श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 59☆
☆ संतोष के दोहे ☆
अरुण रश्मियाँ नेह की, फैला रहीं प्रकाश
तिमिर सिमट कर भागता, नभ में हुआ उजास
हटता मन का जब तिमिर, तब आता है ज्ञान
गुरू भक्ति से दूर हो, अंतर का अभिमान
रोशन अब सारा शहर, झालर ज्योतिर्मान
दीप नेह के जल उठे, लक्ष्मी का सम्मान
बिजली बिन सूना लगे, सारा घर संसार
आदत इसकी पड़ गई, बिन बिजली लाचार
सूरज अपनी ताप से, देता है बरसात
जल-थल-नभचर पालता, उसकी यह सौगात
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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