प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की संस्कारधानी जबलपुर शहर पर आधारित एक भावप्रवण कविता “जबलपुर हमारा “। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 19 ☆
☆ जबलपुर हमारा ☆
रेवा तट पर बसा जबलपुर, शहर हमारा हमको प्यारा
इसकी मन भावन माटी ने, हमें सवारा हमें निखारा
इसके वातावरण, वायु, जल, नभ ने नित उत्साह बढाये
इसके शिष्ट समाज सरल, सदा नेह ममता बरसाये
दृश्य देख इसके बातें सुन, मन ने नये नये स्वप्न सजाये
इससे प्राप्त विशेष ज्ञान ने, पावन विविध विचार जगाये
मन भरती आल्हाद अनोखे, इसकी मंगल परंपराये
इसकी धार्मिक भावनाओ ने, आराधन के गीत गुंजाये
इससे ही बन सका आज मैं, जो हूं साहित्यिक अनुरागी
संवेदी मन ने ज्ञानार्जन की, उत्कंठा, प्रीति न त्यागी
इसकी हर हलचल में दिखता, मुझको एक संसार सुहाना
श्वेत श्याम चट्टानो में है, भरा प्रकृति का सुखद खजाना
दूर-दूर फैला दिखता है, विध्यांचल का हरित वनाचंल
छाया देता, प्यास बुझाता, सबकी मॉ रेवा का आंचल
जहॉ ज्ञान वैराग्य भक्ति तप, रत है सब शोभित तट वासी
मन वांछित सब सुख सुविधाये, पाते हैं साधू सन्यासी
शिक्षा और रक्षा के स्थित, कई एक संस्थान उजागर
धर्म प्राण हैं अधिक निवासी, रेल वायु सुविधाये यहाँ पर
लगता मेरा शहर मुझे प्रिय, अनुपम सब नगरो से ज्यादा
परिवारी स्वजनो से ज्यादा, ममतामय संबंध हमारा
इसकी स्वात्विक रूचि ने ही, संपोषित की मम जीवन धारा
यह ही है पालक पोषक, पूज्य धरा प्रिय नगर हमारा
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈