श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक व्यंग्य “अभिजात्य को आम से ऊपर रखने का तिलिस्म” । इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 16 ☆
☆ व्यंग्य – अभिजात्य को आम से ऊपर रखने का तिलिस्म ☆
एस्केप बटन दबा दिया उसने, ज़िंदगी का.
जब की-बोर्ड की सभी ‘फंक्शन कीज’ काम करना बंद कर दे, या करे तो माल-फंक्शनिंग करे, तो रास्ता सिर्फ एस्केप बटन दबाने का ही बचता है. वही चुना हैदराबाद की ऐश्वर्या ने. ऑनलाईन पढ़ाई करने के लिये उसके पास लैपटॉप था नहीं, गुरबत में गुजर कर रहे माँ-बाप खरीद कर दे पाने की स्थिति में नहीं थे. कई बार एफ-वन दबाया मगर हेल्प न ऑनलाईन मिली न ऑफलाईन. एजुकेशन का सिस्टम हैंग हो गया तो उसने खुद को ही हैंग कर लिया. उसके पास न रि-स्टार्ट का ऑप्शन था न रि-बूट का. स्क्रीन ब्लैंक था, क्या करती सिवाय एस्केप के.
दिल्ली के उस कॉलेज में एडमिशन हुआ था उसका जहां कट-ऑफ निनानवे प्रतिशत से नीचे नहीं जा पाता. ‘एस्केप-की’ दबाने से पहले उसने एफ-थ्री बटन दबाया ही होगा, सर्च फंक्शन, कि मिल जाये किसी तरह रास्ता एक अदद लैपटॉप पाने का. न फॉरवर्ड सर्च काम कर सका न शिफ्ट+एफ-थ्री के साथ बैकवर्ड से खोज पूरी हो सकी. ‘नॉट-फाउंड’ ने मनोबल तोड़ कर रख दिया. जो गुरबत में जीते हैं उनकी ‘एफ़-फ़ाईव-की’ काम नहीं करती, वे न चैप्टर रि-लोड कर पाते हैं न लेसन्स रिफ्रेश. ‘इन्सपायर स्कॉलरशिप’ उसके ‘कशे’ में ‘स्टोर्ड’ थी, ‘रिट्रीव’ हो नहीं सकी. मोटीवेशन का डिवाईस ड्राईवर करप्ट हो गया था. वंचितों की लाईफ में न ऑटो-सेव न ऑटो-रिकवरी की संभावनाएँ. स्टूडेंट्स से ऑनलाइन जुड़ने को कहा जा रहा है, घरों में खाने के लाले पड़े हैं – कमाल का सिस्टम है.
शिक्षा अब एक प्रॉडक्ट है श्रीमान. ‘एड-टेक’ – एजुकेशन में नया फंडा. माँ सरस्वती ने भी इसके बारे में शायद ही सुना हो. बायजूस, वेदान्तु, मेरिटनेशन – शाहरूख जैसा ब्रांड अम्बेसेडर अफोर्ड कर पाना ऐरों-गैरों-नत्थूखैरों के बस का नहीं है. एजुकेशन की लक्झरी ओनली ऑनलाइन अवेलेबल. एजुकेशन के मॉल में फटेहालों का घुसना मना है. इंटरेंस ही लाखों में, मुफ़लिसों के ‘पासवर्ड’ इनवेलिड. दो जून की रोटी का जुगाड़ डिजिटल एजुकेशन पर भारी. न एंड्रायड न डाटा, न कनेक्टिविटी न गैजेट. जिनके लिये एजुकेशन का सिस्टम बूट ही नहीं हो पा रहा वे एफ-एलेवन से फुल-स्क्रीन तो क्या कर पायेंगे. जिंदगी का मदरबोर्ड ही जब बेमकसद हो गया हो तब शिक्षा बाय डिफ़ाल्ट बेमकसद साबित हो ही जाती है. लालच के वाइरस ने एजुकेशन का ऑपरेटिंग सिस्टम करप्ट कर दिया है. जो एंटी-वाइरस लेकर उतरेंगे सड़कों पर उनकी निष्ठा पर सवाल उठाये जाएँगे – वामपंथी, देशद्रोही, टुकड़े-टुकड़े और क्या क्या. पॉवर्टी में लर्निंग से लर्निंग-पॉवर्टी तक का सफर है श्रीमान. आवारा बाज़ार में पूअर ‘ई-वेस्ट’ हैं, जंक अपने ही देश में. दीवारों पर मुँह चिढ़ाता ‘सर्व शिक्षा अभियान’ का विज्ञापन. कभी कृष्ण और सुदामा एक ही क्लास में पढ़ा करते थे, अब अभिजात्य को आम से ऊपर रखने का तिलिस्म है.
लॉक-डाउन ने पढ़ाई का ‘की-पैड’ गरीबों की जिंदगी में डिसेबल कर दिया है. प्राईमरी स्कूल से कॉलेज-यूनिवर्सिटी तक बायो-मेट्रिक्स डिवाईसेस लगीं हैं खाये-पिये अघाये यूजर्स की उँगलियों की छाप का मिलान हो जाये तो लॉगिन कर सकेंगे आप. शेष के लिये है ना आंगनवाड़ी, खैराती स्कूल, सरकारी कॉलेज या फिर वोई एस्केप बटन. ये सेवेन्थ जनरेशन के प्रशासन के की-बोर्ड हैं इन पर से शर्म और गैरत के बटन्स गायब कर दिये गये हैं.
बहरहाल, अब तो ‘रि-सायकल बिन’ से भी डिलीट कर दी गई है ऐश्वर्या की स्टोरी. कौन बताये कि वो परिवार पर बोझ बनाना नहीं चाहती थी इसीलिये शिफ्ट+एफ-एट प्रेस करके सेफ मोड में जाने की बजाये उसने आल्ट+एफ-फोर से सारे एप्लिकेशन क्लोज़ किये और एस्केप कर गई. जब जिंदगी का एफ-टेन ही नॉन-फंक्शनल हो तो मेनुबार का कोई ऑप्शन कैसे एक्टिवेट कर पाती. उसने दुपट्टे का एक सिरा गले के इर्द-गिर्द कसते हुवे दूसरा पंखे से बांधा और लाईफ से एस्केप का बटन दबा दिया. अफसोस कि उसका यह एक्शन ‘अन-डू’ किया भी नहीं जा सकेगा.
© शांतिलाल जैन
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈