सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है “चाहत-ए-नैरंग”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 66 ☆
न कोई ख़ुशी, न कोई गुमाँ
थी लगती ज़िंदगी धुंआ-धुंआ
खेले जैसे कोई बाज़ी ताश की
यूँ चलती जीस्त जैसे हो जुआ
दूर घाटियों तक आवाज़ चीरती
थीं नज़र ढूँढ़ रही कोई रहनुमा
थक गयी घुटना टेके हारकर
थी हुई न कुबूल कोई दुआ
जब कहीं झांका भीतर रूह के
यूँ लगा चाहत-ए-नैरंग हुआ
यूँ मुस्कुराकर खिल दिए गुल
हो जैसे मैंने मौला को छुआ
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈