम करेंगे. वो तो करेगें ही पर किसी का कोई भरोसा नहीं है अब देखो न सुमित्र जी चले गए. एसा वे कहते थे. शायद उन्हें आभास हो गया था किन्तु उन्होंने इस बात को किसी पर भी जाहिर नहीं किया.

मेरी उनसे दिन में 3 से 4 बार चर्चा होती थी और हर चर्चा में व्यंग्य एवं साहित्य के उन्नयन की चर्चा होती जिसमें नई नई योजना नए कार्यक्रमों की गहन बात होती. हम एक-दूसरे के व्यंग्य की मंजाई करते फिर उसे प्रस्तुत करते.

12 दिसम्बर को नागपुर जाने से पहले करीब लगभग डेढ़ घंटे हमारी चर्चा हुई थी. फिर नागपुर में ऑपरेशन के पहले उन्होंने कहा मैं ऑपरेशन कराकर अधिकतम सोम या मंगल तक लौट आऊंगा फिर अपन व्यंग्यम की गोष्ठी करेगें. मैंने कहा पहले तबीयत फिर गोष्ठी की बात करेंगे. तब उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा अरे सब ठीक है थोड़ा ऑपरेशन हो जाएगा तो और ठीक हो जाएगा. पर क्या पता था कि मेरी उनसे यह अंतिम बात है. नागपुर से लाकर जब उन्हें जबलपुर के अस्पताल में भर्ती किया तब हम सभी व्यंग्यम के साथी मिलने गए थे. मैंने उनके कंधे पर हाथ रखकर आवाज लगाई तो उन्होंने आंख खोली, आंखों में बहुत तेज था कुछ और करने की ललक जो हमारी चर्चा में होती थी. पर ईश्वर को कुछ और मंजूर था और 26 दिसम्बर 24 को श्री पांडे जी को अपने पास बुला ही लिया. हम सब प्रति क्षण प्रार्थना करते ही रह गए.

 श्री जय प्रकाश पांडे जी के जाने से मेरे जीवन में रिक्तता आ गई है. पर मुझे विश्वास हैं कि श्री पांडे जी सूक्ष्म रूप में हम सबके साथ है उन्हीं की प्रेरणा से उनके विचारों को आगे ले जाना है.

 मैं अपने सबल सच्चे मित्र के श्रीचरणों में विनम्र श्रध्दांजलि इस आशय से दे रहा हूँ कि वे सदैव हमारे साथ रहेंगे.

 श्री रमाकांत ताम्रकार

जबलपुर

मोबाइल 9926660150

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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