श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक विचारणीय एवं सार्थकआलेख   ‘ऊर्जा संरक्षण के नये विकल्प.  इस सार्थक एवं अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 84 ☆

☆ लघुकथा ऊर्जा संरक्षण के नये विकल्प ☆

अंग्रेजी में बी का अर्थ होता है मधुमख्खी.  सभी जानते हैं कि मधुमख्खी किस तरह फूल फूल से पराग कणो को चुनकर शहद बनाती हैं,  जो मीठा तो होता ही है, स्वास्थ्यकर भी होता है.  मधुमख्खखियो का छतना पराग के कण कण से संरक्षण का श्रेष्ठ उदाहरण है. मधुमख्खी अर्थात बी की स्पेलिंग बी ई ई होती है. भारत सरकार के संस्थान ब्यूरो आफ इनर्जी इफिशियेंसी का एब्रिवियेशन भी बी ई ई ही है.  उर्जा संरक्षण के नये वैश्विक विकल्पों पर ब्यूरो आफ इनर्जी इफिशियेंसी अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है. ऊर्जा दक्षता ब्यूरो अर्थात ब्यूरो आफ इनर्जी इफिशियेंसी का लक्ष्य ऊर्जा दक्षता की सेवाओं को संस्थागत रूप देना है ताकि देश के सभी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो.  इसका गठन ऊर्जा संरक्षण अधिनियम,  २००१ के अन्तर्गत मार्च २००२ में किया गया था.  यह भारत सरकार के विद्युत मन्त्रालय के अन्तर्गत कार्य करता है.   इसका कार्य ऐसे कार्यक्रम बनाना है जिनसे भारत में ऊर्जा के संरक्षण और ऊर्जा के उपयोग में दक्षता  बढ़ाने में मदद मिले.  यह संस्थान ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सौंपे गए कार्यों को करने के लिए उपभोक्ताओं,  संबंधित संस्थानो व संगठनों के साथ समन्वय करके संसाधनों और विद्युत संरचना को मान्यता देने,  इनकी पहचान करने तथा इस्तेमाल का आप्टिमम उपयोग हो सके ऐसे कार्य करता है.

हमारे मन में यह भाव होता है कि बचत का अर्थ उपयोग की अंतिम संभावना तक प्रयोग है,  इसके चलते हम बारम्बार पुराने विद्युत उपकरणो जैसे पम्प,  मोटर आदि की रिवाइंडिंग करवा कर इन्हें सुधरवाते रहते हैं,  हमें जानकारी ही नही है कि हर रिवाइंडिंग से उपकरण की ऊर्जा दक्षता और कम हो जाती है तथा  चलने के लिये वह उपकरण अधिक ऊर्जा की खपत करता है.  इस तरह केवल आर्थिक रूप से सोचें तो भी नयी मशीन से रिप्लेसमेंट की लागत से ज्यादा बिजली का बिल हम किश्तों में दे देते हैं. इतना ही नहीं बृहद रूप से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सोचें तो इस तरह हम ऊर्जा दक्षता के विरुद्ध अपराध करते हैं.  देश में सेकेंड हैंड उपकरणो का बड़ा बाजार सक्रिय है.  यदि सक्षम व्यक्ति अपने उपकरण ऊर्जा दक्ष उपकरणो से बदलता भी है तो उसके पुराने ज्यादा खपत वाले उपकरण इस सेकेंड हैंड बाजार के माध्यम से पुनः किसी न किसी उपयोगकर्ता तक पहुंच जाते हैं और वह उपकरण ग्रिड में यथावत बना रह जाता है.  आवश्यकता है कि ऐसे ऊर्जा दक्षता में खराब चिन्हित उपकरणो को नष्ट कर दिया जावे तभी देश का समग्र ऊर्जा दक्षता सूचकांक बेहतर हो सकता है.

आत्मनिर्भर भारत के कार्यक्रम से देश में उर्जा की खपत बढ़ रही है.  ऐसे समय में ऊर्जा दक्षता बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है.  ऐसे परिदृश्य में ऊर्जा संसाधनों और उनके संरक्षण का कुशल उपयोग स्वयं ही अपना महत्व प्रतिपादित करता है.  ऊर्जा का कुशल उपयोग और इसका संरक्षण ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सबसे कम लागत वाला विकल्प है.  देश में ऊर्जा दक्षता सेवाओं के लिए वितरण तंत्र को संस्थागत बनाने और मजबूत करने के लिए और विभिन्न संस्थाओं के बीच आवश्यक समन्वय प्रदान करने का काम ब्यूरो आफ इनर्जी एफिशियेंशी कर रहा है.  आज का युग वैश्विक प्रतिस्पर्धा का है,   ऊर्जा की बचत से भारत को एक ऊर्जा कुशल अर्थव्यवस्था बनाने में लगातार समवेत प्रयास करने होंगे ताकि न केवल हम अपने स्वयं के बाजार के भीतर प्रतिस्पर्धी बने रहें बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी प्रतिस्पर्धा कर सकें.

अक्षय ऊर्जा स्रोत वैकल्पिक ऊर्जा के नवीनतम विकल्प के रूप में लोकप्रिय हो रहे हैं.  हर छत बिजली बना सकती है.  सौर ऊर्जा उत्पादन पैनल अब बहुत काम्पेक्ट तथा दक्ष हो गये हैं.  इस तरह उत्पादित बिजली न केवल स्वयं के उपयोग में लाई जा सकती है,  वरन अतिरिक्त विद्युत,  वितरण ग्रिड में बैंक की जा सकती है,  एवं रात्रि में जब सौर्य विद्युत उत्पादन नही होता तब  ग्रिड से ली जा सकती है.  इसके लिये बाईलेटरल मीटर लगाये जाते हैं.  ऊर्जा दक्ष एल ई डी प्रकाश स्त्रोतो का उपयोग,  दीवारो पर ऐसे  हल्के रंगो का उपयोग जिनसे प्रकाश परावर्तन ज्यादा हो,  घर का तापमान नियंत्रित करने के लिये छत की आकाश की तरफ की सतह पर सफेद रंग से पुताई,   ए सी की आउटर यूनिट को शेड में रखना,  फ्रिज को घर की बाहरी नही भीतरी दीवार के किनारे रखना,

वाटर पम्प में टाईमर का उपयोग,  टीवी,  कम्प्यूटर आदि उपकरणो को हमेशा  स्टेंड बाई मोड पर रखने की अपेक्षा स्विच से ही बंद रखना आदि कुछ सहज उपाय प्रचलन में हैं.  एक जो तथ्य अभी तक लोकप्रिय नही है,  वह है भू गर्भीय तापमान का उपयोग,  धरती की सतह से लगभग तीन मीटर नीचे का तापमान ठण्ड में गरम व गर्मी में ठण्डा होता है,  यदि डक्ट के  द्वारा इतने नीचे तक वायु प्रवाह का चैम्बर बनाकर उसे कमरे से जोड़ा जा सके तो कमरे के तापमान को आश्चर्यकारी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है.

ऊर्जा दक्षता और संरक्षण पर जन सामान्य में जागरूकता उत्पन्न करना एवं इसका प्रसार करना समय की आवश्यकता है.  इसके लिये बी ई ई लगातार काम कर रही है.  ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण के लिए तकनीक से जुड़े कार्मिक और विशेषज्ञों के प्रशिक्षण की व्यवस्था और उसका आयोजन करना,  ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में परामर्शी सेवाओं का सुदृढ़ीकरण,  ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास कार्यो का संवर्द्धन,  विद्युत उपकरणो के परीक्षण और प्रमाणन की पद्धतियों का विकास और परीक्षण सुविधाओं का संवर्द्धन करना,  प्रायोगिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन का सरलीकरण करना,  ऊर्जा दक्ष प्रक्रियाओं,  युक्तियों और प्रणालियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना,  ऊर्जा दक्ष उपकरण अथवा उपस्करों के इस्तेमाल के लिए लोगों के व्यवहार को प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठाना,  ऊर्जा दक्ष परियोजनाओं की फंडिंग को बढ़ावा देना,  ऊर्जा के दक्ष उपयोग को बढ़ावा देने और इसका संरक्षण करने के लिए संस्थाओं को वित्तीय सहायता देना, ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण पर शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार करना,  ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण से सम्बन्धित अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना आदि कार्य ब्यूरो आफ इनर्जी एफिशियेंसी लगातार अत्यंत दक्षता से कर रहा है.

आज जब भी हम कोई विद्युत उपकरण खरीदने बाजार जाते हैं जैसे एयर कंडीशनर,  फ्रिज,  पंखा,  माइक्रोवेव ओवन,  बल्ब,  ट्यूब लाइट या अन्य कोई बिजली से चलने वाले छोटे बड़े उपकरण तो उस पर स्टार रेटिंग का चिन्ह दिखता है.  अर्ध चंद्राकार चित्र में एक से लेकर पांच सितारे तक बने होते हैं.  यह रेटिंग दरअसल सितारों की बढ़ती संख्या के अनुरूप अधिक विद्युत कुशलता का बीईई प्रमाणी करण है.  विभिन्न उपकरणों की स्टार रेटिंग आकलन के लिए मानकों और लेबल सेटिंग के कार्य में बी ई ई परीक्षण और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं के विकास और परीक्षण सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए निरन्तर कार्यशील रहती है.  विद्युत उपकरणों के सभी प्रकार के परीक्षण और प्रमाणन प्रक्रियाओं को परिभाषित करने का कार्य बी ई ई ही  करती है.   यंत्र उत्पादन संस्थान जब भी किसी विद्युत उपकरण के नये मॉडल का निर्माण करता हैं वह यह जरूर चाहता है की उसका उत्पाद प्रमाणित हो जाए,  जिससे उपभोक्ता के मन में उत्पाद के प्रति विश्वसनीयता की भावना उत्पन्न हो सके.  इसके लिये निर्माता बीईई द्वारा डिजाइन प्रक्रियाओं के अनुसार अपने उपकरणों का परीक्षण करने के उपरान्त,  प्राप्त आंकड़ों के साथ स्टार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करते हैं,  परीक्षण के आंकड़ों के आधार पर बीईई इन उपकरणों के लिए एक स्टार रेटिंग प्रदान करता है.  बीईई समय-समय पर मानकों और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं को परिष्कृत भी करता रहता है. आज जब ई कामर्स लगातार बढ़ता जा रहा है इस तरह की स्टार रेटिंग खरीददार के मन में बिना भौतिक रूप से उपकरण को देखे भी,  केवल उत्पाद का चित्र देखकर, उसके उपयोग तथा ऊर्जा दक्षता के प्रति आश्वस्ति का भाव पैदा करने में सहायक होता है.

देश में उर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये व जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा दक्षता ब्यूरो तथा ऊर्जा दक्ष अर्थव्यवस्था हेतु गठबंधन द्वारा मिलकर,  भारत का पहला ‘राज्य ऊर्जा दक्षता तैयारी सूचकांक’ जारी किया है.  यह सूचकांक देश के सभी राज्यों में ऊर्जा उत्सर्जन के प्रबंधन में होने वाली प्रगति की निगरानी करने,  इस दिशा में राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने और कार्यक्रम कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करता है.  ऊर्जा दक्षता सूचकांक इमारतों,  उद्योगों,  नगरपालिकाओं,  परिवहन,  कृषि और बिजली वितरण कंपनियों जैसे क्षेत्रों के 63 संकेतकों पर आधारित है.  ये संकेतक नीति,  वित्त पोषण तंत्र,  संस्थागत क्षमता,  ऊर्जा दक्षता उपायों को अपनाने और ऊर्जा बचत प्राप्त करने जैसे मानकों पर आधारित हैं.  बीईई के अनुसार,  ऊर्जा दक्षता प्राप्त करके भारत 500 बिलियन यूनिट ऊर्जा की बचत कर सकता है.  वर्ष 2030 तक 100 गीगावाट बिजली क्षमता की आवश्यकता को कम किया जा सकता है.  इससे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग 557 मिलियन टन की कमी की जा सकती है.  इसके अन्य मापकों में विद्युत वाहनों के माध्यम से भारत के विकास की गतिशीलता को फिर से परिभाषित करना तथा विद्युत उपकरणों,  मोटरों,  कृषि पम्पों तथा ट्रैक्टरों और यहां तक कि भवनों की ऊर्जा दक्षता में सुधार लाना शामिल है.  राज्यों को उनके प्रदर्शन के आधार पर अग्रगामी (फ्रंट रनर),  लब्धकर्ता (एचीवर),  प्रतिस्पर्धी (कंटेंडर) व आकांक्षी (ऐस्पिरैंट) चार श्रेणियों में बांटा गया है.  सूचकांक में 60 से अधिक अंक पाने वाले राज्यों को ‘अग्रगामी’,  50-60 तक अंक पाने वाले राज्यों को ‘लब्धकर्ता’,  30-49 तक अंक पाने वाले राज्यों को ‘प्रतिस्पर्धी’ और 30 से कम अंक पाने वाले राज्यों को ‘आकांक्षी’ श्रेणी में चिन्हित किया गया है.

नये भवनो के निर्माण में प्रथम चरण में  100 किलोवॉट और उससे अधिक या 120 केवीए और इससे अधिक  संबद्ध विद्युत लोड वाले बड़े व्यावसायिक भवनों पर ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता लागू की गई  है.  ईसीबीसी अर्थात इनर्जी कंजरवेशन बिल्डिंग कोड बनाया गया है.  यह कोड भवन आवरण,  यांत्रिक प्रणालियों और उपकरणों पर केंद्रित है.  जिसमें हीटिंग,  वेंटिलेटिंग और एयर कंडीशनिंग प्रणाली,  आंतरिक और बाहरी प्रकाश व्यवस्था,  विद्युत प्रणाली और नवीकरणीय ऊर्जा शामिल हैं. इसमें भारत के मौसम के अनुरूप पांच जलवायु क्षेत्रों गर्म सूखे,  गर्म गीले,  शीतोष्ण,  समग्र और शीत,   को भी ध्यान में रखा गया है.  मौजूदा आवासीय और व्यावसायिक भवनों में ऊर्जा दक्षता लाने की भी महत्वपूर्ण आवश्यकता है.   विभिन्न अध्ययनों में यह देखा गया है कि मौजूदा वाणिज्यिक भवनों की उर्जा दक्षता क्षमता मात्र 30से40% ही है.  ब्यूरो,  ऊर्जा सघन इमारतों की अधिसूचना जारी करता है.   राज्य के अधिकारियों द्वारा अनिवार्य ऊर्जा ऑडिट के लिए अधिसूचना और मौजूदा बहुमंजिला इमारतों में ऊर्जा दक्षता उन्नयन के कार्यान्वयन हेतु वाणिज्यिक भवनों के लिए स्टार लेबलिंग कार्यक्रम का दायरा व्यापक बनाने के विभिन्न कार्य भी ब्यूरो कर रहा है.   कम लागत वाले आवास के ऊर्जा दक्ष डिजाइन के लिए भी ब्यूरो द्वारा दिशानिर्देश तैयार किये जाते हैं.

सरकार ने मार्च 2007 में  नौ बड़ें औद्योगिक क्षेत्रों को चिन्हित किया था जिनमें ऊर्जा की सर्वाधिक खपत दर्ज होती है.  ये क्षेत्र हैं एल्यूमीनियम,  सीमेंट,  क्षार,  उर्वरक,  लोहा और इस्पात,  पल्प एंड पेपर,  रेलवे,  कपड़ा और ताप विद्युत संयंत्र.   इन इकाइयों  में ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए लक्ष्य निर्धारित कर समयबद्ध योजना बनाकर ऊर्जा संरक्षण के प्रयास किये जा रहे हैं.  इसी तरह लघु व मध्यम उद्योगों में भी उर्जा दक्षता हेतु व्यापक प्रयास किये जा रहे हैं.

विद्युत मांग पक्ष प्रबंधन अर्थात डिमांड साइड मैनेजमेंट को सुनिश्चित करते हुए ऊर्जा की मांग में कमी के लक्ष्य प्राप्त करने के व्यापक प्रयास भी किये जा रहे हैं. डीएसएम के हस्तक्षेप से न केवल बिजली की पीक मांग को कम करने में मदद मिली है, बल्कि यह उत्‍पादन, पारेषण और वितरण नेटवर्क में उच्च निवेश को कम करने में भी सहायक होता है.

कृषि हेतु विद्युत मांग के प्रबंधन से  सब्सिडी के बोझ को कम करने में मदद मिलती है.  हमारे प्रदेश में कृषि हेतु बिजली की मांग बहुत अधिक है.  कृषि पंपों की औसत क्षमता लगभग 5 एचपी है पर इनकी ऊर्जा दक्षता का स्तर 25-30% ही है.  यदि समुचित दक्षता के पंप लगा लिये जावें तो इतनी ही बिजली की मांग में ज्यादा पंप चलाये जा सकते हैं.  जिस पर काम किया जा रहा है. किसानों की आय दोगुनी करने के समय बद्ध लक्ष्य को पाने के लिये ऊर्जा दक्षता का योगदान महत्वपूर्ण है.  कृषि पंपसेट,  ट्रैक्टर और अन्य मशीनों का उपयोग न्यूनतम ईंधन से करने और सिंचाई का प्रयोग प्रति बूंद अधिक फसल की कार्यनीति के अंतर्गत करने की योजना को प्रभावी बनाया जा रहा है.  नगरपालिका मांग पक्ष प्रबंधन के द्वारा स्ट्रीट लाइट प्रकाश व्यवस्था,  जल प्रदाय संयत्रो में विद्युत उपयोग में ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है.

बिजली के क्षेत्र में अनुसंधान की व्यापक संभावनायें हैं.  हम आज भी लगभग उसी आधारभूत तरीके से व्यवसायिक बिजली उत्पादन,  व वितरण कर रहे हैं जिस तरीके से सौ बरस पहले कर रहे थे.  दुनिया की सरकारो को चाहिये कि बिजली के क्षेत्र में अन्वेषण का बजट बढ़ायें.  वैकल्पिक स्रोतो से बिजली का उत्पादन,  बिना तार के बिजली का तरंगो के माध्यम से  वितरण संभावना भरे हैं.  हर घर में शौचालय होता है,  जो बायो गैस का उत्पादक संयत्र बनाया जा सकता है,  जिससे घर की उर्जा व प्रकाश की जरूरत  पूरी की जा सकती है.   रसोई के अपशिष्ट से भी बायोगैस के जरिये चूल्हा जलाने के प्रयोग किये जा सकते हैं.   बिजली को व्यवसायिक तौर पर एकत्रित करने के संसाधनो का विकास,  कम बिजली के उपयोग से अधिक क्षमता की मशीनो का संचालन,  अनुपयोग की स्थिति में विद्युत उपकरणो का स्व संचालन से बंद हो जाना,  दिन में बल्ब इत्यादि प्रकाश श्रोतो का स्वतः बंद हो जाना आदि बहुत से अनछुऐ बिन्दु हैं जिन पर हमारे युवा अनुसंधानकर्ता ध्यान दें,  विश्वविद्यालयों व रिसर्च संस्थानो में काम हो तो बहुत कुछ नया किया जा सकता है.   वर्तमान संसाधनो में सरकार बहुत कुछ कर रही है जरूरत है कि विद्युत व्यवस्था को अधिक सस्ता व अधिक उपयोगी बनाने के लिये जन चेतना जागृत हो.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments