डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं। आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख “नारी में सौन्दर्य ही पर्याप्त नहीं”.)
☆ किसलय की कलम से # 33 ☆
☆ नारी में सौन्दर्य ही पर्याप्त नहीं ☆
परियों और राजकुमारियों के सौन्दर्य बखान करने में कवियों – शायरों – कहानीकारों ने शायद ही कोई कसर छोड़ी होगी। आदि से अब तक रूप, रंग और सुन्दरता को ही प्राय: लोकप्रियता का आधार माना जाता रहा है, भले ही उसका दूसरा पहलू प्रशंसनीय रहा हो अथवा नहीं। यही कारण है कि लोगों का झुकाव सुन्दरता की दिशा में अधिक होता गया और निश्चित रूप से जो सुन्दर नहीं है, उनके मन में कहीं न कहीं हीन भावना अपना स्थान बनाने में सफल होती गई, मगर दृढ़ता और विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि ऐसा कदापि नहीं है। अनपढ़ कालिदास, अंधे सूरदास, पोलियोग्रस्त क्रिकेटर चन्द्रशेखर, संगीतज्ञ दिव्यदर्शी रवीन्द्र जैन आदि अनेक नामों को गिनाया जा सकता है, जिन्हें लोकप्रियता रंग, रूप अथवा सौन्दर्य के बलबूते नहीं मिली। इन्होंने अपनी विशेष योग्यताओं के कारण लोकप्रियता हासिल की है। आज भी कला, संगीत, अभिनय, नृत्य, गायन, खेल, समाज सेवा जैसे अनेक क्षेत्र हैं जिनमें दक्ष महिलायें अथवा पुरुष दोनों ही लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचकर अपने जीवन को सुखमय एवं सार्थक बनाने में सफल हो सकते हैं, फिर भी लड़कियों एवं महिलाओं में अपने रंग, रूप और सौन्दर्य को लेकर प्रतिस्पर्धा सहज ही निर्मित हो जाती है। वहीं दूसरी ओर हीन भावना भी पनपती है। यह हीन भावना उन लड़कियों में अधिक प्रभाव डालती है जो कम सुन्दर होने के साथ – साथ किसी भी अन्य क्षेत्र में निपुण नहीं होतीं। इन परिस्थितियों में स्वयं लड़कियों अथवा अभिभावकों की ज़रा सी भूल या असतर्कता उनका सारा जीवन अंधकारमय बना सकती है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि लड़कियाँ आकर्षक अथवा सुन्दर नहीं हैं तब इसका मतलब यह कदापि नहीं होना चाहिये कि उनका तिरस्कार किया जाए। किसी न किसी बहाने अथवा मौका मिलते ही इनकी कमियों की ओर इशारा और समझाईश दी जाना चाहिए। उन लड़कियों और नवयुवतियों को भी चाहिए कि वे विवाह पूर्व इस कमी की पूर्ति हेतु अनेक कलाओं – विधाओं में दक्षता प्राप्त कर लें। यह पाया गया है कि अधिकांश लोगों का ध्यान सौन्दर्य दर्शन में ही केन्द्रित होता है और शेष गुणों की ओर अपेक्षाकृत कम प्रभावित होते हैं। यह सत्यता भी है कि सामने दिखाई देने वाले गुण प्रथम दृष्टि में ही प्रभावित कर लेते हैं, जबकि अन्य गुणों की जानकारी हेतु निकटता एवं संवाद की आवश्यकता होती है। प्राय: लड़कियों में उत्पन्न सौंदर्यबोध अभिमान का अनुभव कराने लगता है। साथ ही गैरों की टिप्पणियाँ जहाँ एक ओर आनंद की अनुभूति देती है, वहीं दूसरी ओर तनाव भी बढाती हैं, जिनसे वे लक्ष्य को पाने में आंशिक परेशानी महसूस करने लगती हैं। यहाँ कहा तो जा सकता है कि लड़कियों का दूसरा वर्ग इस तरह की परेशानियों से अछूता रहता है, फिर भी ऐसे में सुन्दरता की कमी को पूर्ण करने हेतु कोई न कोई पूरक अथवा विकल्प अत्यावश्यक होता है। यही पूरक अथवा विकल्प ही उन लड़कियों का भविष्य निश्चित करता है। उसमें कठिन परीक्षा लगन, साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है। लगातार मेहनत और लगन उसे अच्छी गायिका, समाज सेवी, अभिनेत्री, साहित्यकार, चित्रकार अथवा किसी भी गरिमापूर्ण पद पर आसीन करा सकता है जो कि वर्तमान में आवश्यक भी है। इससे उन लड़कियों के लिए प्रतिष्ठित परिवार, सुयोग्य वर एवं सुखमय जीवन की सर्वोच्च आकांक्षा की पूर्ति के द्वार भी खुल जाते हैं।
नारी का सौंदर्य ही केवल सार्थक जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है। सुन्दरता के अतिरिक्त लड़की का एक भी अवगुण या कमी निश्चित रूप से उसका जीवन चुनौतीपूर्ण बना देती है। साथ ही उस कारण ससुराल में भी अनावश्यक कठिनाईयाँ पैदा हो सकती हैं, लेकिन लड़की यदि प्रतिभावान हो, अथवा परिवार चलाने की कला में निपुण हो, उसमें कोई उल्लेखनीय हुनर हो या फिर अच्छे ओहदे पर कार्यरत हो तो एक समझदार पति सारी जिन्दगी अपने परिवार को खुशहाल बनाए रख सकेगा और अपनी पत्नी का सदैव सम्मान भी करेगा। अत: यह बात हमारे परिवार के प्रत्येक सदस्यों को ध्यान में रखना होगी कि यदि हमारी लड़की, हमारी बहन, हमारी बहू आकर्षक अथवा सुन्दर नहीं हैं तब भी उसका तिरस्कार कदापि नहीं किया जाना चाहिए। हमें उनके अंत:करण में ऐसे बीज अंकुरित करना होंगे जो भविष्य में मीठे फलों को पैदा कर सके, जिनकी मिठास उनमें निहित कमी को भी भुला दे और परिवार के सदस्य उनकी प्रतिभा की भूरी – भूरी प्रशंसा करते रहें। यही हम सबका सार्थक प्रयास भी होना चाहिए अन्यथा महिलायें सदैव अपने भाग्य को कोसती रहेंगी, मनचाहा वर न मिलने पर स्वयं को दोषी ठहराएँगी, तब उनके लिए पश्चाताप के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं बचेगा।
आज जब नारी वर्ग शिक्षा, तकनीकि, उद्योग, अन्तरिक्ष, सैन्य सहित अन्य क्षेत्रों में अपना वर्चश्व कायम करने में सफल हो रहा है। समाज और शासन भी प्राचीन दकियानूसी बातों को नकार कर उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है, तब बहन – बेटियों को चाहिए कि वे कोई न कोई ऐसी विशेषता, कला या गुणों में निपुण होना सुनिश्चित करें जो उनके सुखद भविष्य हेतु मील का पत्थर बने।
© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
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