श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना गौरैया आती है….। )
☆ तन्मय साहित्य # 82 ☆ गौरैया आती है…. ☆
रोज सबेरे खिड़की पर
गौरैया आती है
और चोंच से टिक-टिक कर
वह मुझे जगाती है।
उठते ही मैं उसे देख
पुलकित हो जाता हूँ
पूर्व जन्म का रिश्ता
कोई अपना पाता हूँ,
चीं चीं चीं चीं करते
जाने क्या कह जाती है……..
आँगन में कुछ दाने
चावल के बिखेरता हूँ
बाहर टंगे सकोरे में
पानी भर देता हूँ
रोज सुबह इस पानी से
वह खूब नहाती है………..
चहचहाहटें घर में
मेरे सुबह शाम रहती
इन पंखेरुओं की किलौल
सब चिंताएं हरती
साँझ, ईश वंदन, कलरव
के मन्त्र सुनाती है…………
मिलकर गले लगाएं
इस भोली गौरैया को
और सुरक्षा – संरक्षण
इस सोन चिरैया को
घर आँगन में जो सदैव
खुशियाँ बरसाती है…
रोज सबेरे खिड़की पर
गौरैया आती है।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈