श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक सार्थक व्यंग्य  “अलबेले एडमिन सरकार“। ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 77

☆ व्यंग्य – अलबेले एडमिन सरकार ☆

एडमिन तो एडमिन है। एडमिन नहीं रहेंगे तो व्यंग्य विधा का बंटाधार हो जाएगा, इसलिए ग्रुप में रहना है तो एडमिन से खुचड़ नहीं करना लल्लू। एडमिन जो कहे मान लेना, क्योंकि एडमिन सोशल मीडिया का सर्वशक्तिमान राजा होता है उसके तरकस में तरह-तरह के विषेले तीर रहते हैं,वह जब एडमिन बनता है तो अचानक उसके चमचे पैदा हो जाते हैं।उसका मोबाइल बिजी हो जाता है, उसे हर बात में सर सर कहना जरूरी है, कोई भरोसा नहीं वो किस बात से नाराज हो जाए और आपको ग्रुप से निकाल दे, इसलिए एडमिन जो कहे उसे सच  मान लो भले हर सदस्य को लगे कि ये सरासर झूठ है।अहंकारी एडमिन की आदत होती है वो किसी की नहीं सुनता। अनुशासन बनाए रखने की अपील करते करते किसी को भी निकाल देता है और किसी को भी जोड़ लेता है,वो सौंदर्य प्रेमी होता है इसलिए सुंदरता का सम्मान करता है और उनके सब खून माफ कर देता है।

दुर्भाग्यवश एडमिन को उसके अपने घर में मजाक झेलना पड़ता है और उसकी बीबी उसका मोबाइल तोड़ने की धमकी देती रहती है। बीबी बात बात में उसको डांटती है कि कैसा झक्की आदमी हैं कि दिनों रात मोबाइल में ऊंगली घिसता रहता है, घर के कोई काम नहीं करता और तिरछी ऊंगली करके घी चुरा लेता है। बाहर वालों से तो मक्खन लगी चिकनी चुपड़ी बात करता है और घर वालों के प्रति चिड़चिड़ा रहता है। इन दिनों व्यंग्य के ग्रुप बनाने का फैशन चला, एक व्यक्ति यदि दस बारह जगह एडमिन नहीं है तो कचरा व्यंंग्यकार कहलाता है।

एक व्यंग्य का घूमने वाला समूह बना था जिसमें सब अपने आपको नामी-गिरामी व्यंंग्यकार समझते थे, एक नेता टाइप का मेम्बर किसी बात पर बहस करने लगा तो उस ग्रुप के मठाधीश ने अपने तुंदियल एडमिन को आर्डर दिया कि इस नेता टाइप को तुरंत उठा कर फेंक दो ग्रुप से।‌ तुंदियल एडमिन ने उसे अर्श से फर्श पर पटक दिया। घायल नेता टाइप के उस आदमी ने विरोधियों के साथ मिलकर एक नया ग्रुप बना लिया जिसमें पुराने ग्रुप के सब मेम्बर को जोड़ लिया और सात आठ नामी-गिरामी हस्तियों को एडमिन बना दिया। ग्रुप चल निकला। लोग जुड़ते गए… अच्छा विचार विमर्श होता। जीवन में अनुशासन और मर्यादा की खूब बातें होती, फिर नेता जी टाइप का वो मुख्य एडमिन अन्य दंद- फंद के कामों में बिजी हो गया तो उसने दो बहुरुपिए एडमिन बना लिए ।वे प्रवचन देने में होशियार निकले। बढ़िया चलने लगा, समूह में नये नये प्रयोग होने लगे, और ढेर सारे लोग जुड़ते गए । अनुशासन बनाए रखने की तालीम होती रहती,नये नये विषयों पर शानदार प्रवचनों से व्यंंग्यकारों को नयी दृष्टि मिलने लगी, विसंगतियों और विद्रूपताओं पर ध्यान जाने लगा।

इसी दौरान एक महत्वाकांक्षी व्यंंग्यकारा का ग्रुप में प्रवेश हुआ। उनकी आदत थी कि वो हर बड़े व्यंंग्यकार के मेसेन्जर में घुस कर खुसुर फुसुर करती, तो बड़े नामी गिरामी ब्रांडेड व्यंंग्यकार गिल्ल हो जाते। सबको खूब मज़ा आने लगा, मुख्य एडमिन का ध्यान भंग हो गया, मुख्य एडमिन अचानक संभावनाएं तलाशने लगे। हर समूह में ऐसा देखा गया है कि मुख्य एडमिन को जो लोग पटा कर रखते हैं उन्हें ग्रुप में मलाई खाने की सुविधा रहती है। पता नहीं क्या बात हुई कि ऐन मौके पर अनुशासन सामने खड़ा हो गया और अनुशासन के चक्कर में धोखे से एक बहुरुपिए एडमिन ने उन व्यंग्यकारा को हल्की सजा सुना दी और कुछ दिन के लिए समूह से निकाल दिया, मुख्य एडमिन ने जब ये बात सुनी तो वो आगबबूला हो गया, रात को ढाई बजे सब एडमिनों को ग्रुप के बाहर का रास्ता दिखा दिया। दोनों बहुरुपिए एडमिनों ने रातों-रात एक नया ग्रुप बनाया, भगदड़ मच गई, सारे यहां से वहां हो गये। जब अकेले मुख्य एडमिन बचे तो उन्होंने बचे सदस्यों को भी बाहर कर अपने समूह का विसर्जन कर दिया। नये बने ग्रुप में धीरे धीरे मनमानी होने लगी, एडमिनों का अंहकार फूलने लगा, तो फिर यहां से कुछ लोग भागकर दूसरे ग्रुप में चले गए और कुछ ने अपने नये ग्रुप बनाकर एडमिन का सुख भोगने लगे, ऐसा क्रम चल रहा है और चलता रहेगा जब तक वाट्स अप बाबा के दरबार में एडमिनों को अपना नया दरबार लगाने की छूट मिलेगी।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
(टीप- रचना में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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