डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख  “महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार)

☆ किसलय की कलम से # 26 ☆

☆ महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार ☆

स्वार्थ के दायरे से निकलकर व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के विषय में सोचता है, दूसरों के लिये कार्य करता है। वही परोपकार है।

इस संदर्भ में हम कह सकते हैं कि भगवान सबसे बड़े परोपकारी हैं, जिन्होंने हमारे कल्याण के लिये प्रकृति का निर्माण किया। प्रकृति का प्रत्येक अंश परोपकार की शिक्षा देता प्रतीत होता है। सूर्य और चाँद हमें प्रकाश देते हैं। नदियाँ अपने जल से हमारी प्यास बुझाती हैं। गाय-भैंस हमारे लिये दूध देती हैं। मेघ धरती के लिये झूमकर बरसते हैं। पुष्प अपनी सुगन्ध से दूसरों का जीवन सुगन्धित करते हैं।

परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृत्ति के होते हैं। उन्हें दूसरों को सुख देकर आनंद मिलता है। परोपकार करने से यश बढ़ता है। दुआयें मिलती हैं। सम्मान प्राप्त होता है।

तुलसीदास जी ने कहा है-

‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

पर पीड़ा सम नहीं अधभाई।’

प्रकृति भी हमें परोपकार करने के हजारों उदाहरण देती है जैसे :-

परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः

परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।

परोपकाराय दुहन्ति गावः

परोपकारार्थं इदं शरीरम् ॥

अपने लिए तो सभी जीते हैं किन्तु वह जीवन जो औरों की सहायता में बीते, सार्थक जीवन है.

उदाहरण के लिए किसान हमारे लिए अन्न उपजाते हैं, सैनिक प्राणों की बाजी लगा कर देश की रक्षा करते हैं। परोपकार किये बिना जीना निरर्थक है। स्वामी विवेकानद, स्वामी दयानन्द, रवींद्र नाथ टैगोर, गांधी जी जैसे महापुरुषों के जीवन परोपकार के जीते जागते उदाहरण हैं। ये महापुरुष आज भी वंदनीय हैं।

आज का इन्सान अपने दुःख से उतना दुखी नहीं है, जितना की दूसरे के सुख से।

मानव को सदा से उसके कर्मों के अनुरूप ही फल भी मिलता आया है। वैसे कहा भी गया है:-

 ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’।

 

वे रहीम नर धन्य हैं, पर-उपकारी अंग । 

बाँटन बारे के लगे, ज्यों मेहंदी के रंग ॥

जब कोई जरूरतमंद हमसे कुछ माँगे तो हमें अपनी सामर्थ्य के अनुरूप उसकी सहायता अवश्य करना चाहिए। सिक्खों के गुरू नानक देव जी ने व्यापार के लिए दी गई सम्पत्ति से साधु-सन्तों को भोजन कराके परोपकार का सच्चा सौदा किया।

एक बात और ये है कि परोपकार केवल आर्थिक रूप से नहीं होता; वह मीठे बोलकर,  किसी जरूरतमंद विद्यार्थी को पढ़ाकर, भटके को राह दिखाकर, समय पर ठीक सलाह देकर, भोजन, वस्त्र, आवास, धन का दान कर जरूरतमंदों का भला कर के भी किया सकता है।

पशु-पक्षी भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं, फिर मनुष्य तो विवेकशील प्राणी है। उसे तो पशुओं से दो कदम आगे बढ़कर परोपकारी होना चाहिए ।

परोपकार अनेकानेक रूप से कर आत्मिक आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। जैसे-प्यासे को पानी पिलाना, बीमार या घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाना, वृद्धों को बस में सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, गोशाला बनवाना, चिकित्सालयों में अनुदान देना, प्याऊ लगवाना, छायादार वृक्ष लगवाना, शिक्षण केन्द्र और धर्मशाला बनवाना परोपकार के ही रूप हैं ।

आज का मानव दिन प्रति दिन स्वार्थी और लालची होता जा रहा है। दूसरों के दु:ख से प्रसन्न और दूसरों के सुख से दु:खी होता है। मानव जीवन बड़े पुण्यों से मिलता है, उसे परोपकार जैसे कार्यों में लगाकर ही हम सच्ची शान्ति प्राप्त कर सकते हैं। यही सच्चा सुख और आनन्द है। ऐसे में हर मानव का कर्त्तव्य है कि वह भी दूसरों के काम आए।

उपरोक्त तथ्यों से अवगत कराने का मात्र यही उद्देश्य है कि यदि हमें ईश्वर ने सामर्थ्य प्रदान की है, हमें माध्यम बनाया है तो पीड़ित मानवता की सेवा करने हेतु हमें कुछ न कुछ करना ही चाहिए। सच यह भी है कि ऐसी अनेक संस्थाएँ यत्र-तत्र-सर्वत्र देखी जा सकती हैं जो निरंतर लोक कल्याण में जुटी हैं। मेरी दृष्टि से इससे अच्छे कोई दूसरे विकल्प हो भी नहीं सकते और मानवता का भी यही धर्म है।

किसलय जग में श्रेष्ठ है, मानवता का धर्म।

अहम त्याग कर जानिये, इसका व्यापक मर्म।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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