डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “औरत की ज़िन्दगी ”।
☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – #2 ☆
☆ औरत की ज़िन्दगी ☆
औरत की ज़िन्दगी
कोल्हू के बैल की मानिंद
खूंटे से बंधी गुज़रती
उसके चारों ओर
चक्कर लगाती
वह युवा से
वृद्ध हो जाती
बच्चों की
किलकारियों से
घर-आंगन गूंजता
परन्तु वह सबके बीच
अजनबी-सम रहती
और उसके रुख्सत
हो जाने के पश्चात्
एकसूत्रता की डोर टूट जाती
घर मरघट-सम भासता
जहां उल्लू
और चमगादड़ मंडराते
वहां बिल्ली,कुत्तों
व अबाबीलों के
रोने की आवाज़ें
मन को उद्वेलित कर
सवालों और संशयों के
घेरे में खड़ा कर जातीं
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com