हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 3 ☆ अरबी के पत्तों का पानी ☆ – सौ. सुजाता काळे
सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं । वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की ऐसी ही एक संवेदनात्मक भावप्रवण कविता ‘नजरें पार कर’।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 3 ☆
☆ अरबी के पत्तों का पानी ☆
प्रिये,
तुम नक्षत्रों से चमकती हो,
मैं अदना सा टिमटिमाता हुआ तारा हूँ ।
तुम बवंड़र सी चलती आँधी हो,
मैं पुरवाई की मंद बहती हवा हूँ ।
तुम कोहरे से लिपटी हुई सुबह हो
मैं दूब पर रहती की ओस की बूँद हूँ ।
तुम शंख में रहनेवाला मोती हो
मैं अरबी के पत्तों का चमकता पानी हूँ ।
© सुजाता काळे …
पंचगनी, महाराष्ट्र।
9975577684