श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “माइक, बाइक और लाइक”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 45 – माइक, बाइक और लाइक ☆
आज के समय में एक बढ़िया सी बाइक हो, माइक पर बोलने की कला आती हो, और डिजिटल प्लेटफार्म पर लाइक की बरसात हो रही हो, तो आपको किसी भी चुनाव का टिकिट मिल सकता है। बाइक पर जब कोई रैली निकलती है तो युवा शक्ति की दबंगई का अहसास होता है। साथ ही साथ वहाँ चल रहे राहगीर भी अपनी चाल धीमी कर के एक किनारे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें ये डर होता है कि कहीं नया खून ज्यादा उबाल न मार दे।
रास्ते थम जाते हैं, और हो हल्ले के बीच बाइक सवार निकल जाते हैं। ये सब देखकर कमजोर दिलवाले लोग वहीं, माथा पकड़ कर बैठ जाते हैं।
नगर भ्रमण रैली की लाइव प्रस्तुति सारे डिजिटल प्लेटफार्म पर वायरल हो जाती है, अब तो बधाइयों का दौर शुरू हो जाता है। जब तक टिकिट पक्का न हो जाये तब तक ये प्रचार – प्रसार चलता रहता है।
रैली के आयोजक ने ठंडी आह भरते हुए कहा “मेरा तो दिल ही टूट गया आज के आयोजन से।” दूसरे ने चुटकी लेते हुए कहा मेरा तो शरीर थक कर चकनाचूर हो गया। अब तो सभी मज़ाक के मूड में आ गए। सबने अपना-अपना अनुभव बताना शुरू कर दिया।
तभी महामंत्री जी ने कहा “अरे बेचारे को कोई बताने भी तो दो कि आखिर उसका दिल क्यों टूटा ?”
क्या टूटा भाई जी, कोई मुझे भी तो बताए, टैंट हाउस के कर्मचारी ने पूछा
हमारी नींद टूट गयी है बे, और तुझे सामान की पड़ी है, गुर्राते हुए महामंत्री ने कहा।
टूटे हुए सामान अक्सर लोग उठाकर ले जाते हैं ; सभा में प्रवेश करते हुए बड़े नेता जी ने कहा।
चारों ओर शांति छा गयी। भैय्या जी, नगर निगम चुनाव के लिए मेरी सीट पक्की हुई कि नहीं ? कातर स्वर से नगर महामंत्री जी ने पूछा।
बस पक्की ही समझो, नेता जी ने चिर परिचित मुस्कान बिखेरते हुए कहा। अनयास गम्भीर मुद्रा प्रदर्शित करते हुए कहने लगे, काँटे की टक्कर रहेगी। पूरा दम खम दिखाना होगा तुमको। आज की रैली में कुछ खास मज़ा नहीं आया।
काहे भैया जी, उदास स्वर से छुटभैय्ये नेता ने पूछा।
इतना भी नहीं जानते, चलें हैं देश संभालने, बड़े नेता जी ने अपना कुर्ता ठीक करते हुए कहा। जब तक पुलिस की भागीदारी, लाठीचार्ज, आँसू गैस, हवाई फॉयर न हो तब तक कोई रैली सफल नहीं होती, इसीलिए कहते हैं पहले बड़ों की चरण वंदना करें, उनके साथ सीखें, फिर ये टिकिट की आस लगाएँ। अपनी तरफ से तो मैंने अच्छी रिपोर्ट भेजी है हाईकमान के पास, बाकी आप की कुंडली वहीं पढ़ी जायेगी।
जी भैया जी, कहते हुए महामंत्री ने बड़े नेता जी के चरण पकड़ लिए। आप का आशीर्वाद मिलता रहे बस टिकिट का क्या है, जनता के सेवक बनना चाह रहे थे।
सिर पर हाथ फेरते हुए बड़े नेता जी ने कहा, देखिए इस समय दो गज दूरी बहुत जरूरी का पालन करना है इसलिए दूरी बनाएँ रखें, कहीं ऐसा न हो विपक्षी हमला कर दें। और हाँ कोरोना को रोते रहिए भाषणों में यही आपको मजबूत बनायेगा। कल फिर से जागरूकता रैली करिए, उसमें एक कवि दो कवि भी रखिए जो बुलट में बैठकर गाते बजाते रहेंगे। और हाँ मास्क भी सब लोग जरूर लगाएँ। वैक्सीन की भी चर्चा आपके मुँह से होती रहनी चाहिए। पुराने वीडियो देखिए, रैली कैसे आयोजित होती है। छोटी -छोटी बातों को तूल देना सीखें तभी नेतागिरी चलेगी।
अच्छा चलता हूँ, अरे हाँ पेपर वाले से बात कर ली है मैंने, उसे कुछ खिला – पिला देना। वही तुम्हारी आज की रैली को सफल बना सकता है।
अगले दिन, अखबार की हेड लाइन को पढ़कर बड़े नेता जी मुस्कुराते हुए अपने पी ए से कह रहे थे, “बहुतय जल्दी या महामंत्री नेतागिरी सीख लिहिस।”
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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