डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है एक  अतिसुन्दर व्यंग्य रचना  ‘शोकसभा में सियासतदान’।  डॉ परिहार जी ने आखिर यह  पढ़ ही लिया कि मन और  जुबान में ज्यादा दूरी नहीं होती। विश्वास न हो तो यह व्यंग्य पढ़ लीजिये। इस सार्थक व्यंग्य  के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 69 ☆

☆ व्यंग्य – शोकसभा में सियासतदान

बाबू भाई तेहत्तर साल की पकी उम्र तक इस असार संसार को रौंद और खौंद कर विदा हुए थे, उन्हीं का शान्ति-पाठ आयोजित था। बाबू भाई परिवार को खूब माल-मत्ता देकर गये थे। उनके पुण्य-प्रताप से परिवार के सभी सदस्य आगे और कमाई बटोरने की स्थिति में पहुँच गये थे, इसलिए सभी के मन में दिवंगत के प्रति अपार श्रद्धा और ओठों पर दुआएं थीं। सब यही चाहते थे कि बाबू भाई की पवित्र आत्मा को परमात्मा के चरणों में स्थान मिले और वे आगे उस तरह के फसादों में न पड़ें जैसे वे ज़िन्दगी भर करते रहे थे।

शान्ति-पाठ में बाबू भाई के नाते- रिश्तेदार,बंधु-बांधव इकट्ठे थे। जो इस दुनिया को अपना ‘परमानेंट हेडक्वार्टर’ समझे हुए थे वे भी आज मजबूरन जीवन की क्षणभंगुरता का उपदेश सुनने को उपस्थित थे। सभा में आचार्य जी के अलावा सभी वक्ताओं के भाषणों का लुब्बो- लुवाब यही था कि संसार माया है, शरीर नश्वर है, एक दिन सब नष्ट हो जाने वाला है, इसलिए संसार से मन हटा कर प्रभु में लौ लगाना ही समझदारी की बात है। सब ये बातें रोज रोज टीवी पर और शोकसभाओं में सुन सुन कर भूलते रहते थे, लेकिन आज इस तरह गंभीर होकर बैठे थे जैसे सभा से उठते ही सब छोड़-छाड़ कर हिमालय की किसी कन्दरा में जा बैठेंगे। कई वक्ताओं का हिन्दी- ज्ञान शोचनीय था। वे बार बार ‘आचार्य जी’ को ‘अचार जी’ कह कर संबोधित कर रहे थे।

सभा खत्म होने को थी कि अचानक कक्ष में राजनीति की गंध फैल गयी। सब ने सूँघ कर इधर उधर देखा। कुछ समझ में नहीं आया।  ‘अचार जी’ पिछले दरवाजे की तरफ देखकर कुछ अस्थिर हो रहे थे। सब ने उधर नज़रें घुमायीं। देखा, शहर के खुर्राट राजनीतिज्ञ पोपट भाई चेहरे पर भारी गंभीरता ओढ़े दरवाजे पर जूते उतार रहे थे। सब का मन बिगड़ गया। अब यहाँ भी पाखंड फैलेगा। लेकिन जो पोपट भाई के कृपाकांक्षी थे वे प्रसन्न और सक्रिय हुए और उन्हें सादर अगली पंक्ति में ले आये।

पोपट भाई हिसाब से शान्ति-पाठ की समाप्ति के वक्त आये थे ताकि उनका वक्तव्य भी हो जाए और फालतू बैठना भी न पड़े।

जल्दी ही उन्हें माइक पर बुलाया गया। बोलने को खड़े हुए तो आधे मिनट आँखें बन्द किए मौन खड़े रहे, मुँह से बोल नहीं फूटा। फिर ‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः’ से भाषण शुरू किया।

बोले—‘भाइयो और बहनो, लोगों को यह भरम है कि राजनीतिज्ञ जहाँ जाता है वहाँ राजनीति ही बोलता है, लेकिन मैं आपका यह भरम दूर करना चाहता हूँ। मैं यहाँ राजनीति करने नहीं, स्वर्गीय बाबू भाई को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देने आया हूँ। बाबू भाई एक महान आत्मा  थे, उनके संसार छोड़ने से हमारे नगर की अपूरणीय क्षति हुई है। उनके ऊपर बहुत आरोप लगते थे, कई केस भी उन पर चले, लेकिन वे सभी राजनीति से प्रेरित थे। बाबू भाई एक महान समाजसेवी और देशभक्त थे।

‘लोगों का यह सोचना बिलकुल गलत है कि राजनीतिज्ञ जहाँ भी जाता है वहाँ राजनीति के मतलब से जाता है और राजनीति की बात करता है। मैं तो यहाँ बाबू भाई को अपनी श्रद्धांजलि देने आया हूँ।  मैं यहाँ खड़े होकर कह सकता था कि मेरी पार्टी ने जनता की बड़ी सेवा की, जनता के लिए बहुत काम किया,लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि यह वक्त उन सब बातों का नहीं है। अभी तो हमें बाबू भाई की आत्मा की शान्ति के लिए परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करनी है।

‘कोई राजनीतिज्ञ ऐसा मूरख नहीं होता कि श्रद्धांजलि-सभा में राजनीति की बातें करने लगे। ऐसी बेवकूफी विरोधी पार्टी वाले ही कर सकते हैं। हम कभी नहीं कर सकते। हर जगह एक ही राग अलापना और मौके की नज़ाकत को न समझना मूर्खों का काम है। हमसे ऐसी गलती कभी नहीं हो सकती। मैं चाहता तो कह सकता था कि पहले गाँवों में चौबीस घंटे में चार घंटे बिजली मिलती थी, अब हमारी पार्टी के शासन में छः घंटे मिलती है। पहले सड़कें इतनी खराब थीं कि रोज आठ-दस एक्सीडेंट होते थे, अब मुश्किल से तीन- चार होते हैं। दो साल पहले रिश्वतखोरी के अठारह सौ मामले दर्ज हुए थे, इस साल यह संख्या घट कर बारह सौ पर आ गयी है। कुछ लोग कहते हैं कि इस की वजह यह है कि रोकने और पकड़ने वाले भी भ्रष्ट हो गये हैं, लेकिन ये सब बरगलाने वाली बातें हैं।

‘मैं यह भी कह सकता था कि हमने सरकारी स्कूलों की छतों के सारे टपके बन्द करा दिये हैं,अब उनमें एक बूँद पानी भी नहीं टपकता। इस मरम्मत पर हमने इस शहर में ही दस करोड़ रुपये खर्च किये हैं। इस खर्च को लेकर भी विरोधी हमारी आलोचना करते हैं, लेकिन हम विचलित होने वाले नहीं। हम हर स्कूल को टपकामुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। स्कूलों की इमारतों की खस्ता हालत की जानकारी हमें है और जान-माल का कोई नुकसान होने से पहले कार्यवाही करने का निश्चय हमने कर लिया है। फिलहाल हमने सारी क्लासें स्कूल बिल्डिंग से बाहर मैदान में लगाने के आदेश दे दिये हैं। इससे विद्यार्थियों को खुली हवा में पढ़ने-लिखने का मौका मिलेगा, जो उनके स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है।

‘आप तो जानते ही हैं कि हमारा प्रदेश उद्योगों की दृष्टि से बहुत पिछड़ा है,यहाँ बहुत गरीबी और बेरोजगारी है। उद्योगों को बढ़ाने और गरीबी बेरोजगारी को दूर करने के तरीकों का अध्ययन करने के लिए हमारे सारे विधायक अमेरिका और इंगलैंड की तीन महीने की यात्रा पर जा रहे हैं। हमें विश्वास है कि उसके बाद यहाँ उद्योगों की भारी बढ़ोत्तरी होगी और गरीबी बेरोजगारी जड़ से खत्म हो जाएगी। मेरी नौजवान भाइयों से अपील है कि जैसे इतने दिन धीरज रखा, थोड़े दिन और रखें। सब्र का फल मीठा होता है।

‘लेकिन जैसा कि मैंने कहा, यह मौका ये सब बातें कहने का नहीं है। अभी चुनाव सिर पर है और मैं आपसे कह सकता था कि आप लोग एकजुट होकर हमारी पार्टी को वोट दें और विरोधी पार्टियों को धूल चटायें, लेकिन अभी मैं यह सब नहीं कहूँगा। अभी तो वक्त बाबू भाई की महान आत्मा को श्रद्धांजलि देने का है। ओम शान्तिः शान्तिः। ‘

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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