सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “मस्तानी”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 70 ☆
हुई थी एक मस्तानी कभी!
मैं भी हूँ एक मस्तानी ही!
रंगी थी वो बाजीराव प्रेम में-
मौला के रंग रंगी हूँ मैं भी!
जब झील के पानी में झाँका,
उसमें मैंने अक्स अपना देखा;
किसी पर मर-मिट जाने वाला
जाने कहाँ से मैंने अंश देखा!
कई बहाने थे ज़िंदगी में लुत्फ़ के,
इश्क में मस्तानी ने किस्मत बोई!
शहर के चौराहों में क्या रखा था?
पहाड़ पर खड़े दरख्तों में मैं खोई!
`
मुहब्बत मस्तानी ने भी की थी,
मुहब्बत तो में भी करती हूँ;
समाज से उसने जंग थी लड़ी,
किसी से कहाँ मैं भी डरती हूँ!
जाने उसने हिम्मत कहाँ से पाई?
उसके पास भला कैसे ताकत थी?
ने’मत है मेरे पास तो मौला की,
इश्क शायद उसकी इबादत थी!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Excellent!
अच्छी रचना