श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक व्यंग्य “अपना तो नहीं है, अपना मानने वालों की कमी भी नहीं है” । इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 15 ☆
☆ व्यंग्य – अपना तो नहीं है, अपना मानने वालों की कमी भी नहीं है ☆
“ओ बारीक, एक सुतली बम दे सांतिभिया को, ओके.” – उन्होने आवाज लगाई और मुझसे बोले – “आओ सांतिभिया, आप भी जलाओ, ओके.” भियाजी और भियाजी के फैंस जमकर आतिशबाज़ी कर रहे थे. मामला दीपावली का नहीं था. धमाके की आवाजों के बीच बोले – “कमला आंटी चुनाव जीत गईं हैं अमेरिका में. बस अभी नारियल चढ़ा केई आ रिये हैं और अब बम फोड़ रिये हैं. ओके”
“तो जश्न इस कदर भिया! क्या बात है!!”
“उनके नाम का पहला हिज्जा हिन्दू नाम का जो है. ओके.” – भियाजी ने एक तरह से अंडरलाईन किया.
“क्या मार्के की बात पकड़ी है आपने भिया!! बारीक नज़र चईये कसम से. चौपन साल पहले जो बात उनके माता-पिता ने भी नहीं सोची होगी वो आपने पकड़ ली. फटाके फोड़ने का हक तो है भिया आपको.”
“सांतिभिया, केंडीडेट की जात, धरम, गोत्र, आगा-पीछा सब देखना पड़ता है. ओके. आपको पता है उनकी माँ ब्राह्मण थीं.”
पोजीशन थोड़ी और क्लीयर हुई. दरअसल, भियाजी सर्व ब्राह्मण महापंचायत की लोकल यूनिट के प्रेसिडेंट भी हैं, सो उनकी खुशी दुगुनी है. जो कमला आंटी की मम्मी सनाढ्य ब्राह्मण होतीं तो भियाजी आज सातवें आसमान पे होते. उनका मानना है कि ब्राह्मणों में भी सनाढ्य ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ होते हैं. बहरहाल, वे उनके तमिल ब्राह्मण होने पर ही खुश हैं और इस कदर हैं कि खुशी थम ही नहीं रही. जब वे खुश होते हैं तो किसी की नहीं सुनते, उनकी भी नहीं जिनकी वजह से खुश हैं. कमला आंटी कह रहीं हैं वे अमेरिकी हैं और भियाजी हैं कि उन्हें भारतीय साबित करने पर उतारू हैं. भियाजी को उनके ब्राह्मण होने पर नाज़ है और वे अपने को ब्लैक बेपटिस्ट मानती हैं. आंटी अमेरिकी जनता को अपना मानती हैं, भियाजी हैं कि उन्हें भारत की होने की याद दिला दिला कर हलाकान हुये जा रहे हैं. पिता की ओर से वे अफ्रीकन हैं, भियाजी हैं कि उन्हें इंडियन मान कर लट्टू हुवे जा रहे हैं. हालांकि, खुश तो जमैकन्स भी हैं मगर वे इस कदर इतराये इतराये फूल कर कुप्पा नहीं हुवे जा रहे. वे न भारत में पैदा हुईं, न पली न बड़ी हुई मगर फैंस उनकी पसंद में भारतीयता ढूंढकर बल्लियों उछल रहे हैं. बोले – “पेले मालूम रेता तो चौराहे के बीच में स्टेचू बिठा के माला पिना देते. ओके. पन ठीक है अभी फटाके फोड़ के मना ले रिये हैं जीत का जश्न. ओके.”
“मगर वे अब तो इंडियन नहीं हैं”.
“डबल हैं. मदर से साउथ इंडियन, फादर से वेस्ट इंडियन. ओके. सांतिभिया भगवान नी करे कि ऐसा हो मगर होनी को कौन टाल सकता है, खुदा-न-ख्वास्ता आने वाले चार साल में कोई ऊंच-नीच हो गई और बिडेन दादा ऑफ हो गिये तो व्हाईट हाउस ‘कमला निवास’ में बदलते देर नी लगेगी. ओके”.
“नाम क्यों बदलेंगे व्हाईट हाउस का ?”
“गाँव-शहर, बिल्डिंगों, सड़कों के नाम नहीं बदले तो चुनाव जीतने का फायदा क्या? आपको पता नी होयगा पन सईसाट बता रिया हूँ के वाशिंगटन का पुराना नाम वशिष्ठपुरम ही था. ओके.”
“आप कह रहे हो तो सही होगा भिया. अब आगे क्या प्लान है ?”
“समाज की तरफ से सम्मान करने की सोच रिये हैं. ओके.”
“आ पायेंगी वे ?”
“उनके रिश्तेदारों को बुला लेंगे चेन्नई से. ओके. उनका कर देंगे.” कहकर ओके भिया जीत के जश्न में फिर बिजी हो गये. वे आगे भी बिजी होते रहेंगे. वे आये दिन ऐसे विदेशी नायकों को ढूंढ ही लेते हैं जो खुद को भारतीय माने-न-माने मगर उसमें डीएनए भारत के हों, भले ही बहुत थोड़े से हों मगर भारत के हों. मिल जाये तो मारे खुशी के – शादी बेगानी, दीवाना अब्दुल्ला (हालाँकि अब्दुल्ला कहाना उन्हें सुहायेगा नहीं मगर कहावत का क्या कीजियेगा, ज्यों की त्यों लिखना पड़ती है श्रीमान). उन्होने एक बम और फोड़ा, इस भरोसे के साथ कि उसके फूटने की गूंज सात समंदर पार कमला आंटी ने जरूर सुनी होगी. ओके.
© शांतिलाल जैन
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈