श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है  “तिष्यरक्षिता” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – खण्ड काव्य – तिष्यरक्षिता# 88 ☆ 
 पुस्तक चर्चा

पुस्तक – खण्ड काव्य – तिष्यरक्षिता

लेखक –  डा संजीव कुमार 

IASBN – 9789389856859

वर्ष – २०२०

प्रकाशक – इंडिया नेट बुक्स गौतम बुद्ध नगर, दिल्ली

पृष्ठ – १३२

मूल्य – २०० रु

☆ पुस्तक चर्चा ☆ खण्ड काव्य – तिष्यरक्षिता  –  डा संजीव कुमार ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆

नव प्रकाशित खण्ड काव्य तिष्यरक्षिता को समझने के लिये हमें तिष्यरक्षिता की कथा की किंचित पृष्ठभूमि की जानकारी जरूरी है. इसके लिये हमें काल्पनिक रूप से अवचेतन में स्वयं को चक्रवर्ती सम्राट अशोक के समय में उतारना होगा. अर्थात  304 बी सी ई से  232 बी सी ई की कालावधि, आज से कोई 2300 वर्षो पहले. तब के देश, काल, परिवेश, सामाजिक परिस्थितियो की समझ तिष्यरक्षिता के व्यवहार की नैतिकता व कथा के ताने बाने की किंचित जानकारी  लेखन के उद्देश्य व काव्य के साहित्यिक आनंद हेतु आवश्यक है.

ऐतिहासिक पात्रो पर केंद्रित अनेक रचनायें हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं. तिष्यरक्षिता, भारतीय मौर्य राजवंश के महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक की पांचवी पत्नी थी. जो मूलतः सम्राट की ही चौथी पत्नी असन्ध मित्रा की परिचारिका थी. उसके सौंदर्य से प्रभावित होकर अशोक ने आयु में बड़ा अंतर होते हुये भी उससे विवाह किया था. पाली साहित्य में उल्लेख मिलता है कि तिष्यरक्षिता बौद्ध धर्म की समर्थक नहीं थी.  वह स्वभाव से अत्यंत कामातुर थी.

अशोक की तीसरी पत्नी पद्मावती का पुत्र  कुणाल था. जिसकी  आँखें बहुत सुंदर थीं. सम्राट अशोक ने अघोषित रूप से कुणाल को अपना उत्तराधिकारी मान लिया था. कुणाल तिष्यरक्षिता का समवयस्क था. उसकी आंखो पर मुग्ध होकर उसने उससे प्रणय प्रस्ताव किया. किंतु कुणाल ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया.  तिष्यरक्षिता अपने सौंदर्य के इस अपमान  को भुला न सकी.  जब एक बार अशोक बीमार पड़ा तब तिष्यरक्षिता ने उसकी  सेवा कर उससे मुंह मांगा वर प्राप्त करने का वचन  ले लिया. एक बार तक्षशिला में विद्रोह होने पर जब कुणाल उसे दबाने के लिए भेजा गया तब तिष्यरक्षियता ने अपने वरदान में सम्राट, अशोक की राजमुद्रा प्राप्तकर तक्षशिला के मंत्रियों को कुणाल की आँखें निकाल लेने तथा उसे मार डालने की मुद्रांकित आज्ञा लिख भेजी.  इस हेतु अनिच्छुक मंत्रियों ने जनप्रिय कुणाल की आँखें तो निकलवा ली परंतु उसके प्राण छोड़ दिए.  अशोक को जब इसका पता चला तो उसने तिष्यरक्षिता को दंडस्वरूप जीवित जला देने की आज्ञा दी.

त्रिया चरित्र की यही कथा खण्ड काव्य का रोचक कथानक है. जिसमें इतिहास, मनोविज्ञान, साहित्यिक कल्पना सभी कुछ समाहित करते हुये डा संजीव कुमार ने पठनीय, विचारणीय, मनन करने योग्य, प्रश्नचिन्ह खड़े करता खण्ड काव्य लिखा है. उन्होने अपनी वैचारिक उहापोह को अभिव्यक्त करने के लिये  अकविता को विधा के रूप में चुना है.तत्सम शब्दो का प्रवाहमान प्रयोग कर  १६ लम्बी भाव अकविताओ में मनोव्यथा की सारी कथा बड़ी कुशलता से कह डाली है.

कुछ पंक्तियां उधृत करता हूं

क्रोध भरी नारी

होती है कठिन,

और प्रतिशोध के लिये

वह ठान ले, तो

परिणाम हो सकते हैं

महाभयंकर.

वह हो प्रणय निवेदक तो

कुछ भी कर सकती है वह

क्रोध में प्रतिशोध में

या

यूं तो मनुष्य सोचता है

मैं शक्तिमान

मैं सुखशाली

मैं मेधामय

मैं बलशाली

पर सत्य ही है

जीवन में कोई कितना भी

सोचे मन में सब नियति का है

निश्चित विधान.

राम के समय में रावण की बहन सूर्पनखा, पौराणिक संदर्भो में अहिल्या की कथा, गुरू पत्नी पर मोहित चंद्रमा की कथा, कृष्ण के समय में महाभारत के अनेकानेक विवाहेतर संबंध, स्त्री पुरुष संबंधो की आज की मान्य सामाजिक नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह हैं. दूसरी ओर वर्तमान स्त्री स्वातंत्र्य के पाश्चात्य मापदण्डो में भी सामाजिक बंधनो को तोड़ डालने की उच्छृंखलता इस खण्ड काव्य की कथा वस्तु को प्रासंगिक बना देती है. पढ़िये और स्वयं निर्णय कीजीये की तिष्यरक्षिता कितनी सही थी कितनी गलत. उसकी शारीरिक भूख कितनी नैतिक थी कितनी अनैतिक. उसकी प्रतिशोध की भावना कुंठा थी या स्त्री मनोविज्ञान ? ऐसे सवालो से जूझने को छोड़ता कण्ड काव्य लिखने हेतु डा संजीव बधाई के सुपात्र हैं.

 

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments