डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक  बेहद मजेदार व्यंग्य  ‘गाँव चलने का!‘। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 87 ☆

☆ व्यंग्य – गाँव चलने का!

‘ग्रैब एंड ग्रैब इंटरनेशनल’ के मैनेजिंग डायरेक्टर मिस्टर विलियम कनिंग इंडिया में अपने ऑफिस में बैठे बाल नोंच रहे हैं। उनके आसपास चेहरे पर भारी ‘कंसर्न’ ओढ़े उनका स्टाफ बैठा है।

मिस्टर कनिंग दुखी स्वर में कहते हैं, ‘आप लोक कुच्च नईं करेंगा। ऐसई हाट पे हाट रखके बैठा रहेगा। टाइम इज़ रनिंग आउट। इंडिया का सेवेन्टी परसेंट लोक गाँव में रैटा। ए डेको,ए पेपर में लिका है कि गाँव में बिलियंस आफ रुपीज़ का मार्केट हय। फ्रिज का मार्केट हय, टीवी का मार्केट हय,बाइक का मार्केट हय, शैम्पू का मार्केट हय, वाशिंग मैशिन का मार्केट हय। लेकिन आप लोक कुच्च नईं करेंगा। डूसरा कंपनी गाँव का पूरा मार्केट कैप्चर कर लेगा एंड वी विल बी लेफ्ट विथ दिस।’

वे अपने दोनों अंगूठे हिलाते हैं।

इंडिया में उनके मार्केटिंग चीफ मिस्टर डी. डैस कहते हैं, ‘बट सर, इंडियन विलेजेज़ में ‘पेनिट्रेट’ करना ईज़ी नहीं है। इनफ्रास्ट्रक्चर इज़ वेरी पुअर एंड पीपुल डोंट हैव दैट काइंड ऑफ इनकम।’

मिस्टर डी. डैस का असली नाम धरमदास है। मिस्टर कनिंग उनकी बात पर हाथ उठाकर कहते हैं, ‘नो,नो! यू डोंट हैव द विल। विल अउर डेटरमिनेशन हय टो यू कैन एचीव एनीथिंग। राइट एटीट्यूड होने चाइए। दैट मेक्स ऑल द डिफरेंस।’

डैस साहब चुप्पी साध जाते हैं। अपने को नालायक कैसे साबित करें? साहब की नज़र में अपनी काबिलियत साबित करने के लिए मुट्ठी उठाकर जोश से कहते हैं, ‘सर,यू आर हंड्रेड परसेंट राइट। वी शैल अचीव। टु द विलेजेज़! टु द विलेजेज़!’

दूसरे दिन दो गाड़ियां भारत के एक नज़दीकी गाँव की तरफ दौड़ रही हैं। पूरा स्टाफ जोश में है। गाँव को फतह करना है। इट इज़ नथिंग लैस दैन ए वार।

गाड़ियां धूल उड़ातीं गाँव में घुसती हैं। कनिंग साहब उतर कर चेहरे और कपड़ों की धूल झाड़ते हैं।  ‘टु हैल विथ दीज़ विलेजेज़। इटना ढूल काँ से आ जाटा है?’ फिर मुस्करा कर कहते हैं, ‘एनी वे, इट इज़ पार्ट ऑफ द गेम। लेट अस प्रोसीड ऑन अवर मिशन।’

वे उतरकर स्टाफ के साथ गाँव की गलियों में घूमते हैं। गाँव के लोग उन्हें देखकर उत्सुकता से बाहर निकल आये हैं। थोड़ी ही देर में चिलकती धूप में साहब का चेहरा लाल टमाटर हो जाता है। पसीना सिर और चेहरे से बह कर शर्ट को गीला करता है, लेकिन साहब ओंठ फैलाकर लगातार मुस्कराते हैं। हाथ उठाकर गाँव वालों को ‘नमस्टे’ कहते हैं,बच्चों के गाल थपकते हैं। एकाध बच्चे को गोद में उठाने की सोचते हैं, लेकिन अपने कपड़ों का खयाल करके इरादा छोड़ देते हैं।

नीम के एक पेड़ के नीचे उनके लिए प्लास्टिक की कुर्सियाँ और मूढ़े रख दिये जाते हैं और साहब मन ही मन ‘थैंक गॉड’ कह कर बैठ जाते हैं। अपने ऊपर नीम के पेड़ को देखकर गाँववालों से कहते हैं, ‘ए नीम ट्री अमारा एनिमी हय, डुश्मन हय। इसके वजा से गाँव का लोक टूथपेस्ट नईं करटा। डाटुन (दातुन) करटा। आप लोक ब्रश और पेस्ट करने का। अम आपको फ्री टूथपेस्ट डेगा। नीम इज़ अनहाइजिनिक,गंडा (गंदा) हय। इसका डाटुन नईं करने का।’

फिर लड़कियों की तरफ देखकर कहते हैं, ‘अम अबी सब लरकियों अउर लेडीज़ को फ्री शैम्पू पाउच डेगा। उसको इस्टेमाल करने का। बाल में मिट्टी उट्टी नईं लगाने का। मिट्टी बउट गंडा होटा। अबी इंडिया शाइनिंग है टो गाँव का लेडीज़ का बाल बी शाइनिंग होने को मांगटा।’

पास ही एक आदमी साइकिल थामे साहब की बात सुन रहा है। साहब उससे कहते हैं, ‘ए साइकिल नईं चलाने का। थ्रो इट अवे। मोटरबाइक करीडने का। उस पर वाइफ को बैटाकर फादर इन लॉ के गर जाएंगा टो फादर इन लॉ खुस होएंगा। नो बाइसिकिल।’

आदमी दाँत निकाल कर पूछता है, ‘पेट्रोल के पैसे कौन देगा?’

साहब हँस कर जवाब देते हैं, ‘फादर इन लॉ डेगा।’ फिर छाती पर हाथ रखकर कहते हैं, ‘अम डेगा। अम इराक से लाकर डेगा। इराक को काये को ‘कांकर’ किया?’

फिर साहब लड़कियों को लक्ष्य करके कहते हैं, ‘अम सब गाँव में ब्यूटी-पार्लर कुलवाएगा। सब लरकी अउर लेडीज़ एवरी वीक ब्यूटी ट्रीटमेंट लेगा। फिर सब गाँव में ब्यूटी कॉन्टेस्ट कराएगा। गाँव का लरकी मिस इंडिया बनेगा, मिस वर्ल्ड बनेगा, मिस यूनिवर्स बनेगा। अम इंडियन विलेजेज़ में रेवोल्यूशन लाएगा।’

फिर गाँववालों से कहते हैं, ‘अबी अम आप लोक को फ्रिज डेगा,टीवी डेगा। फ्रिज का पानी पीने का, आइसक्रीम काने का। मिट्टी का बर्टन का पानी नईं पीने का। वो अनहाइजिनिक होटा। अम आपको वाशिंग मैशीन बी डेगा। हाट (हाथ) से कपरा नईं ढोने का। लेडीज़ का हाट कराब होटा।’

एक आदमी पूछता है, ‘साहब, इनके लिए पैसा कहाँ से आएगा?’

साहब हाथ उठाकर कहते हैं, ‘अम बैंक आफिसर्स को लाएगा। वो आपको कर्जा डेगा। नो प्राब्लम। फिकर नईं करने का।’

वही आदमी पूछता है, ‘करजा कैसे चुकेगा साहब?’

साहब जवाब देते हैं, ‘कोई प्राब्लम नईं। जब कर्जा होएंगा टो उसको पे करने के वास्टे आप जाडा काम करेगा। अबी आप आराम करटा, फिर आप आराम नईं करेगा। जाडा काम करेगा टो  जाडा पइसा बी आएगा। नो प्राब्लम।’

साहब डैस साहब से कहते हैं, ‘मिस्टर डैस, सबका डिमांड नोट करिए। सब कुच करीडने का। कल्चर्ड बनने का।’

डैस साहब उत्साह से गाँववालों की डिमांड नोट करते हैं। कनिंग साहब गाड़ी से सॉफ्ट ड्रिंक की पंद्रह बीस बोतलें मंगवाते हैं, गाँववालों में बँटवाते हैं। कहते हैं, ‘शरबट उरबट नईं पीने का। एई पीने का। कल्चर्ड बनने का। लाइक दिस, सर उटा के पियो।’

फिर साहब जाने के लिए उठते हैं, गाँव वालों की तरफ हाथ हिलाकर कहते हैं, ‘अम बैंकर को लेकर जल्डी आएगा। रेवोल्यूशन होएंगा। फिकर नईं करने का। गाँव को बडलने का।’

साहब गाड़ी में बैठ जाते हैं। चलने को होते हैं कि एक गाँववाला खिड़की में सिर डाल देता है। कहता है, ‘साहब! फिरिज और टीवी खरीद कर क्या करेंगे? बिजली तो आधे दिन रहती नहीं। आती जाती रहती है।’

साहब हँस कर जवाब देते हैं, ‘सो व्हाट?आप टो फ्रिज अउर टीवी करीडो। जब करजा चरेगा टो आप गवमेंट से बिजली के लिए लराई करेगा। लरेगा टो बिजली जरूर मिलेगा। टीवी अउर फ्रिज जरूर करीडने का। फिकर नईं करने का। ओके?’

साहब हाथ हिलाते चले जाते हैं और सवाल करनेवाला भकुआ सा उनकी तरफ देखता रह जाता है।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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