श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है एक  समसामयिक कविता “अन्नदाता किसान”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 22 ☆ 

☆ अन्नदाता किसान ☆ 

वो मेहनतकश

जीवन भर

श्रम करता है बस

हाथ में कुदाली लिए

बंजर जमीन को खोदता है

पत्थरों को तोड़ता है

अपने हल से

जमीन को खेती योग्य

बनाता है

मिट्टी में

श्रम बिन्दुओं को मिलाता है

कुआँ खोदकर

निकालता है पानी

प्यासी धरती होती है

उसकी दिवानी

वो बंजर जमीन को

बनाता है उपजाऊ

वो धान,  गेंहू, गन्ना

सब्जी-भाजी बोता है

कि कुछ धन कमाऊं

वो हर ऋतु में

जी-तोड़ मेहनत करता है

उगाता है सभी फसलें

तभी हमारा पेट भरता है

जब मंडी में नहीं मिलते

उसको दाम

रूक जाते हैं

उसके सारे गृहस्थी के काम

बिटिया की शादी

साहूकार का कर्ज

बूढ़ी मां का

नाईलाज मर्ज

बच्चों की आगे की पढ़ाई

घर में रूठी है लुगाई

वो सबको कैसे मनायेगा

सबके चेहरे पर

खुशियाँ कैसे लायेगा

वो इन समस्याओं से ग्रस्त हैं

अपनी गरिबी से त्रस्त है

तब वो हिम्मत जुटाता है

फसलों की उचित कीमत की

माँग उठाता है

 

तब सरमायेदार

उसको रोकते हैं

अश्रू गैस, पानी की बौछारें

बेरिकेड्स, राह में गड्ढे,

आरोप-प्रत्यारोप

सभी कुछ उसकी

राह में झोंकते है

 

पर वो आज

मुखिया के सामने खड़ा है

अपनी मांगें मनवाने

जिद्द पर अड़ा है

क्या कोई

उसके साथ न्यायकर

नया इतिहास गढ़ेगा ?

या सदा की तरह-

हमारा भोला इन्सान

हमेशा से बेजुबान

अन्नदाता किसान

झूठें वादों, जुमलों की

भेंट चढ़ेगा ?

© श्याम खापर्डे 

भिलाई  05/12/20

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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