हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 5 ☆ छोटी ज़िंदगी ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा ☆
सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “छोटी ज़िंदगी”। )
साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 5
☆ छोटी ज़िंदगी ☆
कभी देखा है ध्यान से तुमने
मस्ताने गुलों को पेड़ों की डालियों पर
मुस्कुराते हुए?
शर्माती सी कली
जब एक गुल में परिवर्तित होती है,
उसका चेहरा ही बदल जाता है
और लबों पर उसके लाली छा जाती है!
हवाएँ इन इठलाते गुलों को
कभी चूमती हैं,
कभी मुहब्बत से गले लगा लेती हैं;
सूरज इनमें रौशनी भर
इनमें नया जोश पैदा करता है;
तितलियाँ और भँवरे
इनसे इश्क कर बैठते हैं;
पर यह गुल
इन सभी बातों से अनजान,
सिर्फ ख़ुशी से झूलते रहते हैं!
कभी-कभी इनको देखकर
बड़ा आश्चर्य होता है…
क्या यह गुल नहीं जानते
कि इनकी ज़िन्दगी इतनी छोटी है?
सुनो,
शायद यह बात गुल
अच्छे से जानते हैं,
और शायद यह भी समझते हैं
कि जितनी भी ज़िन्दगी हो
उसमें हर पल का लुत्फ़ लेना चाहिए;
तभी तो यह इतना खुश रहते हैं…
आज
अपने बगीचे में
जब एक बार फिर एक शोख गुलाबी गुलाब को
ख़ुशी से सारोबार देखा,
मेरे भी सीने में बसा हुआ डर
कहीं उड़ गया!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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