श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है ।

प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ  के अंतर्गत आमने -सामने शीर्षक से  आप सवाल सुप्रसिद्ध व्यंग्यकारों के और जवाब श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के  पढ़ सकेंगे। इस कड़ी में प्रस्तुत है  सुप्रसिद्ध  साहित्यकार  डॉ सुरेश कुमार मिश्रा जी (हैदराबाद),श्री  अशोक व्यास जी (भोपाल) एवं श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी  (जबलपुर) के प्रश्नों के उत्तर । ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 69

☆ आमने-सामने  – 5 ☆

डॉ सुरेश कुमार मिश्रा (हैदराबाद)

क्या एक सरकारी कर्मचारी सत्ता पक्ष के गलत फैसलों पर तंज कसते हुए व्यंग्य लिख सकता है? यदि हाँ तो उसके लिए क्या प्रावधान हैं?

जय प्रकाश पाण्डेय –

सुरेश कुमार जी, जब तक ढका मुंदा है और आपके कार्यालय परिवार के लोग जीवन से तटस्थ हैं, तब तक तो कुछ नहीं होता, कार्यालय का काम और अनुशासन आपकी प्राथमिकता है और यदि लेखक के अहंकार में चूर होकर बास से खुन्नस ली तो साथ के लोग और बास आपको फांसी चढ़ाने के लिए बैठे रहते हैं। क्योंकि आप जानते हैं कि सच को उजागर करने वालों का दुनिया पक्ष कम लेती है और आपको व्यंग्य लिखने की सरकारी अनुमति मिलेगी नहीं, ऐसी दशा में लेखक को विसंगतियों पर इशारे करके लिखना होगा।

 

श्री अशोक व्यास (भोपाल) 

मेरा प्रश्न है कि आजकल जो व्यंग्य पढ़ने में आ रहे हैं उसमें  साहियकारों  पर जिसमें अधिकतर व्यंग्यकारों पर व्यंग्य किया जा रहा है । क्या विसंगतियों को अनदेखा करके दूसरे के नाम पर अपने आप को व्यंग्य का पात्र बनाने में खुजाने जैसा मजा ले रहे हैं हम ?

जय प्रकाश पाण्डेय –

भाई साहब, सही पकड़े हैं। हम आसपास बिखरी विसंगतियों, विद्रूपताओं, अंधविश्वास को अनदेखा कर अपने आसपास के तथाकथित नकली व्यंंग्यकारों को गांव की भौजाई बनाकर मजा ले रहे हैं, जबकि हम सबको पता है कि इनकी मोटी खाल खुजाने से कुछ होगा नहीं, वे नाम और फोटो के लिए व्यंग्य का सहारा ले रहे हैं।

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव (जबलपुर)

आप लंबे समय तक बैंकिंग सेवाओं मे थे, बैंक हिंदी पत्रिका छापते थे, आयोजन भी करते थे।

आप क्या सोचते हैं की व्यंग्य, साहित्य के विकास व संवर्धन में संस्थानों की बड़ी भूमिका हो सकती है ? होनी चाहिये ?

जय प्रकाश पाण्डेय –

विवेक भाई, हम लगातार लगभग 36 साल बैंकिंग सेवा में रहे और शहर देहात, आदिवासी इलाकों के आलावा सभी स्थानों पर लोगों के सम्पर्क में रहे और अपने ओर से बेहतर सेवा देने के प्रयास किए। पर हर जगह पाया कि बेचारे दीन हीन गरीब, दलित, किसान, मजदूर दुखी है पीड़ित हैं, उनकी बेहतरी के लिए लगातार सामाजिक सेवा बैंकिंग के मार्फत उनके सम्पर्क में रहे, गरीबी रेखा से नीचे के युवक युवतियों को रोजगार की तरफ मोड़ा, दूरदराज की ग़रीब महिलाओं को स्वसहायता समूहों के मार्फत मदद की मार्गदर्शन दिया। प्रशासनिक कार्यालय में रहते हुए गृह पत्रिकाओं के मार्फत गरीबों के उन्नयन के लिए स्टाफ को उत्साहित किया, बिलासपुर से प्रतिबिंब पत्रिका, जबलपुर से नर्मदा पत्रिका, प्रशिक्षण संस्थान से प्रयास पत्रिका आदि के संपादन किए, और जो थोड़ा बहुत किया वह आदरणीय प्रभाशंकर उपाध्याय जी के उत्तर में देख सकते हैं। बैंक में रहते हुए साहित्य सेवा और सामाजिक सेवा से समाज को बेहतर बनाने की सोच में उन्नयन हुआ, दोगले चरित्र वाले पात्रों पर लिखकर उनकी सोच सुधारने का अवसर मिला। कोरोना काल में विपरीत परिस्थितियों के चलते बैंकों में अब समय खराब चल रहा है इसलिए आप जैसा सोच रहे हैं उसके अनुसार अभी परिस्थितियां विपरीत है।

क्रमशः ……..  6

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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