श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता – “प्रेम“। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 74 ☆
☆ कविता – प्रेम ☆
तुम्हारा इस तरह से
पलकों पे आके बैठ जाना,
फिर पलकों में बैठकर
दिन रात आँसू बहाना,
तुम्हारा इस तरह से
पलकों में उठना बैठना,
फिर धार बन बनके
उछलते हुए बह जाना,
यादों के समंदर में
डुबकी लेकर गहराई नापना,
सुबह की धूप बनकर
मन के सोये कोने को कुरेदना,
पर ये भी याद रखना
तुम्हारा पति ही अच्छा है,
उसने तुम्हें सुरक्षा और
जीवन जीने की तरकीब दी है,
रही चाहत की बात
कि चाहत पे किसका हक है,
तुम्हारी याद आँसू बनके
मेरे आँगन में बरसती तो है,
© जय प्रकाश पाण्डेय