श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “इन्सान बनिये”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 29 ☆ इन्सान बनिये ☆ 

हजारों वर्षों पहले

एक महात्मा ने कहा है

जब उसने देखा और सहा है

सबकी होती है

दो आंखें, दो हाथ

दो पांव, दो कान

एक नाक, एक सर है

वही जन्म की खुशी

और मृत्यु का डर है

हर व्यक्ति समान है

हम सब इंसान हैं

कुछ लोगों ने

पैदा किया है

लिंग, जाति, धर्म, देव

का भेद

विचारों में वैमनस्यता

और मतभेद

इसमें उन लोगों का

स्वार्थ है

इससे नहीं मिलनेवाला

परमार्थ है

अनेक महापुरुषों ने यह जाना

कठोर तपस्या से पहचाना

तब, जनमानस को समझाया

बार बार बतलाया

हम सब एक ही

ईश्वर की संतान हैं

हम सब का एक ही

भगवान है

बस-

उसको पाने के रास्ते

अलग अलग है

लक्ष्य एक है

पंथ अलग-अलग हैं

दीन दुखियों की पीड़ा

व्यथा, कष्ट दूर

कीजिये

निर्बल, पीड़ितों, शोषितों का

उत्कर्ष कर दुआएँ

लीजिये

इनकी आँखों में वो

झिलमिलाता है

इनके होंठों पें

वो मुस्कुराता है

गर, चुनना ही है तो

सत्य का मार्ग चुनिए

पाखंड को छोड़िये

बस, सच्चे इंसान बनिए।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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