डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 74 – साहित्य निकुंज ☆
☆ लघुकथा – सहना नहीं ☆
“कितनी बार कहा, जा चली जा मायके। मेरी नजर से दूर पर जाती ही नहीं।”
“क्यों जाऊं मांजी..? मैं तो यहीं छाती पर होरा भूंजूँगी । क्या बिगाड़ा है आपका? बहुत सह लिया, अब सहना नहीं।”
“पता नहीं क्या कर रखा है शरीर का? 4 साल में एक बच्चा भी न जन सकी।”
पारो का रोना दिवाकर से देखा नहीं गया। उसने अब फैसला कर लिया बोला – “पारो अब तुम चिंता मत करो। मैंने 1 साल के लिए मुंबई ब्रांच के काम लिए है … चलने की तैयारी करो।”
“क्या हुआ बेटा कहाँ जा रहे हो?”
“माँ, मुंबई ट्रांसफर हो गया है, पारो का चेकअप भी हो जाएगा हम जल्दी ही आ जाएंगे।”
“ठीक है बेटा खुश खबरी देना।”
रास्ते में दिवाकर ने कहा “पारो मेरी कमी के कारण तुम्हें माँ के दिन रात ताने सहने पड़ते है। हमारे डा. दोस्त ने वचन दिया है 9 महीने के अंदर हमें एक बच्चा गोद दिलवा देंगे। तुम जिंदगी भर तानों से बच जाओगी।”
साल भर बाद माँ बच्चे के साथ पारो का भी स्वागत कर रही थी।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
प्रेरक लघुकथा