प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  1962 के भारत चीन युद्ध की एक वीरगाथा पर आधारित  कविता  वीर शहीद जसवंत सिंह का जीवंत शौर्य  एवं उनसे सम्बंधित आलेख।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 10☆

☆ वीर शहीद जसवंत सिंह का जीवंत शौर्य ☆

 हैं हिंद की सेना में कई वीर यों महान

सुन जिनका पराक्रम सभी रह जाते हैरान

 

मन में उमड़ता जोश आता खून में उबाल

बांहें फड़कती खींच लेने दुश्मनों की खाल

 

अरुणाचल में जसवंतगढ़ नूरा तांग के पास

ऐसे ही वीर जसवंत का जीवंत है इतिहास

 

उनकी ही याद में वहां उनका मंदिर बना हुआ

जिसमें सुरक्षित आज भी उनका सभी सामान

 

गहरा था उन्हें  देश प्रेम घने आस्था विश्वास

लड़ते रहे वे तीन दिनों तज भूख और प्यास

 

शैला और नूरा बहनों ने दे भोजन किया उपकार

जिससे बढा था हौसला दुश्मन को सके  मार

 

उनने अकेले तीन सौ चीनियों को मारा

पकड़ा उन्हें जब वे  थे थके अकेला बेसहारा

 

यह महावीर योद्धा थे जसवंत सिंह रावत

जो सच में सिंह से निडर थे जैसी है कहावत

 

गढ़वाल देवभूमि के थे वे मूल निवासी

कर्तव्य ऐसा प्यारा कि मरकर भी करें ड्यूटी

वीर वे अब भी हैं वहां अशरीर  निगहवान

भारत महान धन्य जिसे ऐसे वीरों का वरदान

 

देवभूमि उत्तराखंड ना केवल अपने देवी-देवताओं और उनके मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह अपनी वीरता के लिए भी मशहूर है। देवभूमि का एक ऐसा ही महान वीर था जसवंत सिंह रावत। भारत और चीन के बीच 1962 की लड़ाई में वीर जसवंत सिंह रावत ने चीनी सेना को नाको चने चबवा दिया था। उन्होंने अकेले ही 72 घंटो तक चीनी सेना के 300 जवानों को मौत के घाट उतारा दिया। जानकार कहते हैं कि जसवंत सिंह एक की वीरता का लोहा चीनी सेना ने भी माना था। उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए देश और पूरा उत्तराखंड हमेशा उन्हें याद रखेगा। आइए जानते हैं कि कैसे जसवंत सिंह ने तीन दिन तक चीनी सेना की नाक में दम करके रखा।

जसवसंत सिंह रावत हैं कौन

वीर जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के ग्राम-बाड्यूं ,पट्टी-खाटली,ब्लाक-बीरोखाल, जिला-पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। आपको बता दें कि जिस समय जसवंत सिंह सेना में भर्ती होने गए थे उस समय उनकी उम्र महज 17 साल थी। जिस कारण उन्हें सेना में भर्ती होने से रोक दिया गया था। इसके बाद फिर उनकी उम्र होने पर ही उन्हें सेना में भर्ती किया गया। वह 1962 की लड़ाई में चीनी सेना के खिलाफ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

नूरानांग युद्ध

चीन ने 17 नवंबर 1962 को अरुणाचल प्रदेश पर पर कब्जा करने के लिए चौथा व आखिरी हमला किया। जिस समय चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर हमला किया उस समय अरुणाचल की सीमा पर भारतीय सेना की तैनाती नहीं थी। जिसका फायदा उठाकर चीन ने भारत पर हमला बोल दिया। चीन ने अरुणाचल पर हमला कर काफी तबाही मचाई और महात्मा बुद्ध की मूर्ति के हाथों को काटकर ले गए। चीनी सेना ने वहां औरतों की इज्जत भी लूटी।

गढ़वाल राइफल की तैनाती

चीनी सेना को रोकने के लिए वहां गढ़वाल रायफल की 4ह्लद्ध बटालियन को वहां भेजा गया। वीर जसवंत सिंह रावत इस बटालियन के एक सिपाही थ, लेकिन सेना के जवानों के पास चीनी सेना का भरपूर जवाब देने के लिए पर्याप्त हथियार और गोला बारूद उपलब्ध नहीं था। जिस कारण चीनी सेना अरुणाचल से सेना के जवानों को वापस बुलाने का फैसला किया गया। सरकार के आदेश के बाद पूरी गढ़वाल बटालियन वापस लौट आई। लेकिन गढ़वाल राइफल के तीन जवान रायफल मैन जसवंत सिंह रावत, लांस नाइक त्रिलोक सिंह नेगी, रायफल मैन गोपाल सिंह गुसाईं वापस नहीं लौटे। वीर जसवंत सिंह ने अपने दोनों साथियों लांस नाइक त्रिलोक सिंह नेगी और रायफल मैन गोपाल सिंह गुसाईं को वापस भेज दिया और खुद नूरानांग की पोस्ट पर तैनात होकर चीनी सेना को आगे बढऩे से रोकने का फैसला किया।

जसवसंत सिंह रावत ने 300 चीनी सैनिकों को उतारा मौत के घाट

वीर जसवंत सिंह ने अकेले ही 72 घंटो तक लड़ते हुए चीनी सेना के 300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया और किसी को भी आगे नहीं बढऩे दिया गया। वीर जसवंत सिंह जितने बहादुर थे उतने ही वह चालाक भी थे। उन्होंने अपनी चतुराई और बहादुरी के बल पर चीनी सेना को 3 घंटों तक रोके रखा। इसके लिए उन्होंने पोस्ट की अलग अलग जगहों पर रायफल तैनात कर दी थी और कुछ इस तरह से फायरिंग कर रहे थे जिससे की चीन की सेना को लगा यहां एक अकेला जवान नहीं बल्कि पूरी की पूरी बटालियन मौजूद हैं।

शैला और नूरा ने क्या किया

इस बीच रावत के लिए खाने पीने का सामान और उनकी रसद आपूर्ति वहां की दो बहनों शैला और नूरा ने की जिनकी शहादत को भी कम नहीं आंका जा सकता। 72 घंटे तक चीन की सेना ये नहीं समझ पाई की उनके साथ लडऩे वाला एक अकेला सैनिक है। फिर 3 दिन के बाद जब नूरा को चीनी सैनिको ने पकड़ दिया तो उन्होंने इधर से रसद आपूर्ति करने वाली शैला पर ग्रेनेड से हमला किया और वीरांगना शैला शहीद हो गई। उसके बाद उन्होंने नूरा को भी मार दिया दिया और इनकी इतनी बड़ी शहादत को हमेशा के लिए जिंदा रखने के लिए आज भी नूरनाग में भारत की अंतिम सीमा पर दो पहाडिय़ा है जिनको नूरा और शैला के नाम से जाना जाता है।

चीनी सेना ने जसवंत सिंह की बहादुरी को किया सम्मानित

नूरा और शैला की शहादत के बाद वीर जसवंत सिंह को मिलने वाली रसद आपर्ति कमजोर पडऩे लगी। बावजूद इसके वह दुश्मनों से लड़ते रहे, लेकिन रसद आपूर्ति की कमी के चलते आखिरकार उन्होंने 17 नवम्बर 1962 को खुद को गोली मार ली। चीनी सैनिको को जब पता चला कि वह 3 दिन से एक ही सिपाही के साथ लड़ रहे थे तो वो भी हैरान रह गए। चीनी सेना जसवंत सिंह रावत का सर काटकर अपने देश ले गई। अंत में 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई। जिसके बाद चीनी कमांडर ने जसवंत सिंह की इस साहसिक बहादुरी को देखते हुए न सिर्फ जसवंत सिंह का शीश वापस लौटाया बल्कि सम्मान स्वरुप एक कांस की बनी हुई उनकी मूर्ति भी भेंट की।

वीर जसवंत के नाम का स्मारक

जसवंत सिंह ने जिस जगह पर चीनी सेना के दांत खट्टे किए थे उस जगह पर उनके नाम का एक मंदिर बनाया गया है। जहां पर चीनी कमांडर द्वारा सौंपी गई जसवंत सिंह की मूर्ति को भी रखा गया है। भारतीय सेना का हर जवान उनको शीश झुकाने के बाद ड्यूटी करता है। वहां तैनात कई जवानों का कहना है कि जब भी कोई जवान ड्यूटी पर सोता है जसवंत सिंह रावत उनको थप्पड़ मारकर जगाते हैं। मानो वह उनके कानों में कहते हो की मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी करो क्योंकि देश की सुरक्षा तुम्हारे हाथो में है।

इनके नाम से नुरानांग में जसवंत गढ़ के नाम से एक जगह भी है। जहां इनका बहुत बड़ा स्मारक है। बता दें कि इस स्मारक में उनकी हर चीज को संभाल कर रखा गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज भी यहां इनके कपड़ो पर रोज प्रेस की जाती है। साथ ही रोज इनके बूटो पर पोलिश भी की जाती है। यही नहीं रोज सुबह दिन और रात की भोजन की पहली थाली जसवंत सिंह रावत जी को ही परोसी जाती ह। जसवंत सिंह रावत जी  भारतीय सेना के ऐसे पहले जवान है जिनको मरणोपरांत भी पदोन्नति दी जाती है। रायफल मैन जसवंत सिंह आज कैप्टेन की पोस्ट पर हैं और उनके परिवार वालो को उनकी पूरी सैलरी दी जाती है।

 

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