सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “छुपाना और बताना”। )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 63 ☆

☆ छुपाना और बताना

उसने पूछा, “आजकल बहुत वाक करती हो?”

मैंने हँसते हुए कहा, “वजन जो बढे जा रहा है!”

उसने भी मुस्कुराते हुए कहा,

“तुम्हारा वजन तो बिलकुल नज़र नहीं आता!”

 

मैं तब तो खिलखिलाकर हँस दी

पर फिर आँगन में झूले पर बैठ सोचने लगी,

कितना कुछ है जो नज़र नहीं आता, है ना?

 

कितनी अनूठी पहेली है यह इंसान भी, है ना?

कितनी बार मन में कुछ और होता है

और बाहर कुछ और दिखाता है!

कई दफा तो इतनी खूबसूरती से छुपा देता है

अपने ज़हन में उग रहे एहसास

कि सालों तक उसके करीबी लोगों को भी

ज़रा भी भनक नहीं होती!

 

कोई ख़ुशी को ख़ामोशी में छुपाता है

तो कोई ग़म को मुस्कान से ढक देता है|

कोई नाराज होते हुए भी मीठी बात करता है

और फिर काट देता है गला मीठी छुरी से

तो कोई मीठी बात कर ही नहीं पाता

और बात-बात पर नाराज़ हो जाता है|

किसी की आज़ादी की परिभाषा

बेटी के लिए कुछ अलग होती है

और बहु या पत्नी के लिए अलग|

 

जितने लोग, उतनी ही बातें…

ऐसे लोगों पर भरोसा न करना ही अच्छा है-

इनसे अच्छी तो क़ुदरत है-

खुश होती है तो बारिश बरसाती है,

दर्द होता है तो झुलसा देती है,

और अगर पीड़ा बढ़ ही जाए तो

बाढ़, सूखा या भूकंप के रूप में

प्रलय भी लाती है –

पर जो भी कहती है

सच ही कहती है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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