डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके “साप्ताहिक स्तम्भ -साहित्य निकुंज”के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की स्व. माँ की स्मृति में एक भावप्रवण कविता “सपना”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 10 साहित्य निकुंज ☆
☆ सपना ☆
मैं नींद
के आगोश में सोई
लगा
नींद में
चुपके-चुपके रोई
जागी तो
सोचने लगी
जाने क्या हुआ
किसी ने
दिल को छुआ
कुछ-कुछ
याद आया
मन को बहुत भाया
देखा था
सपना
वो हुआ न पूरा
रह गया अधूरा
उभरी थी धुंधली
आकृति
अरेे हूँ मैं
उनकी कृति
वे हैं
मेरी रचयिता
मेरी माँ
एकाएक
हो गई
अंतर्ध्यान
तब हुआ यह भान
ये हकीकत नहीं
है एक सपना
जिसमें था
कोई अपना
बहुत सुंदर कविता