श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक व्यंग्य “खटिया का बजट”। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 83 ☆
☆ व्यंग्य – “खटिया का बजट” ☆
जनता का बजट है, जनता के लिए बजट है,पर सरकार कह रही है कि ये फलांने साब का लोकलुभावन बजट है।खूब सारे चेहरों को बजट के बहाने साब की चमचागिरी करने का चैनल मौका दे रहे हैं।विपक्ष अपना धर्म निभा रहा है ताकि जनता को पता चले कि विपक्ष भी होता है। गंगू किसान आन्दोलन से लौटा है, दो दिन का भूखा प्यासा खटिया पर लेटकर एक चैनल में बजट देख रहा है, चमकते माॅल में बजट बाजार लिखा है, पीछे से दुकानदार निकल निकल कर हंस रहे हैं, सजी धजी लिपिस्टिक लगी एंकर चिल्ला रही है, बजट में गांव की आत्मा दिख रही है, माॅल के कुछ लोग तालियां बजा रहे हैं।
गंगू का भूखा पेट गुड़गुड़ाहट पैदा कर रहा है, गैस बन रही है, माॅल में जो दिख रहा उसे देखना मजबूरी है। एकदम से चैनल पलटी मार कर इधर लंच के दौरान बजट पर चर्चा पर आकर रुकता है, पार्टी के बड़े पेट वाले और कुछ बिगड़े बिकाऊ पत्रकार भी बैठे हैं, लाल परिधान में लाल लाल ओंठ वाली बजट के बारे में बता रही है, सबके सामने थालियां सज गयीं हैं, थाली में बारह तेरह कटोरियां बैंठी हैं, दो दुबले-पतले खाना परोसने वाले मास्क लगाकर खाना परोस रहे हैं, इतने सारे बड़े पेट वाले बिना मास्क लगाए, स्वादिष्ट व्यंजन सूंघ रहे हैं, बजट पर चर्चा चल रही है, कुछ लोग खाने के साथ बजट खाने पर उतारू हैं। कोरोना दूर खड़ा हंस रहा है। भूखा प्यासा गंगू जीभ चाटते हुए सब देख रहा है। साब बार बार प्रगट होकर कहते हैं बजट की आत्मा में गांव है और गांव के किसान के लिए बजट है। गंगू करवट लेने लगता है और खटिया की पाटी टूट जाती है।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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