श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा  “माँ तो माँ है!”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #12☆

 

☆ माँ तो माँ है!☆

 

रमा अपने बेटे को छाती से चिपका कर रो पड़ी, “सुनते हो जी ! कुछ करो ना ? ” उस की बोली निकल नहीं पा रही थी.

आज शाम से ही रमा के बेटे को उलटी दस्त होने लगे थे. जो रूकने का नाम नहीं ले रहे थे. उस ने डॉक्टर को दिखाया. दवा पिलाई. मगर दस्त थे कि बंद नहीं हुए. यह देख कर रमा अपने पुत्र को गोद में ले कर रात भर बैठी रही. वह अपनी सब सुधबुध खो चुकी थी.

तभी रमा के पति अविनाश की आँखें लग गई.

यह देख कर रमा चिल्लाई, “ये क्या है?” वह लगभग चीख पड़ी थी, “हमारा बेटा बीमार पड़ा है और आप नींद निकाल रहे है ?”

अविनाश हड़बड़ा कर उठ बैठा, “क्या हुआ ?”

“मेरे पुत्र की हालत देखो. इस के लिए कुछ भी करो. यह ठीक नहीं हुआ तो मैं मर जाऊंगी.”  वह तड़फ उठी, “तुम क्या जानो. माँ क्या होती है ?”

यह सुन कर अविनाश की आँखें फटी की फटी रह गईं, “माँ अपने बच्चे के लिए इतने दुख-दर्द झेलती है ?”

“हाँ, और नहीं तो क्या?” रमा कहने को तो कह गई. मगर, जब अविनाश को उठते हुए देखा तो पूछ बैठी, “अब कहाँ चल दिए ?”

“अपनी बीमार माँ को अनाथालय से लेने,” अविनाश ने कहा और अनाथालय की ओर चल दिया,  “माँ तो माँ होती है. चाहे वह तुम जैसी माँ हो या मेरे जैसे बेटे की माँ?’’

यह सुन कर रमा की आँखों में भी आँसू आ गए.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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