हेमन्त बावनकर
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। आज प्रस्तुत है एक कविता “आजमाइश”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 25 ☆
☆ आजमाइश ☆
बचपन से मिली थी
कागज-स्याही की
बेशकीमती अमानत,
अब
कागज सदन में
स्याही चेहरों पे
उड़ाने लगे हैं लोग।
बचपन से पढ़ा था
मजहब नहीं सिखाता
आपस में बैर रखना,
अब
किससे बैर रखना है
सिखाने लगे हैं लोग।
गांधी के बंदरों में
कलम थामे
यह चौथा कौन है?
अब
उसकी आजमाइश को
आजमाने लगे हैं लोग।
बसी है देशभक्ति
हमारी रगों में जन्म से
फिर क्यों
कौन भक्त, कौन देशभक्त है?
बताने लगे हैं लोग।
बेहद मुश्किल है लिखना
अब पैगाम अमन का,
गर लिख दिया
तो खामियाँ
दिखाने लगे हैं लोग।
© हेमन्त बावनकर, पुणे
25 अक्टूबर 2020
बेहतरीन अभिव्यक्ति
सुंदर कविता
कौन भक्त कौन देशभक्त , वाह
बेहतरीन अभिव्यक्ति वाह