श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर व्यंग्य – “चुनाव में भाग्य रेखा“। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 72 ☆
☆ व्यंग्य – चुनाव में भाग्य रेखा ☆
गंगू की टीवी देखने की बुरी आदत है, टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में टीवी वाले छोटी सी बात को धजी का सांप बना देते हैं, और गंगू है कि टीवी की हर बात को सच मान लेता है। इन दिनों गंगू को अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की ज्यादा चिंता है। बिहार और म.प्र.के चुनाव में नेताओं की चालबाजियों और ऊंटपटांग बयानबाजी से उसका मन ऊब गया है, इसलिए अमेरिका के चुनाव में उसका खूब मन लग रहा है।
जब हम पेपर पढ़ने बैठते हैं तो गंगू बीच-बीच में बहुत डिस्टर्ब करता है।पूरा पेपर पढ़ नहीं पाते और बीच में पूछने लगता है–बाबू जी आज के पेपर में अमेरिका के चुनाव के बारे में कुछ नया आया है क्या ? फिर थोड़ी देर बाद कहने लगता है -बाबू जी लाक डाउन के पहले अमेरिका से जो टमटम आये थे उनकी हालत इस बार कुछ पतली लग रही है ? हमने कहा- गंगू चीजों को सही नाम से पुकारना चाहिए,वो जो आये थे वे दुनिया के सबसे अमीर शक्तिशाली राष्ट्रपति माने जाते हैं, उनका असली नाम डोनाल्ड ट्रंप है।
गंगू भड़क गया बोला- देखो बाबू… हम पढ़े लिखे तो नहीं हैं, हमारे मुंह से टमटम ही निकल रहा है तो हम क्या करें….हमारा क्या दोष ……….
और सीधी सी बात है कि हम गरीबी रेखा के नीचे के आदमी हैं, वे अमीर हैं तो अमीर होंगे अपने घर के….. उनके अमीर होने से हमारी गरीबी थोड़े न दूर होगी। बाबू यदि हम उनको टमटम बोल रहे हैं तो वो भी तो हमारे यहां के लोगों को कुछ भी बोल रहे थे।जब वो आये रहे तो मोदी जी के सामने भरी सभा में चाय वाला कहने की जगह ‘चिवाला’ बोल रहे थे, अभी तक तो शिवाला, दिवाला तो सबने सुना था पर ये ‘चिवाला’ तो कभी नहीं सुना था। टमटम भैया हम गरीबों के बीच बड़े होशियार बनना चाहते थे, वो हम सबको दिखाना चाहते थे कि वे भारत के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। कल्लू महराज ने उनका पूरा भाषण सुना रहा, कल्लू महराज ने बता रहे थे कि वे अपने भाषण में स्वामी विवेकानंद को ‘विवेकामनन’, चंद्रयान को ‘चन्डराजान’
और हमारे क्रिकेट हीरो सचिन तेंदुलकर को “सूचिन” कह रहे थे। अरे सही नाम लेते नहीं बन रहा था तो न लेते….
अपनी ज्यादा होशियारी बताने के लिए ‘शोले ‘फिल्म को “सूजे” कह रहे थे। ये भी क्या बात हुई कि सबकी प्यारी फिल्म ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ को उनने “डीडीएलजे” कह कर फिल्म का मजाक उड़ा दिया। हद कर दी टमटम ने… और बाबू जी आप कहते हैं कि टमटम कहने से वो नाराज़ हो जायेंगे। हम गरीब लोग भी तो नाम बिगाड़ने से नाराज़ हैं, काहे चाय वाले को ‘चिवाला’ कह दिया भाई, और अपने मोदी जी सिर झुकाए सब सुनते रहे, मुस्कराते रहे…ये बात तो ठीक नहीं है न….।
–अच्छा बाबू जे बताओ कि ये टमटम कुछ स्वार्थ लेकर आये रहे थे … काहे से कि एक बार कल्लू महराज कह रहे थे कि जे आदमी कभी किसी को भाव नहीं देता, सबको डराये रहता है, हथियार बेचने में विश्वास करता है।
— हां …गंगू सही सुना है, ट्रंप राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं, नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव हैं न…. तो उनको लगता है कि हिन्दूओं के वोट मोदी के मार्फत मिल जाएंगे, इसलिए इस बार उनने मोदी जी को पटाकर ‘नमस्ते ट्रंप ‘कार्यक्रम करवा लिया। उनको मालूम था कि अमेरिका में अधिकांश गुजराती पटैल रहते हैं। यहां आने के पहले उनने मोदी जी को पहले से कह दिया था कि तीन घंटे में सात बार गले मिलना और नौ बार हाथ मिलाना, कोरोना-अरोना से नहीं डरना, भले बाद में लाक डाउन लगाना और थाली कटोरा बजवाना, पर अमेरिका वालों को दिखा देना कि दोस्ती बहुत तकड़ी है, अमेरिका के सारे हिन्दुओं के वोट लूटना है इस बार।
— तो जे बात है बाबू…इधर भी वोट की राजनीति में अपने अस्सी नब्बे करोड़ लुट गये। कल्लू महराज तो कह रहे थे कि टमटम गांधी जी के साबरमती आश्रम भी गए थे तो वहां भी मोदी जी का गुणगान करते रहे… महात्मा गांधी की तरफ देखा भी नहीं….
— बिलकुल सही सुना है गंगू…. साबरमती आश्रम में चरखा देखकर चक्कर खा गए, पत्नी से कान में बोले- इसीलिए इंडिया गरीब है, अभी भी चरखा के पीछे पड़े हैं। मोदी जी बताते रहे उनके समझ में कुछ नहीं आया तो साबरमती आश्रम की विजिटर्स बुक में मोदी की तारीफ के कसीदे काढ़ दिए और गांधी जी को भूल गए। असली क्या है गंगू… कि ट्रंप बुद्धिजीवी या किताबी ज्ञान रखने वाले विचारक किस्म के राजनेता नहीं माने जाते, उन्हें महात्मा गांधी के आदर्श सिद्धांतो से क्या लेना-देना। अहिंसा, सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, अपरिग्रह के सिद्धांत जैसी बातों में ट्रंप को क्यों रुचि होगी। सीधा मतलब ट्रंप को चुनाव जीतने से है, और उनको लगा कि भारतीय पटैलों के वोट मोदी दिला सकते हैं, इसीलिए ट्रंप को तगड़ी दोस्ती का नाटक दिखाना जरूरी था।
जिस दिन ये साबरमती आश्रम से लौटे थे उसी रात को ट्रंप की पत्नी मेलानिया ने पूछा भी था कि गांधी को क्यों जलाया दरकिनार करके आपने मोदी के गुणगान में सब कुछ लिख दिया, तो ट्रंप का सीधा जवाब था कि काम मोदी से है तो गांधी की तरफ क्यूं देखूं… नवंबर के चुनाव यह बात साफ है कि वोट दिलवाने का काम महात्मा गांधी नहीं कर पायेंगे, बल्कि मोदी मोदी कहने से काफी काम बन जाएगा। तुम तो जानती हो युद्ध और राजनीति में सब जायज है, इसलिए हमने चुनाव प्रचार के सारे आइटम इस बार चीन से बुलवाये हैं।
और अंदर की बात सुनो डियर मेलानिया, तुम तो जानती हो कि अमेरिका का राष्ट्रपति ग्लोबल दृष्टिकोण रखते हुए अपने देश के हितों को सर्वाधिक प्राथमिकता देता है, कुछ देश के मुखिया अपना हित और पार्टी के हितों को प्राथमिकता देते हैं। हमारी यात्रा का एक उद्देश्य तो ये है कि नवंबर के चुनाव के लिए वोट का जुगाड़ करना और दूसरा उद्देश्य भारत-अमेरिका मैत्री का नाटक कर भारत को घातक अस्त्र, विमान, लड़ाई का सामान बेचकर लाभ कमाना है। कंगाल पाकिस्तान की बजाय सम्पन्न होता भारत काफी बेहतर और मित्रता के लायक लगता है, इसी कारण से हमने पहले से अमेरिका में “हाउडी मोदी” प्रोग्राम करवा कर गेयर में लेलिया था। वैसे भी भारत के लोग संकोची होते हैं अपना नुकसान करके भी लिहाज करते हैं, इसीलिए माय डियर मेलानिया महात्मा गांधी की चिंता नहीं करो।
–बाबू जी टीवी वाले बता रहे थे कि जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है टमटम की हालत पतली होती जा रही है, सर्वे वाले भी कह रहे हैं कि इस बार इनका आना मुश्किल लग रहा है। सुना है कि हाथ की भाग्य रेखा बदलने के लिए मोदी जी को फोन करके सलाह मांगी है ?
— हां गंगू, तुम बहुत ऊंची खबर रखते हो। क्या है कि ट्रंप बहुत व्यवहारिक दृष्टिकोण रखने वाले नेता हैं, शुरू से धंधा पानी में ध्यान देने वाले, कभी वे अपने को सुपरमेन बताने लगते हैं, कभी मास्क लगाकर सामने वाले को पिद्दी नेता कहने लगते हैं। हालांकि तुमने सही सुना है मोदी जी के पास फोन आया रहा, तो यहां वालों ने भाग्य रेखा बदलने की दुकान का पता बतला दिया है, मीडिया वालों ने बताया कि थाईलैंड में एक दुकान खुली है जिसमें हाथों की लकीरों को बदलकर भाग्य बेहतर बनाने के लिए टेटू का सहारा लिया जाता है, याने भाग्य अवरुद्ध करने वाली लकीरें मिटा दी जाती हैं और हथेलियों पर नयी भाग्य रेखा बना दी जाती है, चुनाव जीतने में भाग्य रेखा का असली रोल होता है, तो अपनी पतली हालत को देखते हुए और चीन की चालबाजियों को समझते हुए ट्रंप जी ने रातों-रात नयी भाग्य रेखा बनवा ली है और कल कुछ भी हो सकता है…….
गंगू और बाबूजी की इस चर्चा को हुए एक अरसा गुजर गया ….. गंगू के टमटम की हालत वास्तव में पतली हो गई। टेटू वालों की नयी भाग्य रेखा किसी काम नहीं आई। गंगू के टमटम आज भी हार मानने को तैयार नहीं है। भला ऊपरवाले की लिखी भाग्यरेखा कभी कोई बदल सका है भला ….. और अपना गंगू है कि टीवी की हर बात को अब भी सच मान लेता है ….
© जय प्रकाश पाण्डेय