डॉ निधि जैन
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक कविता “दीपावली”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 25 ☆
☆ दीपावली ☆
वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,
निशा पर प्रभात की विजय सी,
दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी I
दीपों की रौशनी से मिटता निशा का अंधकार सा,
द्वार की रंगोली से, भरती जीवन में नया आकार सा,
हर रूठे मन मे भरता उजाले सा,
हर अंग सजता, अलंकार सा,
हर मुखड़ा चहकता मोहक चितवन सा,
हर आँगन लगता मधुवन सा I
वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,
निशा पर प्रभात की विजय सी,
दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी।
निधिपति का स्वागत करने का ये पर्व,
राम के लिये हर पूजा हर जतन करने का ये पर्व,
राम के वनवास से लौटने का ये पर्व,
हर आँगन में फैलता स्वर्ण लता सा ये पर्व,
मिठाईयों में मीठा रसगुल्ले सा ये पर्व,
पुष्पों में सुन्दर कमल सा ये पर्व,
वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,
निशा पर प्रभात की विजय सी,
दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी।
ऐसे ही हर साल आये ये पर्व,
कुमार के मौसम को जगमगाये ये पर्व,
भाईचारे और एकता को जगाये ये पर्व,
हर आँगन हर मुखड़ा पटाखे की रोशिनी से चहके ये पर्व,
पकवानों की महक से हर आँगन महकाये ये पर्व,
रुढ़िवाद, भेदभाव को दूर करे ये पर्व।
वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,
निशा पर प्रभात की विजय सी,
दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी।
सरोवर में स्वर्ण मीन सा ये पर्व,
भानु पर अग्नि सा ये पर्व,
प्रभात में रोशन और पानी में दामिनी सा ये पर्व,
भाईचारे और एकता की मिसाल पैदा करे ये पर्व।
© डॉ निधि जैन,
पुणे
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈