श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना “और कब तक….। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 71 ☆ और कब तक…. ☆
और कब तक
तुम रहोगे मौन साधो,
शब्द को स्वर तुम, नहीं तो
और देगा कौन साधो।
मनुजता पर हैं लगे प्रतिबंध
जिह्वा है सिली
जब करी कोशिश
कहीं संकेत करने की
उधर से
भृकुटियां टेढ़ी मिली
अन्नजल आश्रित
विवश चुपचाप बैठे
भीष्म गुरुवर द्रोण साधो।
और कब तक
आम बरगद नीम
पीपल मिट रहे
झील सरिता बावड़ी
पनघट रुआँसे,
अब तबाही के लिए
उद्यत शिकारी हाथ में
खंजर उठाए दिख रहे,
लग गया है स्वाद
जिनको खून का
वे क्यों करे दातौन साधो।
और कब तक
अब सरे बाजार
सब कुछ हो रहा
मशविरों में मस्त है
राजा पियादा
चैन की बंसी बजाते
कुंभकरणी नींद
गहरी सो रहा,
नेत्रहीन धृतराष्ट्र
सिंहासन भ्रमित है
द्रोपदी को
अब बचाए कौन साधो।
और कब तक
तुम रहोगे मौन साधो।।
…
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈