श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक समसामयिक विषय पर विचारणीय रचना “फूटा ढोल”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 52 – फूटा ढोल ☆
कालूराम का फट गया ढोल, बीच बजरिया खुल गयी पोल… खूब जोर शोर से यह गाना बज रहा था। सभी मदिरा के नशे में मदमस्त होकर अपनी ही धुन में झूमे जा रहे थे कि सहसा कुछ चिटकने की आवाज कानों में गूँज उठी। ये स्वर इतना विषैला था कि ढोल वाले के हाथ जहाँ के तहाँ ऐसे जमें मानो बर्फीले इलाके में अचानक बर्फबारी शुरू हो गयी हो।
ऐसा दृश्य दिन के तीसरे या चतुर्थ प्रहर में हो तो एक बार मन स्वीकार कर लेता है किंतु जब पहले और दूसरे प्रहर में ये सब घटित हो तो मन वितृष्णा से भर ही जाता है। बिना सोची समझी योजना के ऐसे कार्य हो ही नहीं सकते हैं। खैर जब व्यक्ति शब्दों की गलत व्याख्या पर उतर आए तब ऐसा होना लाजिमी ही होता है। गणतंत्र के नाम पर देशहितों को ताक पर रखकर हंगामा करना, जिससे मानवता शर्मशार होती हो, ये सब किसी भी रूप में जायज नहीं हो सकता है।
तमाशा मचाने हेतु बहुत से अवसर ढूंढे जा सकते थे, किंतु जब सारा विश्व भारत की ओर उम्मीद लगाए हो तब ऐसा परिदृश्य उकेरना किसी के हित में नहीं हो सकता है। शायद ऐसे ही समय के लिए लिखा गया था कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं , मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। सब कुछ बदलिए पर तरीका सही हो तभी परिणाम सुखद होते हैं। पर कहते हैं न कि, विनाश काले विपरीत बुद्धि …सो ऐसा ही यहाँ भी घटित हो गया।
कुरीतियों का परचम इतने जोर से फहराया कि इससे सारी हदें पार कर दीं। जहाँ – तहाँ , बदनीयती ही झलकने लगी। सारे रंग तिरंगे की ओर देखकर उससे पूछ रहे थे कि तुम्हें आसमान में स्थापित करने हेतु कितनों ने सीने पर हँसते – हँसते गोलियाँ खायीं हैं, और आज ये क्या हो गया ?
अपनी जायज नाजायज सभी माँगों को क्या तुम्हारे माध्यम से ही पूरा किया जावेगा। अभी भी समय है सभी रंग एकजुट होकर मातृभूमि के साथ खड़ें हो और तिरंगे को सलाम करते हुए गौरवान्वित हों।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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