डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी ऐतिहासिक लघुकथा ‘वह झांसी की झलकारी थी’। ऐसे कई ऐतिहासिक चरित्र हैं जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं किन्तु, उन्हें हमारी आने वाली पीढ़ियां नहीं जानती। ऐसे ऐतिहासिक चरित्र की चर्चा वंदनीय है। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को  इस ऐतिहासिक लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 53 ☆

☆  लघुकथा – वह झांसी की झलकारी थी

उसकी उम्र कुछ ग्यारह वर्ष के आसपास रही होगी, घर में खाना बनाने के लिए वह रोज जंगल जाती और लकडियां बीनकर लाती थी। बचपन में ही माँ का देहांत हो गया था। घर की जिम्मेदारी उस पर आ गई थी। एक दिन ऐसे ही वह लकडियां लाने जंगल जा रही थी कि सामने से बाघ आ गया, वहीं थोडी दूर पर ही एक छोटा बच्चा खेल रहा था। वह जरा भी ना घबराई, उसने अपने तीर कमान निकाले और बाघ को मार डाला। बच्चे को सुरक्षित देख गाँववालों की जान में जान आई, वे सब इसकी जय-जयकार करने लगे। डरना तो उसने सीखा ही नहीं था, साहस उसकी पूंजी थी। भले ही वह शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाई थी लेकिन उसके पिता ने उसे तलवार चलाना, घुडसवारी करना सिखा दिया था। पिता जितनी रुचि से सिखाते बेटी उससे ज्यादा उत्साह से सीखती। बुंदेलखंड की इस बेटी ने देश के लिए  अपना जीवन न्यौछावर कर दिया, ऐसी थी वीरागंना झलकारीबाई।

पहली बार जब रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी को देखा तो आश्चर्यचकित रह गईं क्योंकि वह साहसी तो थी ही, दिखती भी रानी लक्ष्मीबाई जैसी ही थी। उसका साहस और लगन देखकर रानी ने उसे अपनी दुर्गा सेना का सेनापति बना दिया। अपने अनेक गुणों के कारण झलकारी बहुत जल्दी रानी लक्ष्मीबाई की विश्वासपात्र ही नहीं बल्कि उनकी अच्छी सहेली बन गई। शत्रु को चकमा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध किया करती थीं।

अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने के लिए चाल चली कि निसंतान रानी लक्ष्मीबाई अपना उत्तराधिकारी गोद नहीं ले सकतीं।  रानी लक्ष्मीबाई अपनी झांसी इतनी आसानी से  अंग्रेजों को कैसे दे सकती थी ? उसकी सेना में झलकारी  और उसके साहसी पति पूरन जैसे योद्धा थे जो अपने देश के लिए मर मिटने को तैयार थे। अंग्रेजों की सेना ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। जब ऐसा लगा कि अब इन अंग्रेजों से जीतना कठिन है, और किला छोडना पड सकता है, तो  झलकारी बाई ने रानी को कुछ सैनिकों के साथ युद्ध छोड़कर जाने की सलाह दी। इस संकटपूर्ण समय में वीरांगना झलकारी बाई ने एक योजना बनाई। वह लक्ष्मीबाई का भेष धारणकर  सेना का नेतृत्व करती रही और युद्ध में अंग्रेजों को उलझाए रखा। तब तक रानी लक्ष्मीबाई अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं।  ब्रिटिश सैनिक समझ ही नहीं पाए कि रानी लक्ष्मीबाई  किले से कब सुरक्षित बाहर निकल गईं। बाद में अंग्रेजों को पता चला कि जिस वीरांगना ने उन्हें कई दिनों तक युद्ध में घेरकर रखा था, वह रानी लक्ष्मीबाई नहीं बल्कि उनकी हमशक्ल झलकारी बाई थी।

सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम में झलकारी बाई ने अपने बहादुरी और साहस से ब्रिटिश सेना को नाकों चने चबवा दिए थे। झलकारी बाई का पति पूरन सिंह वीर सैनिक था, युद्ध करते हुए वह भी वीरगति को प्राप्त हुआ। अपने पति की मृत्यु का समाचार जानकर भी झलकारी विचलित नहीं हुई। पति की मृत्यु का  शोक ना मनाकर वह तुरंत ही ब्रिटिशों को चकमा देने की नई योजना बनाने लगी थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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