श्री प्रतुल श्रीवास्तव
☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – सरल हृदय के तीखे कलमकार थे जयप्रकाश पांडे ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
(सादर श्रद्धांजलि)
ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति जैसा सोचता-विचारता है, जैसा कार्य करता है वैसा ही दिखने लगता है, वैसी ही उसकी वाणी और स्वभाव भी हो जाता है। चिंतक, कवि, कहानीकार, व्यंग्यकार, शिक्षक, नेता सभी चेहरे और वाणी से पहचान लिए जाते हैं, किन्तु इसके विपरीत भाई जयप्रकाश पांडे की सौम्य-सुदर्शन छवि, मुस्कुराहट और मधुर वाणी याने की उनका टोटल “सॉफ्ट लुक” देखकर आभास नहीं होता था कि वे व्यंग्यकार के रूप में इतनी कड़वी – कठोर बात लिखने-कहने वाले व्यक्ति थे।
शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय, जबलपुर से स्नातकोत्तर एवं गुरुघासीदास वि वि बिलासपुर से सी.डी. ए. करके आप 1980 में भारतीय स्टेट बैंक में सेवारत हुए और 2016 में मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए। अब जिसकी स्वयं की आदत कामचोरों, भ्रष्टाचारियों, सामाजिक विसंगतियों और शासन-प्रशासन की कमजोरियों-गल्तियों को ताड़ने और उस पर करारा लिखने की थी उसे स्वयं तो अच्छा काम करके आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना ही पड़ता। सो भाई जयप्रकाश जी ने बैंक के कार्यकाल में उत्कृष्ट कार्यों पर 48 सम्मान प्राप्त कर अपना और पूरे परिवार व मित्रों का गौरव बढ़ाया। उनके द्वारा रचित व्यंग्य और कहानियों का प्रकाशन देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में हुआ। आकाशवाणी जबलपुर, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर से प्रसारण हुआ। विचारपूर्ण श्रेष्ठ लेखन से उनके प्रशंसकों के साथ-साथ उनकी कीर्ति भी बढ़ती गई। उन्होंने परसाई स्मारिका, नर्मदा परिक्रमा, ई-अभिव्यक्ति पत्रिका आदि का संपादन किया। उनके प्रकाशित व्यंग्य संग्रह “डांस इंडिया डांस” की हर ओर चर्चा हुई। उनका एक और व्यंग्य संग्रह “रूप बदलते सांप” अभी अभी उस समय प्रकाशित होकर आया जब वे गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के कारण नागपुर के एक चिकित्सालय में उपचार रत थे, अपने इस व्यंग्य संग्रह को लेकर वे बहुत उत्साहित थे। पुस्तक के सटीक शीर्षक के लिए उनकी मुझसे कई बार चर्चा हुई। अफसोस कि वे अपनी इस नव प्रकाशित पुस्तक को नहीं देख पाए। जयप्रकाश जी के सृजन पर उन्हें कबीर सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान, व्यंग्य यात्रा पत्रिका सम्मान, साहित्य सरोज पत्रिका सम्मान, कादम्बरी सम्मान सहित अनेक सम्मान मिले। नवंबर 24 में जबलपुर में आयोजित एक समारोह में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री अनूप श्रीवास्तव ने उन्हें अट्टहास और माध्यम का “व्यंग्य गौरव अलंकरण” प्रदान किया। वे कादम्बनी के अ. भा. व्यंग्य लेखन प्रतियोगिता के विजेता भी रहे हैं। जयप्रकाश जी आजीवन देश की विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर समाज में रचनात्मक वातावरण बनाने में सक्रिय रहे। भ्रमण में रुचि, ज्ञान पिपासा, मिलन सरिता और विश्वसनीयता जैसे गुणों के कारण वे जिससे मिलते उसे अपना बना लेते थे। जयप्रकाश जी के असमय निधन से उनके गृह नगर जबलपुर सहित देश के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले उनके मित्र अत्यंत दुखी हैं। साहित्य जगत ने न सिर्फ एक अच्छा लेखक वरन एक अच्छा व्यक्ति भी खो दिया।
ख्यातिलब्ध साहित्यकार डॉ. कुंदन सिंह परिहार के अनुसार “जयप्रकाश पांडे के हृदय में देश के करोड़ों वंचितों और लाचार लोगों के लिए पर्याप्त हमदर्दी थी। वे बार-बार हमारे समाज की “क्रोनिक” व्याधियों तक पहुंचने का प्रयास करते रहे। ” डायमंड पॉकेट बुक्स के संपादक एम. एम. चंद्रा ने उनके बारे में लिखा था कि “जयप्रकाश जी शब्दों के तुलनात्मक प्रयोग से व्यंग्य को सहज सरल बना देते हैं। ” जयप्रकाश जी का स्वयं का कहना था कि “जब कोई अनुभव, घटना, विचार या स्मृति कई दिनों तक मन-मस्तिष्क में उमड़ती-घुमड़ती रहती है तो कलम से कागज पर उतर जाती है। भाई जयप्रकाश के न रहने से साहित्य जगत में तो रिक्तता आई ही है मैंने भी हर छोटी – बड़ी बात पर विचार विमर्श करने वाला एक ऐसा जिंदा दिल मित्र खो दिया जिससे किसी न किसी संदर्भ में लगभग रोज मेरी बात होती थी।
इस वर्ष 2 जनवरी को अपने जन्मोत्सव पर जयप्रकाश जी हमारे बीच नहीं होंगे। उन्हें सादर श्रद्धांजलि।
श्री प्रतुल श्रीवास्तव
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