हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #12 – नैतिकता से स्थाई चरित्र निर्माण ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज   बरहवीं कड़ी में प्रस्तुत है “नैतिकता से स्थाई चरित्र निर्माण”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 12 ☆

 

☆ नैतिकता से स्थाई चरित्र निर्माण ☆

 

सदा से कोई भी गलत काम करने से समाज को कौन रोकता रहा है ? या तो राज सत्ता का डर या फिर मरने के बाद ऊपर वाले को मुंह दिखाने की धार्मिकता, या आत्म नियंत्रण अर्थात स्वयं अपना डर ! सही गलत की पहचान ! अर्थात नैतिकता.

वर्तमान में भले ही कानून बहुत बन गये हों किन्तु वर्दी वालों को खरीद सकने की हकीकत तथा विभिन्न श्रेणी की अदालतों की अति लम्बी प्रक्रियाओं के चलते कड़े से कड़े कानून नाकारा साबित हो रहे हैं. राजनैतिक या आर्थिक रूप से सुसंपन्न लोग कानून को जेब में रखते हैं. फिर बलात्कार जैसे अपराध जो स्त्री पुरुष के द्विपक्षीय संबंध हैं, उनके लिये गवाह जुटाना कठिन होता है और अपराधी बच निकलते हैं. इससे अन्य अपराधी वृत्ति के लोग प्रेरित भी होते हैं.

धर्म निरपेक्षता के नाम पर हमने विभिन्न धर्मों की जो अवमानना की है, उसका दुष्परिणाम भी समाज पर पड़ा है. अब लोग भगवान से नहीं डरते. धर्म को हमने व्यक्तिगत उत्थान के साधन की जगह सामूहिक शक्ति प्रदर्शन का साधन बनाकर छोड़ दिया है. धर्म वोट बैंक बनकर रह गया है. अतः आम लोगों में बुरे काम करने से रोकने का धार्मिक डर नहीं रहा. एक बड़ी आबादी जो तमाम अनैतिक प्रलोभनों के बाद भी अपने काम आत्म नियंत्रण से करती थी अब मर्यादाहीन हो चली है.

पाश्चात्य संस्कृति के खुलेपन की सीमाओं व उसके लाभ को समझे बिना नारी मुक्ति आंदोलनो की आड़ में स्त्रियां स्वयं ही स्वेच्छा से फिल्मो व इंटरनेट पर बंधन की सारी सीमायें लांघ रही हैं. पैसे कमाने की चाह में इसे व्यवसाय बनाकर नारी देह को वस्तु बना दिया गया है.

ऐसे विषम समय में नारी शोषण की जो घटनाएँ रिपोर्ट हो रही हैं, उसके लिये मीडिया मात्र धन्यवाद का पात्र है. अभी भी ऐसे ढ़ेरों प्रकरण दबा दिये जाते हैं.

आज समाज नारी सम्मान हेतु जागृत हुआ है. जरूरी है कि आम लोगों का स्थाई चरित्र निर्माण हो. इसके लिये समवेत प्रयास किये जावें. धार्मिक भावना का विकास किया जाए. चरित्र निर्माण में तो एक पीढ़ी के विकास का समय लगेगा तब तक आवश्यक है कि कानूनी प्रक्रिया में असाधारण सुधार किया जाये. त्वरित न्याय हो. तुलसीदास जी ने लिखा है “भय बिन होय न प्रीत”..ऐसी सजा जरूरी लगती है जिससे दुराचार की भावना पर सजा का डर बलवती हो.

 

© अनुभा श्रीवास्तव