प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की एक भावप्रवण कविता उठो ऐ देश के तरुणो !। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 18 ☆
☆ उठो ऐ देश के तरुणो ! ☆
उठो ऐ देश के तरुणो ! नई किस्मत बनाना है .
मोहब्बत की है क्या ताकत,जमाने को दिखाना है.
अहिंसा के पुजारी देश में , आतंक फैला है .
सभी भयभीत हैं ,वातावरण सारा विषैला है .
उठो श्री कृष्ण सी , मीठी वंशी बजाना है .
दिग्भ्रमित हैं जो उन्हें फिर संग लाना है .
खड़े हैं द्वार पर दुश्मन गलत चालें सिखाते हैं
मजहब और भाषा के लिये हमको लड़ाते हैं
उठो बिखरे हुये घर को तरीके से सजाना है
गिरी पटरी से गाड़ी को सही पटरी पे लाना है
न होगा लाभ केवल , नेता को बदलने से
हुआ बीमार है जनतंत्र खाने और खिलाने से
उठो जुड़ मुख्य धारा से नया भारत बसाना है
अँधेरे में नई आशा का सूरज फिर उगाना है .
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈