श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 64 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
निर्मल अंतःकरण हो, अंदर-बाहर एक
बिरले ही ऐसे यहाँ, जो होते हैं नेक
रखें हौसला शेर सा, जिनके हाथ कमान
सैनिक अपने देश के, होते बहुत महान
चित्र राम का हृदय में, रखते हरदम भक्त
काज समर्पित राम को, करते प्रभु आसक्त
हिल-मिल रहिए प्रेम से, बना रहे सौजन्य
सबको लेकर जो चले, वही जगत में धन्य
संगम गंगा-जमुना का, देता शुभ संदेश
मिल-जुल कर रहते सभी, ऐसा अपना देश
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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