श्री रामकिशोर उपाध्याय 

☆ व्यंग्य लेखक जयप्रकाश पांडे का आकस्मिक निधन हिंदी व्यंग्य को एक अपूरणीय क्षति ☆ श्री रामकिशोर उपाध्याय 

प्रख्यात व्यंग्यकार जयप्रकाश पांडे जी के निधन की खबर सुनकर सहसा विश्वास नहीं हुआ | लेकिन जब दुखद सूचना की पुष्टि की तो मैं स्तब्ध रह गया | मेरी उनके साथ बहुत सी स्मृतियाँ जुड़ी हैं जिन्हें आज मैं याद कर रहा हूँ। माध्यम साहित्यिक संस्थान के मध्य प्रदेश राज्य के प्रभारी और अट्टहास पत्रिका से जुड़े होने के नाते वे मेरे साथ निरंतर संपर्क में रहते थे | कुछ माह पूर्व उन्होंने ख्यात व्यंग्य पत्रिका ‘अट्टहास’ का मध्यप्रदेश के व्यंग्यकारों पर केन्द्रित अंक का सम्पादन बड़ी कुशलतापूर्वक किया था | अभी गत नवम्बर माह श्री भगवत दुबे (अध्यक्ष /कादम्बरी ) पर केन्द्रित अट्टहास के अंक के सम्पादन और संकलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी |बैंकिंग जैसे व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद आप शानदार व्यंग्य लिख रहे थे – बिलकुल हरिशंकर परसाई के परंपरा के अनुरूप | गत अगस्त में उन्होंने व्यंग्य पुरोधा हरिशंकर परसाई की जन्मशती के अवसर पर शानदार कार्यक्रम का जबलपुर में आयोजन कर एक कुशल प्रबंधक होने का परिचय दिया | ‘व्यंग्यम’ के माध्यम से अन्य प्रबुद्ध साहित्यकारों के सहयोग से गत आठ वर्षों से वे नियमित रूप से मासिक गोष्ठियाँ आयोजित कराकर व्यंग्य का जबलपुर में परचम लहरा रहे थे | इसे एक प्रकार से हरिशंकर परसाई की व्यंग्य ज्योति को निरंतर प्रज्वलित करते रहने के एक सार्थक प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए |

कादम्बरी संस्था के सम्मान हेतु मैंने उनके व्यक्तिगत आग्रह पर आवेदन किया था | लेकिन मुझे पता नहीं था कि मुझे व्यंग्य लेखन के लिए मिलने वाला उन्होंने अपने बड़े भाई की स्मृति में वित्त पोषित किया होगा | यह उनके औदार्य और पारस्परिक सम्मान की भावना का परिचायक है जिसे मैं कभी विस्मृत नहीं कर सकता | अट्टहास के तैतीसवें सम्मान समारोह में उन्हें १३ जुलाई को उपस्थित होना था लेकिन वे स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से कारण दिल्ली नहीं आ पाए थे | अतः जब 9 नवंबर 2024 को मैं जबलपुर में ‘डॉ रामकृष्ण पाण्डेय स्मृति सम्मान-२ ०२४ ’ लेने आया तो उनका वह सम्मान पत्र भी साथ लेकर आया था | मिलने पर उनके चेहरे पर दिख रही चमक और उत्साह को देखकर कहीं से ऐसा नहीं लगता था वे सचमुच में बीमार थे | इस कार्यक्रम के अवसर पर वे तीन दिन तक लगातार हमारे साथ साये की तरह रहे – पहले दिन सुबह -सुबह हमें ट्रेन से लेकर होटल तक छोड़ने आये | उसी दिन आयोजित ‘ कादंबरी’ संस्था के सम्मान समारोह में हमें होटल से लेकर समारोह स्थल में पूरे समय रात्रि के नौ बजे तक साथ रहे | रात्रि में हमें होटल में छोड़ने आये | अगले दिन फिर नाश्ते के समय साथ रहे | फिर दस नवम्बर की शाम को व्यंग्यम की गोष्ठी में सभी अतिथियों के सम्मान में जुटे रहे और अगले दिन हमें ट्रेन में विदा तक करने आये | मेरे साथ अट्टहास के प्रमुख संपादक श्री अनूप श्रीवास्तव कहते थे कि हम उनके अतिथि हैं। भोजन पर पांडे जी और ताम्रकार जी अक्सर हमारे साथ रहा करते थे और साथ देने के लिए केवल सूप पीते थे कि कहीं हम अन्यथा न लें। इतना स्नेहिल और आत्मीय आतिथ्य तो कोई अपना नजदीकी रिश्तेदार भी नहीं करता | किसको पता था कि वह तीन दिनों का साथ हमारी अंतिम मुलाकात में बदल जायेगा | मैंने उनके भीतर एक जिंदादिल इंसान को देखा जो विपरीत परिस्थिति में भी हर कार्य खुद करके जीना चाहता था। उनकी प्यारी सी मोहक मुस्कान अब सदैव आँखों के सामने नाचती रहेगी | अभी तो उन्होंने साहित्य के लिए बहुत कुछ करना था। नियति को कौन रोक सकता है ? उनके असामयिक निधन से हिंदी व्यंग्य को जो क्षति हुई है वह अपूरणीय है | ऐसा लगता है कि व्यंग्य का एक सशक्त स्तम्भ गिर गया हो | उनके जाने से जहाँ जबलपुर और उनसे जुड़े लोग और परिवारजन अवश्य उनकी व्यक्तिगत कमी को अनुभव कर रहें होंगे तो वहीँ उनके सैकड़ों प्रशंसक और माध्यम साहित्यिक संस्था और अट्टहास के सुधी पाठक भी मेरी तरह उनकी रिक्ति को तीव्रता से अनुभव करेंगे। वैसे साहित्यकार कभी मरा नहीं करते, वे हमेशा अपने रचनाकर्म के माध्यम से सदा जीवित रहते हैं और विशाल ह्रदय के स्वामी और मेरे ऊपर अपनी अमिट छोड़ने वाले जय प्रकाश पांडे भी उसी प्रकार हमारी स्मृति में हमेशा साथ रहेंगे। मैं उनकी स्मृतियों को सहेजते हुए उन्हें अपनी और अट्टहास पत्रिका की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ | ॐ शांति।

श्री रामकिशोर उपाध्याय

कार्यकारी सम्पादक अट्टहास, नई दिल्ली

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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