डॉ. प्रदीप शशांक

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – सहज सरल जिंदादिल व्यक्तित्व के धनी  ☆ डॉ. प्रदीप शशांक

जय प्रकाश पांडे जी, क्या कहूँ इस शख्सियत के विषय में ? सहज, सरल, सौम्य, सदा हंसते हंसाते रहने वाले जिंदा दिल व्यक्तित्व के धनी, प्रेमी निच्छल हृदय, एक बार जो भी इनसे मिला इन्हीं का हो गया। अच्छे व्यक्तियों के लिये जितनी उपमा होती हैं वह इस हरदिल अजीज के लिए भी कम पड़ जावेंगी।

जय प्रकाश जी के साहित्यिक कृतित्व पर अनेक मित्र प्रकाश डालेंगे। हम केवल उनके दिलदार व्यक्तित्व के विषय में बात करेंगे।

पांडे जी से हमारा परिचय लगभग 8 वर्ष पुराना है। किसी पत्रिका में प्रकाशित मेरा व्यंग्य पढ़कर उन्होंने हमें फोन किया और व्यंग्य की तारीफ करते हुए हमें बधाई दी। प्रथम फोन के बाद ही उनकी आत्मीयता ने हमें इतना प्रभावित किया कि हम अच्छे मित्र बन गये। उसके बाद शहर में आयोजित अनेकों गोष्ठियों में मुलाकात होती रही और आपसी बातों में हंसी मजाक और ठहाकों के बीच हमारी मित्रता परवान चढ़ती गई। प्रायः सप्ताह, 15 दिन में उनसे फोन पर एक दूसरे की साहित्यिक गतिविधियों पर चर्चा होती रहती थी। ठहाकों के बीच उनका मिठास से भरा “जय हो” कहना, अंतर्मन तक खुशियों से भर देता था।

कोरोना काल के पहले एक दिन शाम 4 बजे उनका फोन आया, शशांक तुम आराम तो नहीं कर रहे हो? हमने कहा -आराम का तो समय है, लेकिन आप के लिये तो समय ही समय है। उन्होंने कहा- मैं तुम्हारे ही क्षेत्र में हूँ, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज में, बस पांच मिनिट में तुम्हारे घर आ रहा हूँ। हमने कहा-स्वागत है आपका।

पांच मिनिट बाद वह हमारे घर पर थे। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उनके लड़के ने श्री राम इंजीनियरिंग कालेज में कैंटीन ली है अतः मैं आज यहां आया था सो सोचा तुमसे मिलता चलूं। श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज से लगी हुई हमारी कालोनी है।

घर पर वह प्रथम बार आये थे, बातों और ठहाकों के दौर के बीच में हमारी श्रीमती जी ने चाय, नमकीन लाकर रख दिया। पांडे जी की बातों का प्रभाव ऐसा था कि श्रीमती जी भी आकर हम लोगों के पास बैठ गईं और उनकी बातों का आनंद लेने लगीं। बातों में मशगूल हम लोगों को पता ही नहीं चला कि कब 6 बज गये।

श्रीमती जी को ऐसा बिल्कुल भी महसूस नहीं हुआ कि पांडे जी से पहले बार मिलीं हैं, ऐसा लगा कि वर्षों की जान पहचान है।

फिर तो जब भी वह कालेज आते तो हमारे घर जरूर आते, आते ही कहते – भाभी जी चाय बहुत अच्छी बनाती हैं तो हम भाभी जी के हाथ की बनी चाय पीने आये हैं।

हाजिर जवाबी, और मजाकिया स्वभाव के धनी पांडे जी को हमने 2024 की रैंकिंग में 43 वें नंबर पर आने हेतु बधाई दी तो उन्होंने ठहाका लगाते हुए कहा – धन्यवाद।

किंतु हमें असंतोष है नंबर एक के आदमी को इतने पीछे कर दिया। आज आत्ममुग्धता और महात्वाकांक्षा का युग है हर आदमी नंबर 1 वाला और ये लोग राजनीति खेल कर कटुता पैदा कर रहे हैं। मजाक में ही उन्होंने उस सूची पर कटाक्ष कर दिया।

दो वर्ष पूर्व 23 दिसंबर 22 को पांडे जी के मित्रों का माडेलियन ग्रुप( जबलपुर मॉडल हाई स्कूल में पढ़े उनके साथी मित्र) का ओरछा (राम राजा का किला) पिकनिक मनाने हेतु जाने का प्रोग्राम बना। सभी 65 +उम्र के उनके मित्र सपत्नीक जाने वाले थे। हमारे साले साहब शेखर सिंह राजपूत भी उस ग्रुप में थे। इत्तेफाक से बस में 3 सीट खाली थीं तो हमारे साले का फोन आया और ओरछा चलने को कहा, किंतु उस समय मेरे घुटने में ज्यादा तकलीफ होने का कारण हमने जाने से मना कर दिया, किंतु श्रीमती जी को भेज दिया। हमारी श्रीमती जी अपनी भाभी के साथ जब बस में आगे की सीट पर बैठी थीं तभी पांडेय जी भी अपनी श्रीमती के साथ बस में चढ़े और हमारी श्रीमती जी को देखकर हैरान रह गये और सोच में पड़ गये कि यह यहाँ कैसे? खैर, नमस्कार करने के बाद वह भी पीछे जाकर अपने अन्य दोस्तों के साथ बैठ गये।

कुछ देर बाद हमारी श्रीमती जी का फोन हमारे पास आया और उन्होंने बताया कि हम लोग आराम से बस में बैठ गये हैं। उन्होंने बताया कि पांडे जी भी आये हैं अपनी श्रीमती जी के साथ।

हमने पांडे जी को फोन लगाया, फोन उठाते ही उन्होंने कहा, भाभी जी बस में हैं लेकिन … हमने उनकी शंका का समाधान करते हुए कहा- आप के माडेलियन ग्रुप में हमारी मॉडल भी साथ जा रही हैं, वह आपके मित्र शेखर की बहन हैं। अरे..तुमने पहले कभी नहीं बताया, शेखर हमारे साथ बाजू में ही बैठे हैं, लो बात कर लो। हमने अपने साले साहब को बताया कि पांडे जी हमारे भी पुराने साहित्यिक मित्र हैं।

उसके बाद पांडे जी, हमारी श्रीमती जी को शेखर के बहन होने के नाते और ज्यादा सम्मान देने लगे। जब भी फोन करते हम दोनों से ही बात करते।

लगभग 8माह पूर्व शायद अप्रेल में ही उन्होंने बताया था कि पेट में कुछ परेशानी है। अतः यहां पर डॉक्टर को दिखाया है लेकिन आराम नहीं लग रहा है। उसके बाद वे बांबे गये वहां जांच के दौरान उनको आंत में कैंसर की शिकायत बताई। कुछ दिनों बाद वह नागपुर भी गये। बाद में जबलपुर में कीमो करवाने सप्ताह में एक बार अस्पताल जाते थे। एक बार हमने फोन लगाया तो घंटी पूरी गई लेकिन फोन नहीं उठा। हमें लगा कि कहीं व्यस्त होंगे। कुछ देर बाद उनका फोन आया और उन्होंने बताया कि उनका कीमो हो रहा था। हमने उनसे कहा कि आप आराम करो, बाद में बात करेंगे लेकिन उन्होंने हंसते हुए कहा अरे नहीं, नर्स अपना काम कर रहीं है, हम अपना काम करें और उन्होंने हंसते हुए हमसे बात करना शुरू कर दी। इतने दर्द के बाद भी उन्होंने हमें यह महसूस नहीं होने दिया।

अभी 27 नवंबर को जब उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि कीमो पूरे हो गये हैं, अब नागपुर जाकर टेस्ट करवाना है कि कितने परसेंट रिकवरी हुई है। हमने कहा कि आप जल्द ठीक हो कर आओ, बहुत दिनों से घर नहीं आये हो। फोन स्पीकर में ही था, हमारी श्रीमती जी ने भी उनसे कहा कि आप जल्दी अच्छे होकर आओ, चाय पीने। उन्होंने कहा- हमने चाय पीना छोड़ दिया है किन्तु आपके हाथ की चाय पीने एक बार जरूर आऊंगा।

हम लोग उनके आने का इंतजार ही करते रह गये।

इस बीच उनके निधन के समाचार की अफवाहें भी उड़ने लगीं। हम सब स्तब्ध थे, किंतु उनकी जीवटता बार बार उन्हें मौत के मुंह से बाहर लाती रही।

25 दिसंबर को साले साहब का फोन आया और उन्होंने बताया कि पांडे जी को जबलपुर लेकर आ गये हैं और वह यहां पर गेलेक्सी अस्पताल में आई सी यू वार्ड में भर्ती हैं। 25 दिसंबर की शाम को 5.30 पर हम श्रीमती जी के साथ गेलेक्सी अस्पताल पांडे जी को देखने पहुंचे। उनकी हालत देखकर दिल धक्क से हो गया। इतना दिलदार, हंसमुख इंसान की ऐसी स्थिति, आंखें देख रही थी उनको लेकिन दिल को विश्वास ही नही रहा था कि यह पांडे जी ही हैं। उनके बेड के पास उस समय केवल उनकी पुत्री ही थी। श्रीमती जी ने उसे सांत्वना दिया और कहा कि पांडे जी जल्दी ठीक हो जावेंगे, पुत्री की आंखों में अश्रु झिलमिलाने लगे।

नियति को शायद यही मंजूर था। 26 दिसंबर की सुबह उनके निधन की खबर उनके पुत्र की ओर से मिली।

भगवान को भी अच्छे लोगों की शायद ज्यादा जरूरत होती है तभी उन्हें अपने पास बुला लिया।

वे सह्रदय, हंसमुख एवं दिलदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। सदा हंसते ठहाके लगाते रहते थे। उनका यूं अचानक चले जाना हम सभी मित्रों की व्यक्तिगत क्षति है। उन्हें अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि।

*****

डॉ. प्रदीप शशांक

श्रीकृष्णम ईको सिटी, श्रीराम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर, म.प्र. 482002 मोबाइल -9131485948

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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