श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है  उपन्यास  “ककनमठ ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – उपन्यास – ककनमठ  # 89 ☆ 
 पुस्तक चर्चा

पुस्तक – उपन्यास  – ककनमठ 

लेखक –  पंडित छोटेलाल भारद्वाज

पृष्ठ – 180

मूल्य – 500 रु

☆ पुस्तक चर्चा ☆ उपन्यास – ककनमठ  –  पंडित छोटेलाल भारद्वाज ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆

विक्रम संवत 1015 से 1025 के मध्य काल में अद्भुत विशाल कच्छप घात राजवंश के शैव संप्रदाय में राजा कीर्तिराज और रानी कंगनावती के प्रेम की परिणीति के स्मारक के रूप में भगवान शंकर का विशाल लगभग 115 फिट ऊंचा मंदिर ककनमठ का निर्माण कराया गया था,  जो आज भी मुरैना जिले के अश्व नदी के किनारे महमूद ग़ज़नवी, अल्तमश और अन्य सिकंदर लोदी जैसे आक्रांताओं के प्रहारों को सहने के कारण क्षत-विक्षत स्वरूप में ही भले हो पर अपना गौरवशाली इतिहास समेटे हुए मीलों दूर से उच्च मीनार जैसा दिखने वाला शिल्प समुच्चय  आज भी मौजूद है । राजा कीर्तिराज और कंकण की प्रेम कहानी की अमरता का यह आध्यात्मिक  प्रतीक बना । प्रेम के आध्यात्मिक परिणीति की हमारी पुरातन संस्कृति का यह स्मारक खजुराहो, कोणार्क जैसे भव्य मंदिरों श्रृंखला में एक कम चर्चित पर पौराणिक स्थल है।

लेखक ने इस पुरातात्विक स्मारक के ऐतिहासिक मूल्यों की रक्षा  करते हुए जनश्रुतियों के आधार पर कहानी को बुना है।  सरल भाषा में यह ऐतिहासिक विषय वस्तु का उपन्यास पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है।

यह महमूद गजनवी  जैसे आक्रांता पर राजा कीर्तिराज की वीरता पूर्ण जीत का भी गवाह है। जिसके कारण गजनवी केवल लूटपाट करके ही इस क्षेत्र से भाग गया था।

उपन्यास में वर्णन के माध्यम से लेखक ने अनेक शाश्वत मूल्य को भी स्थान दिया है उदाहरण के तौर पर गुरु हृदय शिव राजा से कीर्ति राज से कहते हैं “वत्स राज्य संचालन के लिए हृदय की जिस गरिमा की आवश्यकता है वही देश की रक्षा के लिए भी आवश्यक है संकुचित है ना स्वयं की रक्षा कर पाता है और ना अपने देश की”

यह ऐतिहासिक आंचलिक कथावस्तु पर आधारित उपन्यास वीरता व प्रेम का दस्तावेज भी है, जो तब तक प्रासंगिक बना रहेगा जब तक ककनमठ के क्षतिग्रस्त अवशेष भी हमारी धरोहर बने रहेंगे।

 

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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