आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  कविता  ‘मुक्तक सलिला’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 35 ☆ 

☆ मुक्तक सलिला ☆ 

प्रात मात शारदा सुरों से मुझे धन्य कर।

शीश पर विलंब बिन धरो अनन्य दिव्य कर।।

विरंचि से कहें न चित्रगुप्त गुप्त चित्र हो।

नर्मदा का दर्श हो, विमल सलिल सबल मकर।।

*

मलिन बुद्धि अब अमल विमल हो श्री राधे।

नर-नारी सद्भाव प्रबल हो श्री राधे।।

अपराधी मन शांत निबल हो श्री राधे।

सज्जन उन्नत शांत अचल हो श्री राधे।।

*

जागिए मत हे प्रदूषण, शुद्ध रहने दें हवा।

शांत रहिए शोरगुल, हो मौन बहने दें हवा।।

मत जगें अपराधकर्ता, कुंभकर्णी नींद लें-

जी सके सज्जन चिकित्सक या वकीलों के बिना।।

*

विश्व में दिव्यांग जो उनके सहायक हों सदा।

एक दिन देकर नहीं बनिए विधायक, तज अदा।

सहज बढ़ने दें हमें, चढ़ सकेंगे हम सीढ़ियाँ-

पा सकेंगे लक्ष्य चाहे भाग्य में हो ना बदा।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments