श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “आशीर्वाद बना रहे”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 51 – आशीर्वाद बना रहे☆
व्याधि, उपाधि ,समाधि इन सबको अंगीकार कर जब व्यक्ति सफलता के मद में डूबता उतराता है तभी कहीं से ये आवाज सुनाई पड़ती है।
अपनी योग्यता को बढ़ाते हुए ही तुम्हें नंबर वन बनने की आवश्यकता है। यदि नींव का पत्थर चिल्ला-चिल्ला कर ये कहे कि मेरे ऊपर ही बिल्डिंग के सारे माले का भार है परंतु ऊपरी माले के लोग मुझे पहचानते भी नहीं तो इसका क्या उत्तर होगा ?
जाहिर सी बात है कि समय के साथ -साथ एक -एक पायदान छूटते ही जाते हैं। कई बार बता कर सम्मान पूर्वक अलग किया जाता है तो कई बार धोखे से, पर परिणाम वही रहता है। सफलता की सीढ़ियाँ होती ही ऐसी हैं, जहाँ येन केन प्रकारेण धक्का देते हुए ही लोग आगे बढ़ते हैं और अंत में जब ठोकर लगती है तब एक ही झटके में मुँह के बल नीचे आ गिरते हैं और इस समय एकदम अकेले होकर नींव की ओर देखते हैं। पर बेरुखी झेलते हुए नींव के पत्थर इस घटना को भी मूक दर्शक बन कर झेल जाते हैं।
हर कदम पर साए की तरह साथ – साथ चलते रहे, बिना कुछ कहे; हर सही गलत के न केवल साक्षी बनें वरन साथ भी दिया। फिर भी हमें लगातार उपेक्षित किया गया आखिर क्यों ? अब जो भी होगा वो तुम्हें अकेले झेलना होगा। नींव के पत्थरों ने मन ही मन फैसला करते हुए कहा।
उसने भी हाथ को जमीन में टेक कर उठते हुए कहा अभी भी मैं युवा हूँ। नए सिरे से पुनः सबको जोड़कर सफलता के शीर्ष पर विराजित होऊँगा।
नींव ने कहा जरूर, जो परिश्रमी होता है उसे सब कुछ मिलता है , थोड़ा धैर्य रखो और सबको लेकर आगे बढ़ो।
अरे दादा , सबके सहयोग से ही बढ़ता हूँ , पर जो अनावश्यक हुज्जत करके, टांग खींचते हैं उन्हें छोड़ता जाता हूँ क्योंकि मेरे पास इतना समय नहीं है कि उनको समझाता रहूँ। वैसे भी शीर्ष पर स्थापित होना और वहाँ बने रहना कोई आसान नहीं होता।
जो भी एकाग्रता से मेहनत करेगा उसे अवश्य ही ऊपर स्थान मिलेगा। चुनौतियों का सामना करिए, ऊपर वाला उसी की परीक्षा लेता है जिसे वो कुछ देना चाहता है।
सो तो है। अबकी बार नई रणनीति से कार्य करूँगा। जो साथ चले चलता रहे , जितना सहयोग करना हो करे , जहाँ छोड़ कर जाना हो जाए। अपनी ऊर्जा बस लक्ष्य प्राप्ति की ओर ही लगाना है।
यही तो खूबी है तुम्हारी, तभी तो एक – एक कर निरन्तर बढ़ते जा रहे हो। नेतृत्व करने हेतु हृदय को विशाल करना पड़ता है। तेरा तुझको अर्पण करते हुए चलने से ही लोग जुड़ते हैं।
सो तो है। बस आधारभूत स्तम्भ बनें रहें, फिर चाहें जितने माले तैयार करते चलो कोई समस्या नहीं आती है।
रेत और सीमेंट का सही जोड़ हो और पानी की तराई भी भरपूर हो, तभी दीवालों में मजबूती रहेगी। अन्यथा दरार पड़ते देर नहीं लगती है। पहले माले में नेह रूपी जल सींचा गया था जिससे सारे झटके सहते चले गए पर अबकी बार भगवान ही बचाए।
खैर ये सब तो जीवन का हिस्सा है। बड़ों का आशीष बना रहे और क्या चाहिए।
जबलपुर (म.प्र.)© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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