सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “शून्य”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 60 ☆
मैं शून्य हूँ-
हाँ, शून्य ही तो हूँ मैं!
न मेरा कोई रूप,
न ही मेरा कोई स्वरूप,
न मैं अधूरा,
न ही मैं पूरा,
न सोच के दायरे में बंधा हुआ,
न पानी में काई सा रुका हुआ,
न किसी सहर का इंतज़ार,
न कोई साहिल, न कहीं मझदार,
न मेरा सीना दरख़्त सा बड़ा,
न मैं किसी तमन्ना की आस में खड़ा,
न ख्वाहिशों के घेरे में क़ैद,
न चौकन्ना, न मुस्तैद…
आखिर मुझे कोई डर नहीं-
मैं तो शून्य हूँ,
मेरी कोई आरज़ू ही नहीं!
अब तो पसंद हो चला है मुझे
मुझे मेरा यूँ ही शून्य रहना,
न कुछ सुनना, न कुछ कहना;
पानी की एक बूंद सा
गिरकर आसमान से
कहीं भी बह लेता हूँ,
जो मुझे प्यार से बुलाता
उसी का हो लेता हूँ….
मैं शून्य हूँ!
कभी-कभी
कितना अच्छा होता है
शून्य हो जाना
और खो जाना
बहती सी हवाओं में…
तुम भी कभी
शून्य होकर देखो!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈