डॉ निधि जैन
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “अन्तर”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 24 ☆
☆ अन्तर ☆
कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।
तू तन से सबल, तू मन से सबल,
तू तन से पूर्ण, तू मन से पूर्ण,
तू भगवान की श्रेष्ठ कृति है,
तू उजाले की किरण अँधेरी रति में,
तू कर सकता है एक पल में सागर को पार,
तू ज्वालामुखी सा रखता शक्ति अपार,
कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।
तू है जननी इस संस्कृति का।
तू है रचयिता इस सामाजिक आकृति का,
तू है सरिता सुंदरता का,
तू है आधुनिकता का आधार,
तू है प्रेम उस निराकार का,
तू है ज्ञान का भंडार,
कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।
तुझसे है रीति जगत की,
तुझसे है प्रीति जगत की,
तू है मोह का भन्डार,
तुझमें है प्रेम अपार,
तू मानव अब आलस छोड़,
तू मानव अब छोड़ लालच का भन्डार,
कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।
© डॉ निधि जैन,
पुणे
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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