(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकते हैं ।
आज प्रस्तुत है व्यंग्य संग्रह “अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )
पुस्तक – व्यंग्य संग्रह – अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें
संचयन व संपादन – डा लालित्य ललित और डा हरीश कुमार सिंह
प्रकाशक – इंडिया नेट बुक्स गौतम बुद्ध नगर, दिल्ली
पृष्ठ – २३६
मूल्य – ३०० रु
☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य संग्रह – अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें – संचयन व संपादन – डा लालित्य ललित और डा हरीश कुमार सिंह ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆
लाकडाउन अप्रत्याशित अभूतपूर्व घटना थी. सब हतप्रभ थे. किंकर्त्व्यविमूढ़ थे. कहते हैं यदि हिम्मत न हारें तो जब एक खिड़की बंद होती है तो कई दरवाजे खुल जाते हैं. लाकडाउन से जहां एक ओर रचनाकारो को समय मिला, वैचारिक स्फूर्ति मिली वहीं उसे अभिव्यक्त करने के लिये इंटरनेट के सहारे सारी दुनियां का विशाल कैनवास मिला. डा लालित्य ललित वह नाम है जो अकेले बढ़ने की जगह अपने समकालीन मित्रो को साथ लेकर दौड़ना जानते हैं. वे सक्रिय व्यंग्यकारो का एक व्हाट्सअप समूह चला रहे हैं. देश परदेश के सैकड़ो व्यंग्यकार इस समूह में उनके सहगामी हैं. इस समूह ने अभिनव आयोजन शुरू किये. प्रतिदिन एक रचनाकार द्वारा नियत समय पर एक व्यंग्यकार की नयी रचना की वीडीयो रिकार्डिंग पोस्त की जाने लगी. उत्सुकता से हर दिन लोग नयी रचना की प्रतीक्षा करने लगे, सबको लिखने, सुनने, टिप्पणिया करने में आनंद आने लगा. यह आयोजन ३ महीने तक अविराम चलता रहा. रचनायें उत्कृष्ट थी. तय हुआ कि क्यो न लाकडाउन की इस उपलब्धि को किताब का स्थाई स्वरूप दिया जाये, क्योंकि मल्टी मीडिया के इस युग में भी किताबों का महत्व यथावत बना हुआ है. ललित जी की अगुआई में हरीश जी ने सारी पढ़ी गई रचनायें संग्रहित की गईं, वांछित संपादन किया गया. इस किताब में स्थान पाना व्यंग्यकारो में प्रतिष्ठा प्रश्न बन गया. इ्डिया नेटबु्क्स ने प्रकाशन भार संभाला, निर्धारित समय पर महाकाल की नगरी उज्जैन में भव्य आयोजन में विमोचन भी संपन्न हुआ. देश भर के समाचारो में किताब बहुचर्चित रही.
अब तक पचहत्तर में अकारादि क्रम में अजय अनुरागी की रचना लॉकडाउन में फंसे रहना, अजय जोशी की छपाक लो एक और आ गया, अतुल चतुर्वेदी की कैरियर है तो जहान है, अनीता यादव की रचना ऑनलाइन कवि सम्मेलन के साइड इफेक्ट, अनिला चाड़क की रचना करोना का रोना, अनुराग बाजपाई की रचना प्रश्न प्रदेश बनाम उत्तर प्रदेश, अमित श्रीवास्तव की भैया जी ऑनलाइन, अरविंद तिवारी की खुद मुख्तारी के दिन, अरुण अरुण खरे की रचना साब का मूड, अलका अग्रवाल नोट नोटा और लोटा, अशोक अग्रोही की रचना करोना के सच्चे योद्धा, अशोक व्यास चुप बहस चालू है, आत्माराम भाटी सपने में कोरोना,आशीष दशोत्तर संक्रमित समय और नाक का सवाल, मेरी राजनीतिक समझ कमलेश पांडे, मेरा अभिनंदन कुंदन सिंह परिहार, 21वीं सदी का ट्वेंटी ट्वेंटी केपी सक्सेना दूसरे, मैं तो पति परमेश्वर हूं जी गुरमीत बेदी, नाम में क्या रखा है चन्द्रकान्ता, चीन की लुगाई हमार गांव आई जय प्रकाश पांडे, अगले जन्म मोहे खंबानी कीजो जवाहर चौधरी, बाप रे इतना बुरा था आदमी टीका राम साहू, टथोफ्रोबिया दिलीप तेतरवे, जाने पहचाने चेहरे दीपा गुप्ता शामिल हैं.
कहानी कान की देवकिशन पुरोहित, हे कोरोना कब तक रोएं तेरा रोना देवेंद्र जोशी, पिंजरा बंद आदमी और खुले में टहलते जानवर निर्मल गुप्त, टांय टांय फिस्स नीरज दैया, हिंदी साहित्य का नया वाद कोरोनावाद पिलकेंद्र अरोड़ा, बहुमत की बकरी प्रभात गोस्वामी, स्थानांतरण मस्तिष्क का प्रमोद तांबट, सुन बे रक्तचाप प्रेम जनमेजय, यस बास प्रेमविज, सेवानिवृति का संक्रमण काल बल्देव त्रिपाठी, मन के खुले कपाट बुलाकी शर्मा, मेरा स्कूल ब्युटीफुल भरत चंदानी, जी की बात मलय जैन, आवश्यकता गरीब बस्ती की मीनू अरोड़ा, हिंदी साहित्य की मदद मुकेश नेमा, श्रद्धांजलि की ब्रेकिंग न्यूज़ मुकेश राठौर, छबि की हत्या मृदुल कश्यप, और सपने को सिर पर लादे चल पड़ा रामखेलावन गांव की ओर रण विजय राव, यमलोक में सन्नाटा रतन जेसवानी, चालान रमाकांत ताम्रकार, छूमंतर काली कंतर रमेश सैनी, बुरी नजर वाले रवि शर्मा मधुप, झक्की मथुरा प्रसाद रश्मि चौधरी, डरना मना है राकेश अचल, करोना से मरो ना राजशेखर चौबे, वाह री किस्मत राजेंद्र नागर, स्वच्छ भारत राजेश कुमार, लॉकडाउन में आत्मकथा लिखने का टाइम रामविलास जांगिड़, पांडेय जी बन बैठे जिलाधिकारी गाजियाबाद लालित्य ललित, कोरोना वायरस वर्षा रावल के लेख हैं
फॉर्मेट करना पड़ेगा वायरस वाला 2020 विवेक रंजन श्रीवास्तव, आई एम अनमैरिड वीणा सिंग, सरकार से सरकार तक वेद प्रकाश भारद्वाज, रतन झटपट आ और करोड़पति बन वेद माथुर, दीपिका आलिया और मेरी मजबूरी शरद उपाध्याय, नैनं छिद्यन्ति शस्त्राणि श्याम सखा श्याम, करोना तुम कब जाओगे संजय जोशी, टीपूजी से कपेजी संजय पुरोहित, अंगुलीमाल का अहिंसा का नया फंडा संजीव निगम, मैडम करुणा की प्रेस कान्फ्रेंस संदीप सृजन, हमाई मजबूरी जो है समीक्षा तैलंग, तस्वीर बदलनी चाहिये सुदर्शन वशिष्ठ, रुपया और करोना सुधर केवलिया, लॉकडाउन के घर में सुनीता शानू, मन लागा यार फकीरी में सुनील सक्सेना, तुम क्या जानो पीर पराई सुषमा राजनीति व्यास, लाकडाउन में तफरी सूरत ठाकुर, भाया बजाते रहो स्वाति श्वेता, क्वारंटाइन वार्ड स्वर्ग में हनुमान मुक्त, मैं तो अपनी बैंक खोलूंगा पापा हरीश कुमार सिंह और अस्पताल में एंटरटेनमेंट हरीश नवल के व्यंग्य सम्मलित हैं.
जैसा कि व्यंग्य लेखों के शीर्षक ही स्पष्ट कर रहे हैं किताब के अधिकांश व्यंग्य करोना पर केंद्रित तत्कालीन पृष्ठभूमि के हैं. जब भी भविष्य में हिन्दी साहित्य में कोरोना काल के सृजन पर शोध कार्य होंगे इस किताब को संदर्भ ग्रंथ के रूप में लिया ही जायेगा यह तय मानिये. आप को इन व्यंग्य लेखो को पढ़ना चाहिये. देखना सुनना हो तो यूट्यूब खंगालिये शायद लेखक के नाम या व्यंग्य के नाम से कहीं न कही ये व्यंग्य सुलभ हों. क्योकि हर व्यंग्य का वीडियो पाठ मैंने व्हाट्सअप ग्रुप पर कौतुहल से देखा सुना है. बधाई सभी सम्मलित रचनाकारो को, जिनमें वरिष्ठ, कनिष्ठ, नियमित सक्रिय, कभी जभी लिखने वाले, महिलायें, इंजीनियर, डाक्टर, संपादक, सभी शामिल हैं. बधाई संपादक द्वय को और प्रकाशक जी को.
समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈